एक्शन एड ने सरकार से मांग की
बालिकाओं के लिए योजनाएं विवाहोन्मुखी न बनाकर शिक्षा एवं
रोजगारोन्मुखी बनाई जाए
प्रगति ग्रामीण विकास समिति के सचिव प्रदीप प्रियदर्शी, प्रयास ग्रामीण विकास समिति के सचिव कपिलेश्वर राम,विकास विहार के सचिव हरेन्द्र सिंह,चड के सचिव पारस सिंह और एसएसइवीके के सचिव अमर सिंह को लीडर बनाया गया है। बिटिया बचाओ मानवा बचाओ 10 जुलाई,2013
को शुरू किया गया।
इस बीच एक्शन एड ने सरकार से मांग की है कि पीसीपीएनडीटी एक्ट के प्रभावी कार्यान्वयन व निगरानी हेतु राज्य स्तरीय समिति का त्वरित गठन हो। पंचायत को पीसीपीएनडीटी एक्ट के गांव से पंचायत स्तर तक के कार्यान्वयन व निगरानी की प्राथमिक जिम्मेदारी सौंपी जाये। सभी नर्सिंग व चिकित्सा महाविघालयों (खासकर रेडियोलॉजी व गायनोकॉलोजी विभागों) में लिंग चयन व प्रतिकूल लिंग अनुपात की गंभीर समस्याओं पर संवेदनशील करने हेतु कार्यक्रम तत्काल शुरू किये जाये। सभी विधायक अपने-अपने चुनाव क्षेत्र का वार्षिक रिपोर्ट कार्ड विधान सभा में प्रस्तुत करें जिसमें उनके क्षेत्र में लिंग अनुपात की वर्तमान स्थिति व उसमें सुधार हेतु किए गए प्रयत्नों का ब्यौरा हो। सरकार के आदेश से बेटिया जन्मोत्सव को संस्थागत किया जाये व उसके आयोजन हेतु पंचायत को प्राथमिक जिम्मेदारी सौंपी जाये। सरकार के आदेश से लिंग चयन व कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ 15 अगस्त व 2 अक्टूबर की ग्राम सभाओं में हर वर्ष पारित किये जाये। सरकार के द्वारा ज्यादा से ज्यादा संख्या में बुजुगों के लिए वृद्धाश्रम संचालित किये जायें ताकि वृद्धावस्था में असुरक्षा की समस्या का सामाधान हो सके। सरकार के द्वारा ज्यादा से ज्यादा संख्या में बच्चों के लिए पालनाघर संचालित किये जाये ताकि महिलाओं के लिए रोजगार का सृजन हो और अधिक से अधिक महिलाये घर के बाहर आकर रोजगार से जुड़ सके। महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण सभी नौकरियों, सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों व स्कूल-कॉलेज के प्रवेश में दिया जाए। सरकार महिलाओं के सम्पति के अधिकार को सुनिश्चित करते हुए दहेज के विरोध में माहौल बनाए व दहेज विरोधी कानून को लागू करें। विवाह के अवसर पर माता-पिता अपने सभी बच्चों (बेटियों सहित) को सम्पति का वसीयत दें ताकि स्त्रीधन के नाम पर भी ससुराल वालों को दहेज न दिया जाये। सरकार महिलाओं हेतु चला रही सभी योजनाओं का जेण्डर विश्लेशण कर पता करे कि कौन-कौन सी योजनाएं पितृसत्तात्मक सोच पर आधारित हैं। वे सभी योजनायें जिससे लड़कियों के जन्म पर जमा की जा रही धनराशि जो उनके 18 वर्ष के होने पर दी जाती है, वे समाज में यह संदेश देते हैं कि लड़कियां माता-पिता पर बोझ हैं और सरकार उनका बोझ कम करने को तत्पर हैं ये योजनाएं लड़कियों को बोझ मानने वाली मानसिकता को चुनौती नहीं देती। ये योजनाएं लड़कियों की असीमित क्षमताओं को बढ़ावा न देते हुए उनको अपमानित भी करती है। बालिकाओं के लिए योजनाएं विवाहोन्मुखी न बनाकर शिक्षा एवं रोजगारोन्मुखी बनाई जाए। अगर धनराशि देनी ही है तो उसको उम्र से न जोड़ते हुए शिक्षा से जोड़ा जाये। मैट्रिक,इन्टर,स्नातक एवं स्नाकोत्तर चरणों पर किश्तों में छात्रवृत्ति के तौर पर दिया जाये। तकनीकी व व्यवसायोन्मुखी शिक्षा के लिए लड़कियों को मुफ्त शिक्षा या विशेश छात्रवृत्ति दी जाये।सरकार सामाजिक बुराइयों का उन्मूलन अगर नहीं कर सकती है तो अपने नागरिकों के लिये सामाजिक कुरीतियों पर चलना कठिनतम तो बना सकती है। अपनी नीतियों द्वारा सामाजिक बदलाव को बढ़ावा भी दे सकती है।