पटना।
सर्वविदित है कि
भारत पुरूष प्रधान
देश है। वहीं
पुरूष प्रधान खेत
भी हो गया
है। वहां पर
कार्यरत व्यक्ति को किसान
कहते हैं। राजा
के बदले रानी
है। मगर किसान
के बदले में
क्या शब्द है?
इसी लिए हम
लोग खेत की
आड़ी से भोजन
की थाली तक
अहम किरदार अदा
करने वाली वीरांगनाओं
को महिला किसान
कहते हैं। इन
महिलाओं का उत्पादन
से वितरण में
योगदान रहता है।
वहीं 200 से 400 वर्ष पहले
तक घर के
तमाम सम्पति को
पारिवारिक सम्पति कहा जाता
था। इस लिए
जमीन पर महिलाओं
का अधिकार ही
नहीं रहा। मगर
महिलाओं की मजबूत
कंधे पर पूजा
पाठ और नेतृत्व
की जिम्मेवारी रख
दिया गया। इस
तरह की अवधारणाओं
को कल्याणकारी राज्य
की सरकार के
द्वारा बदलाव किया जा
रहा है। अब
महिलाओं को मान-सम्मान,पहचान और
अधिकार दिये जा
रहे हैं। इंदिरा
आवास योजना के
तहत मकान बनाते
समय और जमीन
का पर्चा देते
समय महिला और
पुरूष के नाम
से संयुक्त नाम
से वितरण किया
जा रहा है।
योजना
एवं विकास विभाग
के प्रधान सचिव
विजय प्रकाश ने
महिला किसान सम्मेलन
को संबोधित करते
हुए आगे कहा
कि यदि हम
राज्य में महिला
किसानों की संख्या
पर गौर करते
हैं तो पाते
हैं कि 1961 में
16 प्रतिशत,1971 में 2 प्रतिशत,2001 में
5 प्रतिशत और 2011 में 7 प्रतिशत
महिला किसान हैं।
कुल मिलाकर 30 लाख
महिला किसान है।
वहीं किसानों की
कुल संख्या 1 करोड़
61 लाख है।
महिला
किसानों की आंकड़ाबाजी
करते-करते प्रधान
सचिव सरकार के
द्वारा महिलाओं के पक्ष
में किये कार्यों
को गिनाने लगे।
त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत में
50 प्रतिशत, शिक्षिकाओं की बहाली
में 50 प्रतिशत, पैक्स में
50 प्रतिशत और पुलिस
विभाग के इंस्पेक्टर
की बहाली में
35 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं को
दे रहे हैं।
समेकित बाल विकास
परियोजना महिलाओं के ही
जिम्मे हैं। आंगनबाड़ी
केन्द्र में 90 लाख सेविका
और 90 लाख सेविका
सेवारत हैं। इसमें
सीडीपीओ भी महिला
ही हैं। अभी
स्वयं सहायता समूह
की महिला सदस्यों
की संख्या 64 लाख
61 हजार है। अभी
1 लाख 10 हजार स्वयं
सहायता समूह है।
इसे 5 साल में
बढ़ाकर 10 हजार कर
देना है। तबतक
1 करोड़ सदस्य भी हो
जाएंगे। इस दिशा
में मेजर परिवर्तन
हो रहा है।
सरकार सचेत होकर
कार्यशील है।
शिक्षा
के संदर्भ में
जिक्र करते हुए
आगे कहा कि
2001-11 तक 20 प्रतिशत साक्षरता दर
में वृद्धि हुई
है। 53 प्रतिशत से 73 प्रतिशत
साक्षरता दर में
इजाफा हुई है।
वहीं समाज के
किनारे रहने वाले
महादलित मुसहर समुदाय के
बारे में कहा
कि 1961 में ढाई
प्रतिशत से बढ़क
2001 में 9 प्रतिशत साक्षरता दर
हो सकी है।
इस समुदाय में
साक्षरता दर की
रफ्तार काफी धीमी
है। अगर इसी
तरह का हाल
रहा तो 500 साल
में साक्षर हो
सकेंगे। सभागार में बैठे
महिला किसानों से
कहा कि महिला
किसान होने का
हक लेने के
साथ शिक्षा का
अधिकार भी लेने
की जरूरत है।
तब जाकर अधिकार
मिलेगा। हम तो
शिक्षा के क्षेत्र
में लड़का और
लड़की की संख्या
में समानता के
डगर पर है।
इसी तरह खेत
में पुरूष और
महिला को समान
अधिकार समान पहचान
की दिशा में
कारगर कार्य करने
की जरूरत है।
आलोक
कुमार