Saturday 21 September 2013

इन मुसहरों की तकदीर और तस्वीर नहीं बदल सकी

उम्मीदवारों की तकदीर चमकाने में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं महादलित मुसहर समुदाय के लोग



दानापुर। अभी तक यह समझा जाता था कि बंधुआ मजदूर गांव में रहते हैं और दबंग किसानों के की खेतीबारी में योगदान करते हैं। इसके बदले में किसान 15 कट्टा जमीन देता है। इसमें बंधुआ मजदूर फसल उत्पन्न करता है। इस दरम्यान किसान के और अपने खेत में पैदावार करता है। खेत में काम करने से बंधुआ मजदूर को भोजन दिया जाता है। अलग से भोजन के लिए पात्र रखा जाता था। इसमें बंधुआ मजदूर भोजन किया करते थे। उसी तरह शहर में भी बंधुआ मजदूर रहता है। इसे किसान 15 कट्टा जमीन नहीं देता है। उसके बदले में कैश दिया जाता है। आप अपनी मर्जी से कैश ले सकते है। अगर आप कैश लेते हैं तो मजदूरी कम करके दिया जाएगा। इसी तरह की खबर प्राप्त हुई है।

उल्लेख्य है कि सुशासन सरकार के कार्यकाल में ही महादलित आयोग बना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महादलित आयोग के प्रथम अध्यक्ष विश्वनाथ ऋषि को बनाये। इनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद आयोग के अध्यक्ष सम्प्रति उदय मांझी हैं। इसका मतलब अबतक महादलित मुसहर समुदाय के लोग ही आयोग के अध्यक्ष पद को हथिया में सफल हो सके हैं। सूबे में इनकी आबादी कोई 35 लाख से कम नहीं है। मुसहर समुदाय दर्जनों लोकसभाई सीट और  अनेकों विधानसभाई सीट के उम्मीदवारों की तकदीर चमकाने में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। दुर्भाग्य से आजादी के 66 साल तक अन्य की तकदीर और तस्वीर बदलते रहे। परन्तु इन मुसहरों की तकदीर और तस्वीर नहीं बदल सकी है। शासक और विरोधी दलों की गलत कार्य नीति के कारण मुसहर का कल्याण और विकास नहीं हो सका। वहीं गैर सरकारी संस्थाएं मुसहरों की गरीबी भरी दास्तानों की तस्वीर खींचकर फंड मंगाकर चांदी काटती रही। इस सभी के कारण महादलित मुसहर समुदाय आज भी बंधुआ मजदूर बनने को बाध्य हैं। आपको बहुत जाने की जरूरत नहीं है। राजधानी के बगल में ही नासरीगंज है। यहां पर बिस्कुट फैक्ट्री है। इसी राह में नासरीगंज मुसहरी है। इसी मुसहरी में बंधुआ मजदूर रहते हैं।

सरकार की उदासीनता के कारण बंधुआ मजदूर बनते हैं:
सरकार की उदासीनता के कारण बंधुआ मजदूर बनते हैं। इस समय सरकार के द्वारा महादलितों को स्व रोजगार करने के लिए राशि विमुक्त नहीं की जा रही है। आरंभ में समेकित ग्रामीण विकास योजना के द्वारा रोजगार करने के लिए राशि विमुक्त की जाती थी। जो अब बंद हो गया है। इसी कारण से मुसहर समुदाय को काफी कष्ट उठाना पड़ रहा है। रोजगार के अभाव में महुआ और मिठ्ठा से दारू बनाने लगे हैं। इसको मुसहर समुदाय के लोग आजीविका से जोड़ दिये हैं। लाख प्र्रयास करने के बाद भी अवैध महुआ दारू का निर्माण और बिक्री पर अंकुश नहीं लगाया जा सक रहा है। इसको रोकने में उत्पाद विभाग अक्षम साबित हो रहा है। दौड़धूप करने में लाखों रूपए पेट्रोल में खर्च किया जाता है। छापा मारने जाते हैं और खाली हाथ बैरंग लौट जाते हैं।

शहरी बंधुआ मजदूर एक मुश्त राशि लेते हैं:
नासरीगंज मुसहरी में रहने वाले चुन्नी मांझी का कहना है कि इस मुसहरी के दर्जनों लोग मालिक के यहां बंधुआ मजदूर बनकर जिदंगी बर्बाद कर रहे हैं। खुद मालिक बंधुआ मजदूर बनाने को उत्सुक नहीं रहते हैं। मुसहरों की परिस्थिति मालिकों के यहां खींचकर ले जाती है। अपनी समस्या के अनुसार मालिक से कर्ज लेते हैं। शादी की समस्या और बीमारी की समस्याएं अधिक होती है।

ग्रामीण बंधुआ मजदूरों को 15 कट्टा जमीन दी जाती हैः
आज भी ग्रामीण क्षेत्र में बंधुआ मजदूर हैं। इनको मालिक 15 कट्टा जमीन जोत आबाद करने के लिए देते हैं। मजदूर मालिक और खुद अपना काम करता है। इसके अलावे भोजन दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र के बंधुआ मजदूर होशियार हो गये हैं। मजदूर नहीं चाहते हैं कि मालिक सरकारी कानून में फंस जाए। इसी लिए खुल कर बंधुआ मजदूरों के बारे में बताते ही नहीं है।

रोजगार में एक बार नहीं दो बार फेल हो गया अशोकः
इस पर अशोक मांझी कहते हैं कि हम ने मालिक से रोजगार करने के लिए कर्ज लिये हैं। दो बार कर्ज लेकर दो बार बंधुआ मजदूर बने हैं। पहली बार 10 हजार रूपए लेकर 4 सूअर खरीदे थे। जो कुछ दिनों के बाद मर गया। तब मालिक एक सौ पचास रूपए मिलता था। उस समय आम मजदूरी 200 रूपए चल रहा था। सभी तरह के मजदूरों को दो वक्त का खाना मिलता था। इस तरह मजदूरी में 50 रूपए कम मिलता था। ली गयी रकम को पूरा करने के बाद दूसरी बार 17 हजार रूपए लिये थे। इससे 8 सूअर खरीदे थे। इस बार भी सूअर मर गया। इससे काफी नुकसान हुआ।

सरकार को क्या करना चाहिएः
सरकार को चाहिए कि बंधुआ मजदूरों की पहचान कर बंधुआ की दासता से मुक्त करा दें। ऐसे लोगों को ईमानदारी से पुनर्वास करने की व्यवस्था करें। बंधुआ मजदूरों की पहचान हल्ला मचाकर नहीं की जा सकती है। उसे धीरज से गांव और शहर में जाकर लोगों के साथ मिल मिलाप करके पहचान की जा सकती है। इसमें एनजीओ से सहायता ली जा सकती है तो ग्रास रूट में कार्यशील हैं।
आलोक कुमार