
दुनिया
भर में 2 प्रतिशत
से भी कम
औरतों के नाम
पर जमीन है
और उन्हें दुनिया
की कुल संपत्ति
में से 1 प्रतिशत
से भी कम
संपत्ति विरासत में मिलती
है। दुनिया की
आधी आबादी औरतों
की है। परन्तु
कुल आमदनी में
उनका हिस्सा सिर्फ
1/10 बैठता हैं ।
75 प्रतिशत महिलाएं कृषि कार्य
में लगी हुई
है जो कि
पुरूषों के 61 प्रतिशत के
मुकाबले कहीं अधिक
है। 90 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन
महिलाओं के द्वारा
किया जाता है
जबकि 55 प्रतिशत से अधिक
महिलाएं एनीमिया की शिकार
हैं। पुलिस थानों
में दर्ज होने
वाले सारे अपराधों
में 10 प्रतिश तमामले महिलाओं
के साथ मारपीट
के होते हैं।
महिलाओं की शिक्षा
दर 65 प्रतिशत है
जो पुरूषों की
82 प्रतिशत की अपेक्षा
काफी कम है।
आंकड़ों में फांसले
कहां है और
कितने गंभीर है।
कृषि के हर
एक पहलू में
सघनता से काम
करने के बावजूद
जब नीतियों, तकनीकों
और सेवाओं के
बारे में नीति
निर्धारक नीतियों का निर्माण
करते हैं तो
महिलाओं को नजर
अंदाज कर दिया
जाता है। और
इस तरह नीतियों
और रिवाजों में
जो जेंडर आधारित
भेदभाव की मानसिकता
है वह महिलाओं
के सामाजिक-आर्थिक
विकास में बाधक
बनती है।
एक
तरफ स्थिति ऐसी
है जहां महिलाएं
अपने अधिकारों के
लिए संघर्षरत हैं
और तमाम तरह
की मुश्किलों का
सामना कर रही
हैं दूसरी ओर
विभिन्न क्षेत्रों से ये
प्रयास हो रहे
हैं कि ये
परिदृश्य परिवर्त्तित हो। सरकार
की ओर से
भी कुछ प्रगतिशील
नीतियों और कानूनों
को लागू करने
का प्रयास किया
गया है। नीति
और कानून सोच
और उद्देश्य में
तो काफी संवेदनशील
और प्रगतिशील प्रतीत
होते हैं परन्तु
इनके क्रियान्वयन अपेक्षा
पर खरे नहीं
उतरे हैं। हिन्दू
उत्तराधिकार अधिनियम 2005 एक उदाहरण
है, यह कानून
पूरे परिदृश्य को
बदलने वाला साबित
हो सकता है
लेकिन कानूनी सुधार
के वास्तविक प्रभाव
को सुस्त और
ढीले-ढाले क्रियान्वयन
ने मंद कर
रखा है। चुनौती
दोनों दिशाओं में
है एक ओर
तो मौजूदा कानूनों
का प्रभावी क्रियान्वयन
और दूसरी ओर
जहां कानूनी प्रावधानों
की जरूरत है
वहां कानूनी प्रावधान
लागू किए जाएं।
सिविल सोसायटी की
ओर से हर
स्तर पर निरंतर
प्रयास किए जा
रहे हैं। सामुदायिक
प्रयासों में महिलाएं
जो अपनी मांगों
के लिए संघर्ष
कर रही हैं
उनको सहयोग देने
का प्रयास किया
जा रहा है
तो दूसरी ओर
उनके इन प्रयासों
को जन वकालत
से जोड़कर नीतिगत
परिवर्तन लाने के
लिए सघन प्रयास
किए जा रहे
हैं।
अनुभव
ये दर्शाते हैं
कि यदि महिलाओं
के संपत्ति और
जमीन पर अधिकार
सुनिश्चित किए जाएं
तो यह न
केवल खाघ और
आजीविका सुरक्षा को सुदृढ़
करता है बल्कि
व्यापक विकास में भी
सहयोगी होता है।
महिलाओं के विरूद्ध
होने वाली हिंसा
में भी तुलनात्मक
रूप से कमी
आती है। ग्रामीण
क्षेत्रों में इस
बात की और
आवश्यकता है कि
सामाजिक और कानूनी
तौर पर महिलाओं
को किसान का
दर्जा सुनिश्चित किया
जाए। इस प्रयास
में समाज के
हर वर्ग के
द्वारा अपनी उर्जा
लगाने की जरूरत
है।
ऑक्सफैम
इंडिया महिलाओं के इसी
प्रयास में उनका
साथ देना चाहते
है और यह
प्रयास करता है
कि समाज के
अन्य चिंतित/संबंधित
वर्ग इस प्रयास
में अपनी उर्जा
लगा सकें। इन्हीं
प्रयासों की कड़ी
में ऑक्सफैम इंडिया
अपने सहभागी संस्थाओं
के साथ मिलकर
एक ऐसा मंच
देने का प्रयास
कर रहा है
जहां महिलाएं आकर
अपने प्रयासों,उर्जाओं,सफलताओं और सामूहिकता
का जश्न मना
सकें।

आलोक
कुमार