गया। इस
जिले
के
फतेहपुर ,
मोहनपुर , अतरी
आदि
प्रखंडों
के
जंगल
और
पहाड़
की
तलहटी
में
रहने
वाले
को
वनाधिकार
कानून
2006 के
तहत
वनभूमि
का
पट्टा
नहीं
मिल
रहा
है।
बिहार
में
80 फीसदी
आवेदनों
को
अस्वीकृति
कर
दिया
जाता
है।
जो
सबसे
खराब
अनुप्रयोगों
का
रिकॉर्ड
है।
यह
केवल
बिहार
का
ही
मसला
नहीं
है।
बल्कि
पैक्स
कार्यक्षेत्र
जिले
का
भी
कमोवेश
समान
स्थिति
है।
इसी
को
लेकर
दिल्ली
में
राष्ट्रीय
स्तर
पर
परामर्श
किया
गया।
दिल्ली
से
लौटकर
वीणा
हेम्ब्रम , शिवबालक
मांझी , जमुना
मांझी , चन्द्रा
मांझी
और
भोला
यादव
ने
जानकारी
दिए।
यह
सब
प्रगति
ग्रामीण
विकास
समिति
से
संगठित
समिति
के
सदस्य
हैं।
आखिर कब
तक
सरकार
और
राजनीतिक
दलों
के
द्वारा
देश
और
प्रदेश
में
रहने
वाले
जनजातीय
लोगों
को
और
अन्य
पिछड़ा
वर्ग
के
लोगों
को
लुभाते
रहेंगे ?
दिल्ली
में
गरीब
लोग
इकट्ठा
हुए
थे।
जो
अपने
प्रदेश
में
वन
अधिकार
कानून
2006 के
तहत
वनभूमि
पर
पट्टा
प्राप्त
करने
के
लिए
वन
अधिकार
समिति
गठित
कर
लिए
हैं।
उपस्थित
गरीब
लोग
और
उपस्थित
लोगों
को
संबोधित
करने
आए
राजनीतिक
दलों
के
लोग
वन
अधिकार
अधिनियम
को
बेहतर
ढंग
से
कार्यान्वयन
नहीं
करने
पर
चिंता
जताई
है
और
आदिवासी
मुद्दों
को
चुनाव
घोषणापत्रों
में
शामिल
करने
की
कसम
खाई।

पैक्स ( निर्धनत
क्षेत्र
नागरिक
समाज )
के
निदेशक
राजन
खोसला
ने
पांच
राज्यों
में
वनाधिकार
कानून
2006 के
कार्यान्वयन
पर
प्रकाश
डाला।
इन
राज्यों
के
आदिवासी
और
वन
भूमि
पर
रहने
वाले
36.5 लाख
आवेदनों
दायर
किया
गया
है।
इन
आवेदनों
में
24.2 लाख
को
भूमि
स्वामित्व
देने
के
लिए
आवेदन
स्वीकार
किया
गया
गया।
कुल
12.3 लाख
आवेदन
खारिज
कर
दिया
गया।
वनाधिकार कानून
2005 के
तहत
प्रावधान
किया
गया
है
जो
अनुसूचित
जन
जाति
के
लोग
13 दिसम्बर
2005 के
पूर्व
वनभूमि
पर
रहते
हैं
और
जो
गैर
अनुसूचित
जन
जाति
के
लोग
3 पीढ़ी
से
वनभूमि
पर
निवास
करते
हैं।
उनको
वनभूमि
का
पट्टा
मिलेगा।
मगर
सरकार
और
नौकरषाहों
के
द्वारा
बेतहर
ढंग
से
क्रियान्वयन
ही
नहीं
किया
जा
रहा
है।
Alok Kumar
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