Sunday, 21 July 2013

राजनीतिज्ञों को वोट के समय झटका देने के लिए ‘आगे जमीन पीछे वोट-नहीं जमीन तो नहीं वोट’

        
      

बिहार में फिलवक्त बांका जिले में 54 और गया जिले में 22 लोगों को मिला पर्चा

केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों के पाले में गेंद उछाली


गया। फिलवक्त बांका जिले में 54 और गया जिले में 22 लोगों को पर्चा मिला है। यह हाल वनाधिकार कानून 2006 की है। बिहार में 7 साल के अंदर केवल 76 लोगों को वनाधिकार कानून के तहत पट्टा मिल पाया है। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्दे नजरआगे जमीन पीछे वोट-नहीं जमीन तो नहीं वोटनारा बुलंद होने लगा है।
   केन्द्र सरकार ने जन संगठन के साथ मोहब्बत की नगरी में 11 अक्तूबर,2012 को 10 बिन्दुओं पर समझौता की थी। इसके बाद केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने एडवाइसरी बनाकर राज्य के मुख्यमंत्रियों के पास अग्रसारित किया। इसके बाद केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश की अगुवाई वाली टास्क फोर्स की बैठक में भी तैयार राष्ट्रीय भू सुधार नीति का मसौदा को विचारार्थ राज्यों को भेजी जाएगी। मसौदा नीति पर विचार और सहमति के बाद ही कैबिनेट से राष्ट्रीय भू सुधार नीति पर मंजूरी लेंगे। इस तरह केन्द्र सरकार ने राज्य के मुख्यमंत्रियों के पाले में गेंद उछाल दी है। केन्द्र सरकार और जन संगठनों के बीच की स्थिति यह है कि आंदोलनों को बीच बाजार में नंगा कर  दी जाती है। इस समय राजनीतिक अस्थिरता है। सभी दल 2014 की आम सभा में फतह करने को बैचेन हैं। यह केन्द्र सरकार की लुभावनी खेल भी हो सकती है।
 राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि केन्द्र सरकार ने अव्वल जन संगठनों को मायावी जाल में फंसा लिया है। केन्द्र सरकार ने खुद को जाल से निकालकर राज्य सरकारों को जाल में फंसा दी है। ऐसा कर देने से अब जन संगठन के लोग केन्द्र सरकार के ऊपर आग नहीं उगलेंगे। अब केन्द्र सरकार को धमकाने के बदले में राज्य सरकारों को धमकाते और लड़ते रहेंगे। दिल्ली की ओर कूच करने के बदले अपने प्रदेश के राजधानी में गांधी,विनोबा,जयप्रकाश के मार्ग पर चलकर सत्याग्रह करते रहेंगे।
  केन्द्र सरकार के द्वारा अभी तक उठाये गए कदमों से जन सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व करने वालों में खुशी व्याप्त है। कम से कम केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने आंदोलन की रूख राज्य सरकारों के समक्ष मोड़ कर रख दिया है। अब राज्य के एकता परिषद के सदस्य जोर लगाकर सरकार से काम निकलवा लें। इसके लिए जन संगठनों के कार्यकर्ताओं को गांवघर में जाकर समय देना होगा। केन्द्र सरकार के साथ संपन्न समझौते को ग्रामीणांचल में रहने वालों के समक्ष 10 बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा करते रहेंगे। वहां पर तो जरूर ही जन संगठन की उपलब्धि बखान करते समय स्वतः केन्द्र सरकार के द्वारा किये गये कार्यों की उपलब्धि गिनवाना पड़ेगा। केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश की एडवाइसरी और राष्ट्रीय भू सुधार नीति का मसौदा को लोगों के बीच में सांझा करेंगे। ऐसा करने से केन्द्र सरकार की बड़प्पन और राज्य सरकार की खिंचाई होगी।
   जन संगठन एकता परिषद के लोगों का कहना है कि अप्रैल 2013 को केन्द्र सरकार ने 10 बिन्दुओं पर समझौता करके एडवाइसरी के रूप में राज्य सरकारों के पास मंथन करने के लिए भेजी है। इस पर किसी तरह की प्रगति रिपोर्ट सामने नहीं है। अब एक बार फिर टास्क फोर्स की बैठक में राष्ट्रीय भू सुधार नीति का मसौदा भी राज्य सरकारों के पास भेजा जा रहा है। केन्द्र सरकार को चाहिए कि समयावधि में राज्य सरकार के पास से मतैक्य जाए। अगर नहीं आता है तो मुख्यमंत्रियों और राजस्व मंत्रियों की बैठक आहुत करके आवष्यक विचार जान लिया जाए। यह सब चुटकी बजाकर संभव नहीं है तो नामुमकिन भी नहीं है। बस निर्भर है 2014 की आम चुनाव की तारीख और नेताओं का मूड जो भूमिहीनों के हित में कदम उठा सके।

 अब जन संगठन के द्वारा केन्द्र सरकार के द्वारा तेजी से अपना कार्य निपटारा करके गेंद को राज्य सरकारों के पास पुस कर दी है और राज्य सरकार के द्वारा टालू नीति अपनायी जा रही है। उसको लेकर व्यापक जनजागरण पैदा किया जाएगा। समझौते पत्र का हैण्डबिल, पोस्टर तथा पत्र के माध्यम से मध्यम वर्ग और लक्ष्य समूह के बीच स्थानीय भाषा में प्रकाषित किया जा रहा है। ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र में प्रचार प्रसार किया जायेगा। गांवों में इस समझौते के बिन्दुओं के आधार पर दीवार लेखन भी करना है।
  लोकसभा चुनावों के नजदीक आते ही केंद्र सरकार ने गरीबों को लुभाने की कवायद तेज कर दी है। खाद्य सुरक्षा बिल को अध्यादेश के जरिए लागू करने के बाद अब सरकार भूमिहीनों को जमीन देने के लिए नई नीति लाने की तैयारी कर रही है।
इस योजना के तहत मसौदा नीति ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश की अगुवाई वाली टास्क फोर्स की अगुवाई में तैयार की जा चुकी है। इस कमेटी के सह-अध्यक्ष जनजाति मामलों के मंत्री किशोर चंद्र देव हैं। खाद्य सुरक्षा अध्यादेश के बाद तैयार की गई इस नीति में इस तरह की रणनीति पर जोर दिया गया है कि जमीन का एक बड़ा पूल तैयार किया जा सके और हर परिवार के पास जमीन के अधिकार का सम्मान किया जा सके।
   इसके तहत अत्यंत गरीबों खासतौर पर इस वर्ग की महिलाओं को प्राथमिकता के आधार पर जमीन आवंटित करने की तैयारी है। ऐसे प्रावधान किए गए हैं कि यह नीति सार्वजनिक संपत्ति के संसाधनों से गरीबों और वंचितों की जरूरतें पूरी की जा सकें।
जयराम रमेश ने इसके बारे में कहा है कि इस मसौदा नीति को गुरुवार को राज्यों के विचारार्थ भेजा जाएगा। केंद्र जल्द ही राज्यों के राजस्व मंत्रियों की बैठक बुलाएगा और उनसे इस नीति पर चर्चा की जाएगी। एक बार राज्यों की सहमति मिल जाने के बाद इसे मंजूरी के लिए कैबिनेट के पास भेजा जाएगा।
  गत वर्ष केंद्र सरकार और राष्ट्रीय भू सुधार नीति के लिए संघर्ष कर रहे जन सत्याग्रह कार्यकर्ताओं के बीच समझौते में फैसला किया गया था कि देश में भू सुधारों को लागू किया जाए। इस टास्क फोर्स में पीवी राजगोपाल, तृणमूल कांग्रेस के सांसद डी. बंधोपाध्याय, योजना आयोग के सदस्य मिहिर शाह, बीएन युगेंदर, अरुणा राय, प्रवीण झा, बीना अग्रवाल और विदेह उपाध्याय शामिल थे।
   इस पॉलिसी के मुताबिक केंद्र सरकार भू संसाधन विभाग के तहत एक व्यवस्था स्थापित करेगी जो इसकी निगरानी करेगा। यह विभाग राज्यों के राजस्व मंत्रियों की बैठक में साल में दो बार रिपोर्ट पेश करेगा। इस नीति के तहत महिलाओं को वन अधिकार अधिनियम के तहत पट्टे आवंटित किए जाएंगे।
               
अनुसूचित जनजाति और गैर अनुसूचित जनजाति के लोगों का नेतृत्व करने वाले नेतागण भी प्रभावितों को न्याय दिलाने में अक्षम साबित हो रहे हैं। इस संदर्भ में राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष ललित भगत ने कहा है कि केन्द्र सरकार ने वनाधिकार कानून 2006 बनाया है। इसके तहत वनभूमि पर रहने वालों को वनभूमि का पर्चा देकर मालिकाना हक देना है। अभी तक बिहार में 76 लोगों को वनाधिकार कानून 2006 के तहत पर्चा दिया गया है। इसमें दो जिले भाग्यशाली हैं। जिनको वनभूमि पर काबिज रहने का परवाना मिल सका है। फिलवक्त बांका जिले में 54 और गया जिले में 22 लोगों को पर्चा मिला है।

Alok Kumar