अभी
तक ट्रेन में सवारी गाड़ी से ही सफर कर पायी हूं। एक्सप्रेस पर नहीं चढ़ी हूं। यह कथन
पूनम कुमारी का है। वह महादलित मुसहर समुदाय की बेटी हैं। पटना जिले के बिहटा प्रखंड
के कोरहर मुसहरी में रहती हैं। पूनम कुमारी के पिताश्री भरोसन मांझी और मां जसिया देवी
हैं। इनके 6 संतान हैं। 4 लड़कियां और 2 लड़के हैं। फिलवक्त नारी गुंजन के द्वारा संचालित
राजकीय मध्य विघालय में 5 वीं कक्षा में अध्ययनरत हैं। पूनम कुमारी की बहन झुन्नी कुमारी
4 थी, रूण्णी कुमारी 2 री,पंकज कुमार 2 री कक्षा में अध्ययनरत हैं। वहीं गुलाबी कुमारी
और मंजित आंगनबाड़ी केन्द्र में जाते हैं।
बिहार
महादलित विकास मिशन के सहयोग से नारी गुंजन के द्वारा दानापुर, पटना और चांद चौड़ा,
गया में प्रेरणा छात्रावास संचालित है। यहां पर महादलित मुसहर समुदाय की बेटियों को
छात्रावास में रखकर शिक्षा दी जाती है। यहां पर आठ क्लास तक पढ़ाया जाता है। इसके बाद
नौवीं और दसवीं कक्षा की छात्राओं को छात्रावास में रखकर बाहर के विघालयों में जाकर
अध्ययन करने की सुविधा दी जाती है।
अभी तक पूनम कुमारी छुकछुक और रूकरूक वाली सवारी
गाड़ी से सफर की है। गैर सरकारी संस्था की संस्थापक पद्मश्री सुधा वर्गीज के सहयोग से
संचालित प्रेरणा छात्रावास में केवल 2 साल पहले पढ़ने आयी थीं। साइकिल वाली दीदी से
ख्याति प्राप्त सुधा दीदी के चलते ही पूनम कुमारी को विदेश जा सकीं। उसे प्लेन में
चढ़ने का प्रथम अवसर प्राप्त हो सका है। अबतक ट्रेन से सफर करने वाली पूनम कुमारी को
प्लेन में गजब लग रहा था। प्लेन में चढ़ते समय थोड़ा डर रही थीं। वह कहती हैं कि एक ही
मिनट में किधर से किधर तक चले जा रहे थे। कुछ भी पता ही नहीं चल पा रहा था। जीवन में
अव्वल अनूठा अनुभव रहा।
जी
हां, बिहार की बेटी को सितम्बर माह में अवसर मिला । वह भी अमेरिका जाने के लिए। भले
ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को अमेरिकन सरकार वीजा देने में नाकुर करें।
मगर इस महादलित मुसहर की बेटी को वीजा मिल गया। अमेरिका में संयुक्त राष्ट्रसंघ की
ओर से महा बैठक बुलायी गयी थी। उसे अपने बिहादरी मुसहर समुदाय के बारे में विस्तृत
जानकारी को साझा करनी थी। वह अपने घर के आसपास के महादलित मुसहर समुदाय की बस्ती को
जोड़ते हुए बात करनी शुरू कर दी। पटना जिले के बिहटा प्रखंड के कोरहर मुसहरी में रहती
हैं। आज भी याहां के लोग समाज के किनारे ही ठहर गये हैं। केवल कोरहर मुसहरी ही नहीं
है बल्कि बिहार के अन्य जिलों में कमोवेश स्थिति समान है। सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति
काफी विस्फोटक है।
आगे
कहती हैं कि कोरहर मुसहरी में 24 घर है। करीब 115 की संख्या में मुसहर समुदाय के लोग
रहते हैं। हालांकि कुछेक लोगों को इंदिरा आवास योजना के तहत मकान बन सका है। परन्तु
दलालों की कृपा से अधूरा ही रह गया है। इसके चलते झुग्गी में रहने को बाध्य हैं। सभी
बाधाओं को पारकर संगीता कुमारी और राजकुमार मैट्रिक उर्त्तीण हो सके हैं। फिलवक्त संगीता
कुमारी आई.ए. में अध्ययनरत हैं। राजकुमार पढ़ाई छोड़ मजदूर बन गया है।
अभाव
में घोंघा और चूहा खाकर पली बढ़ी अमेरिका में खुब भाव लुटी। गोरे लोगों के बीच में कालेपन
का अहसास हो रहा था। सब अंग्रेजी में बतिया रहे थे। हम ठीक तरह से हिन्दी भी बोलने
में असर्मथ महसूस कर रहे थे। मगही और हिन्दी के गठजोड़ से मुसहर समुदाय के बारे में
बता रहे थे। हमलोग काफी पीछे रह गये हैं।
ठीक तरह से खाना नहीं खा सकते हैं। पेट भरने के लिए चूहा,घोंघा,सितुआ, मेढ़क आदि खाते
हैं। पहले सुअर पालन करते थे। सुअर के मांस भी खाते थे। अब मुसहर समुदाय से सुअर और मांस छिना गया है। मंहगी
के कारण केवल दर्शन ही कर पाते हैं। जिस प्रकार सुअर को रखने के लिए घर बनाया जाता
है। ठीक वैसे ही सुअर के बखोरनुमा घर में रहते हैं। हमलोग सड़क, रेलवे लाइन,पोखरा,नदी,
पईन,चाट आदि के किनारे रहते हैं। वहां पर सरकार के द्वारा बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध
नहीं करायी जाती है। वहां से आसानी से काम करने के लिए खेत में चले जाते थे। अब खेत
में भी काम नहीं मिलता है। इसके वैकल्पिक व्यवस्था में महुआ और मिठ्ठा से दारू बनाया
जाता है। खुद देशी दारू बनाकर बिक्री करते हैं। महिलाएं और पुरूष दोनों दारू पीते हैं।
ऐसा करने से समय से पहले ही स्वर्गलोक चले जाते हैं। एक बार बीमार पड़ने के बाद इलाज
के अभाव में दम तोड़ देते हैं। मंहगी दवा और चिकित्सा सेवा होने से अंधविश्वास के चक्कर
में पड़कर झार-फूंक करने वालों के चक्कर में पड़ जाकर मौत को गले लगा लेते हैं।
सरकार
और गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा मुसहर समुदाय को ऊपर उठाने का प्रयास किया जाता है।
जो पर्याप्त है। सरकारी योजनाओं को लागू करने में धांधली की जाती है। योजना और दलाल
के बीच चोली-दामन का साथ है। इसी लिए इंदिरा आवास योजना से सही सलामत घर नहीं बन पाता
है। इंदिरा आवास योजना से घर बनते-बनते रह जाता है। किसी तरह से सपरिवार अधूरे ही मकान
में रहने को बाध्य होते हैं। एक अनुवाद थीं जो अंग्रेजी में अनुवाद करती चली जा रही
थी।
वहां पर सभी लोग मिठाई खाने के लिए देते थे। तो उस
समय नानी की याद आती थी। मेरी नानी का नाम अमरूदीया देवी है। वहां पर बहुत अमरूद होता
है। प्रायः बिहटा से पुनपुन जाने पर अमरूद खाने का मौका मिल जाता था। खैर, अमेरिका
में मिठाई के बदले केला खाना पंसद करती थी। इस तरह प्रथम बार विदेश भ्रमण का अनुभव
रहा।
आलोक
कुमार