अब गया जिले के प्रशासन के पाले में गेंद है। जो मनरेगा सदृश्य महत्वपूर्ण लोक कल्याणकारी कानून को किस तरह से पंचायत रोजगार सेवक की गैर मौजूदगी में क्रियान्वयन कर पाता है।
गया। इसे आप क्या कहेंगे? जब-जब डीएम साहब का इधर से उधर स्थानान्तरण कर होता है। तो वहां पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम से जुड़े पंचायत रोजगार सेवक आंदोलन में चले जाते हैं। हां, यहां यह न समझे कि डीएम साहब ही पंचायत रोजगार सेवकों के साथ ज्यादती किया करते हैं। परन्तु ऐसा नहीं है। पंचायत रोजगार सेवकों के संघ के द्वारा आह्वान किया जाता है। बताते चले कि इस तरह के आंदोलन से डीएम साहब घबराते नहीं हैं। वरण आंदोलन को एक चुनौती की तरह स्वीकार करते हैं। कुछ नयापन करने पर उतारू हो जाते हैं। अब यहां पर एक टका -सा सवाल है कि क्या डीएम साहब जहानाबाद जिले की तरह ही गया में मनरेगा श्रमिकों के पक्षधर बनकर कोई कारगर कदम उठाएंगे?
इस संदर्भ में जानकार लोगों का कहना है कि जब वर्तमान समय के गया जिले के जिलाधिकारी बालामुरूगन डी. जहानाबाद जिले के डीएम थे। तब भी बिहार राज्य पंचायत रोजगार सेवक संघ के आह्वान पर आंदोलन पर चले गये थे। पंचायत रोजगार सेवकों ने हाथ खड़े कर दिये थे। उन लोगों के आंदोलन का प्रत्यक्ष प्रभाव मनरेगा श्रमिकों पर पड़ने लगा। रोजगार के अभाव में दो जून की रोटी के लिए लोग पलायन करने लगे। पलायन होने वालों की संख्या में इजाफा होने लगी।
ऐसा होने से जिले में हड़कंप मच गया। मगर डीएम साहब बैचेन नहीं हुए। आलाधिकारियों की एक उच्चस्तरीय बैठक बुलायी। इसमें निर्णय लिया गया कि गांवघर जो स्वयं सहायता समूह संचालित है। समूह की सदस्यों का सहयोग लिया जाए। उनको मनरेगा के कार्य में लगाया जाए। काम के इच्छुक व्यक्ति समूह के सदस्यों को आवेदन पत्र देंगे। अगर इच्छुक व्यक्ति आवेदन नहीं लिख पा रहे हैं तो उनको आवेदन पत्र लिख दिया। यह सुनिश्चित रूप से आवेदक को आवेदन की प्राप्ति मिल जाए। इनके सहयोग से महादलित मुसहर समुदाय के टोलों में कार्यारंभ किया गया। मनरेगा के तहत मनरेगा श्रमिकों को काम दिया गया। और तो और मनरेगा के नियम कानून को धरती पर उतारा गया। मनरेगा श्रमिकों को सही समय पर मजदूरी भुगतान भी किया जाने लगा। चूंकि, प्रशासनिक दबाव था सारे के सारे कार्य मनरेगा के अधिनियम के मुताबिक होने लगा। आज भी इस उपलब्धि को जहानाबाद के अधिकारी भुनाते रहते हैं। वहीं गैर सरकारी संस्थाओं के सहयोग से महिला मेट तैयार करने पर बल दिया गया। सारी औपचारिकता निर्वाह करके गैर सरकारी संस्था प्रगति ग्रामीण विकास समिति को एक साल में 990 महिला मेट गांवघर से निकालना है। इनको प्रशिक्षित भी करना है। इसमें निर्धनतम क्षेत्र नागरिक समाज का योगदान सर्वोपरि है।
इस बीच बिहार राज्य पंचायत रोजगार सेवक संघ,जिला इकाई, गया के आह्वान पर सभी प्रखंड के पंचायत रोजगार सेवकों ने 7 जुलाई,2013 से सामूहिक इस्तीफा दिया गया है। जो मनरेगा निर्देशिका के विरूद्ध है। इस बाबत बीडीओ एवं पीओ के माध्यम से डीआरडीए गया के आदेश ज्ञापांक 1795 दिनांक 5 जुलाई,2013 के द्वारा सूचना दी जा चुकी है कि वे अपना प्रभार पंचायत सचिव को सौंपकर विधिवत एवं व्यक्तिगत रूप से त्याग-पत्र दें एवं ऐसा त्याग-पत्र न देने की स्थिति में अपने दायित्वों का पूर्ववत निर्वहन करते रहेंगे। अब गया जिले के प्रशासन के पाले में गेंद है। जो मनरेगा सदृश्य महत्वपूर्ण लोक कल्याणकारी कानून को किस तरह से पंचायत रोजगार सेवक की गैर मौजूदगी में क्रियान्वयन कर पाता है।
अब देखना है कि गया के जिलाधिकारी साहब अपने जहानाबाद जिले के अनुभव को कब और कितने विलम्ब से अमल में लाते हैं?
आलोक कुमार