Friday 6 September 2013

समाज की संस्कृति बनती शराब

                
                  
आधुनिकता के दौर में नशापन एक फैशन सिम्बल बन गया है, खासकर युवाओं के बीच। आज जगह-जगह पर लाइसेंसी और गैरलाइसेंसी शराब अड्डों की भरमार है। शहरों में नये-नये पॉब खुल रहे हैं, जहां 15 से 30 साल के युवक-युवतियों की भीड़ दिखाई देती है, जो शराब के अलावे डेनराइट, गांजा, चरस, ड्रग्स, हुका, सिगरेट जैसी नशा का सेवन धड़ले से करते दिखाई देते हैं। कभी-कभी तो पॉब में युवाओं की भीड़ समाज को शर्मसार कर देती है। जबकि यह उम्र युवाओं के भविष्य निर्माण का होता है। लेकिन इन युवाओं का क्या होगा, जो अपना सुनहरा भविष्य गढ़ने के बदले अपना भविष्य अंधकारमय में डाल रहे हैं? इन युवाओं की स्थिति चितंनीय इसलिए भी है क्योंकि इनपर ही हमारा समाज, राज्य और देश का भविष्य निर्भर करेगा। इन्हीें युवाओं की नीति-अवनति पर देश की तरक्की निधार्रित होती हैं। लेकिन क्या युवाओं को इसे कोई फर्क पड़ता है? अब सवाल यहॉ ये उठता है कि नशापन का प्रचलन कहॉ से रहा है और इतना हावी होने का क्या कारण है?
सवाल यह भी है कि क्या नशा समाज की संस्कृति बन गई है? क्या इसके लिए समाज या सरकार दोषी है या युवा खुद जिम्मेदार है? अगर सच पूछा जाए तो ये तीनों वर्ग इसके लिए जिम्मेवार है। इसका विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि शराब की प्रथा हमारे समाज की ही देन है। चूंकि कई समुदायों में हड़िया-दारू का प्रयोग पर्व-त्योहारों में या अन्य सामाजिक कार्यों जैसे जन्म, मरण, शादी-विवाह इत्यादि में जरूरी माना जाता है। यहां तक कि नशा भागवान को उपहार स्वरूप चढ़ाया जाता है। यह समाज का पवित्र प्रसाद होता है, जिससे बच्चें से लेकर बुढ़े तक इसको ग्रहण करते हैं। इस तरह से नशा का प्रचलन धीरे-धीरे समाज में बढ़ता गया और आज एक जरूरी सामान के रूप में बाजारों में बिकने लगा। महिलाएॅ पहले सिर्फ पर्व-त्योहारों में हड़िया बनाती थी लेकिन अब युवाओं के बीच ज्यादा प्रचलन होने की वजह से अब महिलाएॅ इनका कारोबार कर रही है और अच्छा-खासा पैसा कमा रही है और खुद भी इसका सेवन कर रही हैं।
समाज इस बढ़ते प्रचलन को संस्कृति का हवाले देते हुए खुलेआम हड़िया-दारू का बिक्री सड़क किनारे कर रही है। इस प्रचलन से हमारे समाज पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कामकाजी शराबी लोग अपने परिवार का पालन-पोषण छोड़कर कर शराब में ही पैसा उड़ा दे रहे हैं तथा बहुत से लोग शराब पीने की वजह से अपने पुरखा की संम्पति तथा जमीन को कौड़ी के भाव में बेच रहे हैं। बच्चे पैसे की कमी से स्कूल नहीं जा पा रहें है, आये दिन झगड़े मार पीट और हत्याएॅ भी होती है। एैसे माहौल में बच्चें के दिमाग में हिंसक प्रवृति का जन्म होता जा रहा है और वह गलत रास्ते को अपना ले रहा है। बच्चों के जेल में अधिकतर कैदी शराबी घर से तालुक रखते हैं। इन बच्चों के निजी जीवन के बारे में पूछ-ताछ करने से यह पता लगता है कि ये बच्चे घर के महौल से तंग आकर चोरी, लूट एवं हत्या जैसे शंगीन जुर्म तक को अंजाम दिये हैं। कितनों ने अपना घर छोड़कर दूसरे के घर में मजदूरी कर जीवन यापन कर रहें है। बहुत से बच्चे पलायन कर दूसरे राज्यों में बाल मजदूरी तथा बंधुवा मजदूरी कर रहे हैं। एैसी परस्थितियों में इन बच्चों के भविष्य का क्या होगा?
समाज के साथ-साथ सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं है। सरकार शराब से टैक्स के रूप में भारी मुनाफा कमाती है या यह मान लिया जाये कि नशा के बिक्री से मुफ्त में सरकारी खजाना भरता है। इसलिए सरकार शराब दुकानों को लाइसेंस देकर शराब का अड्डा बना दिया है। बहुत से शराब फैकट्री चलाने में सरकार में शामिल लोगों भी है। शराब अड्डों में आए दिन अश्लील हरकतें होती रहती है। इन दिनों महिलाओं के खिलाफ बढ़ रही हिंसा में नशा का सबसे बड़ा भूमिका है। शराब ठिकानों में नाबालिकों की संख्या सबसे ज्यादा दिखती है। ये लड़के-लड़कियॉ अपने अभिभावकों से पढ़ाई करने के नाम से पैसे लेते है और मौज मनाते हैं। क्या उन्हें इस बात की कभी चिंता है कि उनके माता-पिता कितना मेहनत से पैसा कमाते हैं? शराबी युवा इस बात पर घमंड करते हैं कि वे शराब को पी रहे हैं लेकिन असलियत में शराब ही उनको पी रहा है। और जिस तरह से यह प्रचलन जोरों पर है, यही शराब आने वाले समय में समाज, राज्य को देश को भी पीयेगा।
 - बरखा लकड़ा -

लेखिका

स्वतंत्र पत्रकार भी हैं.