पटना। आखिर ग्रामीण महिलाओं ने दिल की बात जुबां पर ला ही दी। जन संगठन एकता परिषद के द्वारा आवासीय भूमिहीनों को जमीन दिलवाने के लिए धारधार कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जा रहा है। इस दिशा में केन्द्र और राज्य सरकार भी उदासीन है। केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाने और सभी को घर के अधिकार कानून बनाने में विलम्ब कर रही है। अभी केन्द्र सरकार के समक्ष महिला कृषक अधिनियम 2005 विचाराधीन है। सरकार अधिनियम को कानून बनाने की दिशा में पहलकदमी नहीं कर रही है। वहीं राज्य सरकार किसी तरह से आवासीय भूमि देकर दामन पाक साफ करने के प्रयास में है। प्रायः हरेक वक्ताओं ने भूमि को ही केन्द्र में रखकर महिला किसानों के मुद्दे को उछालते रहे।
एकता परिषद के राष्ट्रीय समन्वयक प्रदीप प्रियदर्शी ने कहा कि जहां पर नरसंहार करके धरती को लाल कर दिया जाता था। आज गैर सरकारी संस्थाओं और ग्रामीणों के सहयोग से लाल धरती के बदले हरी पट्टी में तब्दील कर दी गयी है। भोजपुर, गया, अरवल,जमुई,पश्चिमी चम्पारण,पूर्वी चम्पारण,सहरसा,मधेपुरा आदि जिलों में सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे है। प्रारंभ में स्वयं सहायता समूह के सदस्या राशि जमा करके पट्टा पर खेती करते हैं। पश्चिम चम्पारण और जमुई में वनभूमि को हथिया कर वनभूमि पर खेती करते हैं। वनभूमि पर रहने वाले आदिवासी और गैर आदिवासियों को 13 दिसम्बर,2005 के पहले रहने का प्रमाण देने पर वनाधिकार कानून 2006 के तहत वनभूमि का पट्टा देकर मालिकाना हक देना है। जो बिहार में मंथरगति से संचालित है।
आगे प्रदीप प्रियदर्शी ने कहा कि खेत में तीन हिस्सा वाले कार्य महिलाएं ही करती है। एक हिस्से का कार्य पुरूष किया करते हैं। तब खेती कार्य में महिलाओं की पहचान ही नहीं है। उपेक्षा का दंश झेलती हैं। आज भी बाबा आदम की बात करते हैं कि हल शुभ होता है। इसी कारण अशुभ महिलाओं को हल चलाने पर पाबंदी है। अगर महिलाएं खेत में हल चला देगी तो अकाल और सुखाड़ पड़ जाएगा। इसको नकारकर प्रगति ग्रामीण विकास समिति से जुड़ी महिलाओं ने पटना जिले के पालीगंज,विक्रम और दुल्हनगंज प्रखंड और भोजपुर जिले के सहार प्रखंड की महिला सदस्यों ने पट्टे पर खेत लेकर हल चलाकर सामूहिक खेती को अंजाम दे चुकी हैं। वहां पर न अकाल और न ही सुखाड़ ही आया। बल्कि सामूहिक खेती करने वालों के घर में बहार आ गया। इसके कारण स्कूल नहीं जाने वाले बच्चे स्कूल जाने लगे। भूख लगने पर बच्चों को भोजन देने के बदले में पानी पीलाकर बच्चों को सुला देने वाली मां पानी के बदले भोजन खिलाने लायक हो गयी हैं।
आगे कहा कि पूरे देश में बिहार अव्वल है जहां कृषि कैबिनेट बनाया गया है। सरकार से आग्रह किया है कि कृषि कैबिनेट को महिला केन्द्रित कार्य बनाने वाला बनाना चाहिए। अब लोगों के सोच में परिवर्तन लाना चाहिए। उन्होंने नारा दिया, जो जोते, बोये काटे धान वहीं खेत का मालिक किसान। इस नारा पर सभागार में जोरदार ताली बजनी शुरू हो गयी।
पश्चिमी चम्पारण जिले के बगहा दो प्रखंड में रहने वाली ज्ञान्ति देवी ने कहा कि भले ही हम लोग अनपढ़ हैं। मगर खेती कार्य निपूर्णता के साथ कर लेते हैं। खेत में सभी चीज उपजा लेते हैं। केवल नमक और किरासन तेल उत्पन्न नहीं कर पाते हैं। पहले हम लोग धनिया को बोने में दिक्कत महसूस करते थे। 7 दिन समय लगता था। अब जानकारी मिलने पर सिर्फ 5 दिन के अंदर धनिया अंकुरित हो जाता है। उसके बाद खेत में बो देते हैं। पश्चिम चम्पारण के लोग वनभूमि पर खेती करते हैं। वनभूमि कानून 2006 के तहत वनभूमि का पट्टा नहीं दिया जा रहा है। जमीन का पट्टा देने के बदले जेल में बंद कर दिया जा रहा है। झूठा मुकदमा ठोंक दिया जाता है।
आलोक कुमार