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छठ घाटों पर मेला-सा का दृश्य उत्पन्न हो जाता है। यहां पर चाय, मिठाई, बैलून, आइसक्रीम आदि बेचने वालें दुकान खोल लेते हैं। बच्चे तो बच्चे सयाने भी मजा लेने से बाज नहीं आते हैं। हालांकि प्रशासन के द्वारा आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगा दिया था। फिर भी बच्चों को पटाका छोड़ते देखा गया।
पटना।
आज उदयीमान भगवान
दिवाकर को छठव्रतियों
ने अर्घ्य अर्पित
किये। इसके साथ
ही लोक आस्था
का चार दिसवीय
महापर्व छठ का
समापन हो गया।
6 नवम्बर से नहाय
खाय के साथ
महापर्व शुरू हुआ।
दूसरे दिन 7 नवम्बर
को खरना सम्पन्न
हुआ। 8 नवम्बर को अस्ताचलगामी
भगवान भास्कर को
प्रथम अर्घ्य अर्पित
किये गये। आज
9 नवम्बर को उदयीमान
भगवान दिवाकर को
अर्घ्य अर्पित किये गये।
इस अवसर पर
अनेक लोग कष्टी
छठ भी किये।
महापर्व छठ के
समापन पर ‘प्रसाद’
वितरण करने दौर
शुरू हो गयी।
छोटे-बड़े लोग
छठव्रतियों के पैर
छूकर आर्शीवाद ग्रहण
किये।
क्या
है कष्टी छठ
भगवान
भास्कर के सक्षम
मन्नौती की जाती
है। अगर भगवान
भास्कर मन्नौती पूर्ण कर
देंगे। तो बाजा
के साथ छठ
पूजा करेंगे। कोई
कष्टी छठ करने
की मन्नौती करते
हैं। इस में
छठव्रती को सूर्य
देवा को दण्डवत
करते गंगा नदी,
पोखरा, तालाब आदि की
ओर जाना पड़ता
है। जिस जगह
पर व्रती दण्डवत
करती है। उस
जगह पर लकीर
खींच देती हैं।
उसके हाथ में
लकड़ी होती है।
उसी लकड़ी से
लकीर खिंचते चली
जाती हैं। उसी
लकीर पर जाकर
पुनः दण्डवत करती
हैं। दण्डवत करते
समय लोग व्रती
को स्पर्श करके
आर्शीवाद ग्रहण करते हैं।
ऐसा करने से
पुण्य प्राप्त होता
है। आजकल पुरूष
भी व्रत करते
हैं।
वहीं
छठ घाटों पर
मेला-सा का
दृश्य उत्पन्न हो
जाता है। यहां
पर चाय, मिठाई,
बैलून, आइसक्रीम आदि बेचने
वालें दुकान खोल
लेते हैं। बच्चे
तो बच्चे सयाने
भी मजा लेने
से बाज नहीं
आते हैं। हालांकि
प्रशासन के द्वारा
आतिशबाजी पर प्रतिबंध
लगा दिया था।
फिर भी बच्चों
को पटाका छोड़ते
देखा गया।
आलोक
कुमार