Tuesday, 18 June 2013

जमीन पर मरीज, मरीज की साथी साथ में, खिड़की से लटकी रहती है स्लाइन


जमीन पर मरीज, मरीज की साथी साथ में, खिड़की से लटकी रहती है स्लाइन

जहानाबाद। छोटा परिवार, सुख का आधार। यहां पर यह नारा दिया गया है। प्रत्येक सोमवार और गुरूवार के दिन परिवार नियोजन कैम्प लगता है। इस कैम्प में आने वाली महिलाएं सुख के बदले जाए दुख झेलती है। इसके आलोक में सरकार के द्वारा प्रोत्साहन राशि दी जाती है। महिला बंध्याकरण करवाने वाली को 6 सौ रूपए और उत्प्रेरक को 150 रूपए दिये जाते हैं। पुरूषों को नसबंदी करवाने पर 1100 रूपए और उत्प्रेरक को 2 सौ रूपए दिये जाते हैं।

जमीन पर मरीज, मरीज की साथी मरीज के साथ में, स्लाइल की बोतल रस्सी की मदद से खिड़की में टंगी रहती है। यह नजारा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, जहानाबाद का है। दर्जनों महिलाओं को बंध्याकरण ऑपरेशन के बाद जमीन पर लिटा कर ही इलाज किया जाता है। यहां पर बेड का चलन ही नहीं है। हरेक जगहों पर मरीज को जमीन पर ही लिटाया जाता है।

 जानकार लोगों का कहना है कि लोकल एनेस्थेसिया देकर बंध्याकरण का ऑपरेशन किया जाता है। ऑपरेशन करने के बाद मरीज में कुछ छटपटाहट होती है। इस लिए रिकवरी रूम में रखा जाता है। वहां पर कुछ घंटे रखने के बाद मरीज सामान्य स्थिति में जाती है। उसके बाद अन्य रूम में स्थानान्तरण कर दिया जाता है। उस रूम में जरूर ही मरीज को बेड पर लिटाया जाता है। यहां पर मरीजों को देखने से पता चलता है कि मरीज रिकवर हो चुकी हैं। वह लोकल एनेस्थेसिया के प्रभाव से मुक्त हो गयी है। मगर, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के द्वारा बेड उपलब्ध नहीं कराया गया।

इस कमरे में जाने से लोग अवाक हो गए। वहां पर मरीजों की सेवा में 0एन0एम0 में व्यस्त थीं। यहां पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि बिल्कुल बगल-बगल में तीन युवती पड़ी हैं। एक मरीज के साथ साथी और एक बच्चा बैठा हुआ है। एक मरीज है जिसके हाथ में स्लाइल लगी है। जमीन पर पड़ी युवती का इलाज चल रहा है। उल्लेख्य है कि बिहार सरका के द्वारा करोड़ों रूपए खर्च करती है लेकिन,मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। हरेक दिन चादर बदला नहीं जाता है।

आलोक कुमार