Wednesday, 12 March 2014

दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर परामर्श में भाग लेकर लौटें


गया। इस जिले के फतेहपुर , मोहनपुर , अतरी आदि प्रखंडों के जंगल और पहाड़ की तलहटी में रहने वाले को वनाधिकार कानून 2006 के तहत वनभूमि का पट्टा नहीं मिल रहा है। बिहार में 80 फीसदी आवेदनों को अस्वीकृति कर दिया जाता है। जो सबसे खराब अनुप्रयोगों का रिकॉर्ड है। यह केवल बिहार का ही मसला नहीं है। बल्कि पैक्स कार्यक्षेत्र जिले का भी कमोवेश समान स्थिति है। इसी को लेकर दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर परामर्श किया गया। दिल्ली से लौटकर वीणा हेम्ब्रम , शिवबालक मांझी , जमुना मांझी , चन्द्रा मांझी और भोला यादव ने जानकारी दिए। यह सब प्रगति ग्रामीण विकास समिति से संगठित समिति के सदस्य हैं।
आखिर कब तक सरकार और राजनीतिक दलों के द्वारा देश और प्रदेश में रहने वाले जनजातीय लोगों को और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को लुभाते रहेंगे ? दिल्ली में गरीब लोग इकट्ठा हुए थे। जो अपने प्रदेश में वन अधिकार कानून 2006 के तहत वनभूमि पर पट्टा प्राप्त करने के लिए वन अधिकार समिति गठित कर लिए हैं। उपस्थित गरीब लोग और उपस्थित लोगों को संबोधित करने आए राजनीतिक दलों के लोग वन अधिकार अधिनियम को बेहतर ढंग से कार्यान्वयन नहीं करने पर चिंता जताई है और आदिवासी मुद्दों को चुनाव घोषणापत्रों में शामिल करने की कसम खाई।
छत्तीसगढ़ , उड़ीसा , बिहार , झारखंड और मध्य प्रदेश से वन अधिकार समितियों के लगभग 1,100 आदिवासी और गैर आदिवासी उपस्थित होकर वनाधिकार के क्रियान्वयन को लेकर अपनी चिंता व्यक्त किए। उनके सामने जंगल , जमीन और खनिज माफियाओं से चुनौती मिल रही है। साथ ही सरकार की नीयत ठीक नहीं है कि वनभूमि पर रहने वाले को कानूनी अधिकार के तहत पट्टा दे सके। यहां पर समितियों के सदस्यों ने अपने मुद्दों , अनुभव और चुनौतियों के बारे में आवाज बुलंद किए।
पैक्स ( निर्धनत क्षेत्र नागरिक समाज ) के निदेशक राजन खोसला ने पांच राज्यों में वनाधिकार कानून 2006 के कार्यान्वयन पर प्रकाश डाला। इन राज्यों के आदिवासी और वन भूमि पर रहने वाले 36.5 लाख आवेदनों दायर किया गया है। इन आवेदनों में 24.2 लाख को भूमि स्वामित्व देने के लिए आवेदन स्वीकार किया गया गया। कुल 12.3 लाख आवेदन खारिज कर दिया गया।
वनाधिकार कानून 2005 के तहत प्रावधान किया गया है जो अनुसूचित जन जाति के लोग 13 दिसम्बर 2005 के पूर्व वनभूमि पर रहते हैं और जो गैर अनुसूचित जन जाति के लोग 3 पीढ़ी से वनभूमि पर निवास करते हैं। उनको वनभूमि का पट्टा मिलेगा। मगर सरकार और नौकरषाहों के द्वारा बेतहर ढंग से क्रियान्वयन ही नहीं किया जा रहा है।

Alok Kumar

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