Sunday 28 April 2013

दुःखित के दुःख को दूर करने में बकरी बनी सहायक

दुःखित के दुःख को दूर करने में बकरी बनी सहायक

बिक्रम। एक ओर सरकार तो दूसरी ओर गैर सरकारी संस्थाओं का भी प्रयास हो रहा है कि जो अभी तक समाज के किनारे ठहर गये हैं उनको किस तरह से समाज के मुख्यधारा में जोड़ा जा सके ? उनके कल्याण और विकास करने के लिए नित दिन नये-नये उपाय निकाले जा रहे हैं। इसी सिलसिले में गैर सरकारी संस्था प्रगति ग्रामीण विकास समिति के द्वारा नवाचार के तहत बकरी पालन को गंवई क्षेत्र में उतारा है।
  अगर आपको बकरी पालन के धंधे को देखना है। राजधानी से कुछ ही दूरी पर स्थित पटना जिले के बिक्रम प्रखंड में जाना होगा। यहां के बिक्रम पंचायत के बेनी बिगहा टोला नामक गांव में महादलित मुसहर समुदाय के गरीब लोग रहते हैं। 
यहां पर महादलित मुसहर समुदाय के दुःखित मांझी हैं। गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यापन करते हैं। प्रमाणित खेतिहर भूमिहीन हैं। दुःखित मांझी की शादी राजकुमारी देवी के संग हुई है। अब इनके 6 बच्चे हैं। 4 लड़की और 2 लड़के हैं। आजादी के 65 साल के बाद जल,जंगल,जमीन में हिस्सेदारी नहीं मिलने के कारण महादलित मुसहर समुदाय समाज के किनारे रह गया है। यह समुदाय केन्द्र और राज्य में होने वाले मतदान में अमूल्य वोट देकर किसी की किस्मत चमकाने में आगे रहा है। भले ही इस समुदाय की तकदरी और तस्वीर नहीं बदली हो। आज भी इस समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति खराब है। बावजूद, इसके इसी अवस्था में दर-दर भटकने वाले महादलित अपने बच्चों को खिलाने, पिलाने,पढ़ाने एवं सयाने करने में जमकर पसीना बहाते रहते हैं।
  काफी मंथन करने के बाद पटना जिले के बिक्रम प्रखंड में सेवारत प्रगति ग्रामीण विकास समिति के कार्यकर्ताओं ने अपने कार्य विस्तार करते हुए महादलित मुसहर बहुल्य बेनी बिगहा टोला नामक गांव में जा पहुंचे। इस क्षेत्र में प्रभावशाली ढंग से कार्य करने वाले प्रगति ग्रामीण विकास समिति के कार्यकर्ताओं ने टोला के दुःखित मांझी की पत्नी राजकुमारी देवी से मुलाकात किये। राजकुमारी देवी के सहारे टोला की तमाम महिलाओं को एकत्रित किया गया। महिलाओं के साथ पुरूष और  बच्चे भी गये। सभी लोगों को समेटकर कार्यकर्तागण बैठक करने लगे। देश-प्रदेश-विदेश के बारे में सामाजिक-आर्थिक विश्लेशन करने लगे। मानव मूल्यों नैतिकता के पाठ पढ़ाने लगे।
 इसके बाद प्रगति ग्रामीण विकास समिति के बारे में बताते हुए बकरी पालन करने पर बल देने लगे। ग्रामीण परिवेश होने के कारण ग्रामीणों को बकरी पालन करने में किसी तरह की समस्या नहीं आने वाली थी। साथ ही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर बिघ्न नहीं पड़ने की बात बतायी गयी। पहले पहल ग्रामीणों की समझ से परे की बात लग रही थी। कुछ दिनों की तैयारी के बाद कार्यकर्ताओं के पाठ ग्रामीण समझने लगे। कार्यकर्ताओं ने अलग से बच्चों को बुलाकर शिक्षा के महत्व के बारे में बातचीत और जानकारी देने लगे। कार्यकर्ताओं के विचार और स्वभाव के कायल हो गये।
 बहुत जल्द ही टोला के सभी महिलाएं नियमित बैठक में आने-जाने लगे। गांव से निकलकर पंचायत में सामूहिक बैठक करने लगे। कभी तो कभी प्रखंड स्तर पर होने वाली बैठक और कार्यक्रमों में शिरकत करने लगे। बैठक में अधिकाधिक हिस्सेदारी होने पर सामूहिक निर्णय लिया गया कि अपने-अपने बच्चों को बाल विकास केन्द्र में अध्ययन करने के लिए भेजेंगे। कार्यकर्ताओं के कथनानुसार बच्चे बाल विकास केन्द्र में जाने लगे और कुछ बच्चे राजकीय मध्य विघालय में अध्ययन करने जाने लगे।
दुःखित मांझी कहते हैं कि प्रगति ग्रामीण विकास समिति के कार्यकर्ताओं के द्वारा पथ प्रदर्शन किया जा रहा है। समिति के कार्यकर्ताओं ने साल 2006 में महादलितों को बकरी पालन करने के लिए राशि दिये। सभी को 700 रूपए दिये गये। यह तय किया गया कि सभी लोग बकरी पालन के धंधे को आगे की ओर बढ़ाते रहेंगे। बकरी के बच्चे होने पर बच्चे को किसी अन्य व्यक्ति को देना होगा। इस तरह से पूरे टोले में बकरी पालन के धंधे को प्रसार करना था। इसमें हम लोग सफल हो रहे हैं।
  दुःखित मांझी ने अपने उपलब्धि और विकास के बारे में विस्तार से बताया कि 700 रूपए पाकर इस राशि से बकरी खरीद ली। जो बढ़कर 5 हो गया। उसमें से एक बकरी को अन्य व्यक्ति को दे दिये है। बकरी पालन से काफी फायदा हुआ। कुछेक साल के बाद कुछ बकरी को बेच दिये। बकरी बेचने से तीन हजार रूपए की प्राप्ति हुई। इस राशि से (तीन हजार रूपए ) से लीज पर 50 डिसमिल जमीन ले लिये। बाल-बच्चा और मजदूरों को लगाकर खेतीबारी करने लगे। खेतीबारी करने से मुनाफा हुआ। तकदीर चमक गयी। अब विकास के पटरी पर चल पड़े हैं। पहले हम लोग भूखे पेट सो जाते थे। अब ऐसा नहीं हो रहा हैं। हम लोग भूखे सोने को बाध्य नहीं हो रहे हैं। आज की तारीख में सभी जगहों से मार्ग खुली दिखायी दे रही है। बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हैं। आज भी बकरी पालन बदस्तूर जारी है।