पटना। और
विरासत में ' दुखनी ' को टी . बी . प्राप्त हुआ। वह इलेक्ट्रोनिक्स वाला टी . वी .( टेलिविजन ) नहीं। हवा के द्वारा फैंलने वाली बीमारी टी . बी है। अगर आप बीमारियों के बारे में जानकारी रखते हैं तो आप सहज ढंग से टी . बी . ( ट्यूबरक्लोसिस ) के बारे में जानते होंगे। तो आप कह सकते हैं कि यह ( टी . बी .) एक जानलेवा संक्रामक बीमारी है। जो हवा के द्वारा फैंलने वाली बीमारी है। आप ठीक से बेहतर समझ के साथ कह रहे हैं।
यह स्टोरी
पूर्ण रूप से अंधविश्वासी मुसहर समुदाय की है। जो जन्म से लेकर मरण तक भगत और भक्तिनी के सहारे जीते और मरते हैं। पटना नगर निगम के वार्ड नम्बर एक में दीघा मुसहरी ( शबरी कॉलोनी ) है। यहां पर भारी संख्या में मुसहर समुदाय रहते हैं। अनेकों मुसहर टी . बी . बीमारी के गाल में समा गए हैं। इसमें बुद्ध मांझी भी हैं। मरने के पूर्व पलम्बर का कार्य किया करते थे। अच्छीखासी कमाई होती थी। इनके अधीन अनेक मजदूर कार्य करते थे। कुछ साल से बुद्ध मांझी टी . बी . बीमारी से परेशान थे। इसी अवस्था में खांसी कर - करके कार्य करवाते थे।
यह विडम्बना है कि अच्छी कमाई के बावजूद भी पर्याप्त पोष्ट्रिक आहार नहीं लेते थे। वहीं नियमित समयानुसार टी . बी . की दवा भी नहीं लिए। इसके कारण टी . बी . के जीवाणु फेफड़े को चलनी बना डाले। कुछ दिन दवा खाने और फिर दवा छोड़ देने से जीवाणु बलवान होते चले गए। वहीं बुद्ध मांझी कमजोर से कमजोर होते चले गए। जानकार लोगों का कहना है कि बुद्ध जानकर कि उनको जानलेवा बीमारी है। वे टी . बी . को शरीर में ढो रहे थे और शराब से गहरी दोस्ती भी बना लिए। शराब से प्रगाढ़ दोस्ती होने के कारण बुद्ध खून की उल्टी भी कर देते थे। जब खून की उल्टी हो जाती तो चट से टी . बी . की दवाई खरीदकर खाने लगते।कुछ बेहतर महसूस होने पर दवा सेवन बंद कर देते। दवा सेवन करने और बीच में छोड़ देने के सिलसिले को जारी रखने के क्रम में ही बुद्ध मांझी की मौत हो गयी।
टी . बी . बीमारी से जिदंगीभर बुद्ध मांझी कमजोर होकर रह गए थे। महादलित मुसहर समुदाय को अंधविश्वास है कि हाशिए पर रहने वाले महादलित मर जाने के बाद बलवान हो जाते हैं। मुसहरी में साथी खोजते हैं। पहले घर के ही लोग को दोस्त बनाते हैं और उसके बाद घर के बाहर के लोगों को दोस्त बनाते हैं। जिंदगी में कमजोर और मरने के बाद बलवान बन जाने वाले बुद्ध मांझी के द्वारा मुसहरी में दोस्त बनाने का तांडव नृत्य शुरू न कर दें। तो दुखनी देवी ने नेऊरा मुसहरी से ' भक्तिनी ' को बुला लायी।
आप देख सकते है कि भक्तिनी ने बैठकी लगा दी हैं। एक - एक कर भक्तिनी ने देवी - देवताओं को बाल खोलकर भूत खेला। भूत खेलावन कर देवी - देवताओं को खुश किया। परिवार के सभी मनुष्यदेवा को स्मरण कर खुश किया गया। इसमें अभी - अभी मर गए बुद्ध मांझी भी हैं। उनको खेलाकर घर के अंदर स्थान दे दिया। हरेक साल मनुष्यदेवा के रूप में पूजा जाएगा। ऐसा करने से मरने के पहले बुद्ध मांझी कमजोर और मरने के बाद बुद्ध मांझी शक्तिशाली बनने पर ओझाओं ने ब्रेक लगा दिया है। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो मुसहरी के अंदर किसी की मौत होने पर बुद्ध मांझी को ही जिम्मेवार ठहराया जाता। इसको लेकर दुखनी देवी को प्रताड़ित किया जाता। जिस घर के लोगों की मौत हो जाती तो दुखनी देवी को मारने और पीटने से भी परहेज नहीं करते। एक अनहोनी को टालने में बुद्ध मांझी की पत्नी और उनके रिश्तेदार सफल हो गए।
कुछ माह
पहले बुद्ध मांझी और दुखनी देवी के नौजवान बेटा प्रमोद कुमार की मौत हो गयी। वह किडनी का मरीज था। गरीबी और लाचारी के कारण बेहतर ढंग से इलाज नहीं हुआ। वहीं शोषित समाधान केन्द्र के छात्र थे। केन्द्र के द्वारा किसी तरह की सहायता नहीं दी गयी। अभी दुखनी देवी भी बीमार हैं। उसे भी टी . बी . बीमारी हो गयी है। जरूरत है कि दुखनी देवी को टी . बी . बीमारी से निजात दिलायी जाए। नियमित दवा - दारू
की व्यवस्था की जाए। वहीं कबीर अंत्येष्टि योजना से , मुख्यमंत्री परिवार लाभ योजना से और लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन से
लाभान्वित करवाया जाए।
महादलित विकास मिशन के तहत मोबाइल मेडिकल टीम को मुसहरी में विजिट करनी है। वहां के लोगों को आर्युवेदिक दवा देनी है। जो धरती पर उतरा ही नहीं है। अगर उतरता तो लोगों की अकाल मौत नहीं होती ! कुर्जी पुल के पीछे चेस्ट क्लिनिक है। पदस्थापित कर्मचारियों का कहना है कि मुसहर समुदाय को टी . बी . से निजात दिलवाने में पड़ेशानी होती है। गरीब लोग होते है समय पर आकर दवा नहीं ले पाते हैं। अगर सरकार टी . बी . रोगियों को प्रोत्साहन राशि देगी तो दवा को बीच में छोड़ने की समस्या को कम किया जा सकता है। कुर्जी अस्पताल में दवा खाने वालों को अंडा भी दिया जाता है। उन लोगों ने कहा कि एमटी कैट को 6 माह और एम टू को 8 माह तक खाना है। एमटी कैट का सेवन बीच में छोड़ने के बाद एम टू चलाया जाता है। एम टू को बीच में छोड़ने से एमडीआर चलाया जाता है। जो अंगमकुंआ में स्थित अस्पताल में भर्तीकर 27 माह दवा दी जाती है।
मजे की बात है कि इस मुसहरी में सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा कार्य किया जाता है। दोनों के कार्यक्षेत्र होने के बावजूद भी अंधविश्वास का खात्मा नहीं हो पा रहा है। राजकीय मध्य विघालय से भी ज्ञान की ज्योति नहीं निकल पा रही है। समाज सेवा और मुसहर समुदाय के बीच में जोरदार कार्य करने के फलस्वरूप नारी गुंजन की संस्थापिका सिस्टर सुधा वर्गीस को पद्मश्री अवार्ड मिला है। वे भी अपने कार्य क्षेत्र से अज्ञानता को दूर भगाने में अक्षम साबित हो रही है। हाल में यहां बाल विवाह भी हुआ था।
Alok Kumar
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