Friday 4 July 2014

जब छह मुसहरी के पंचों ने पत्रकार , पुलिस और पियक्कड़ समझकर व्यवहार किया



पटना। जित्तू चक मुसहरी से भागकर मीना देवी आयी हैं। यहां के लोगों ने पत्रकार समझकर स्वागत किए। कदमतल मुसहरी में जाने से पुलिस समझकर महिलाओं ने पीछा किए। वहां पर दारू पीने वाले पियक्कड़ साधुशरण सिंह बन गए। उड़ान टोला मुसहरी के लोग पहचाने और टी . बी . रोग से मर गए सूरता मांझी के बारे में बातचीत हुई। पीपलतल और नीमतल मुसहरी के लोग स्वागत किए। बच्चों की शिक्षा को लेकर चितिंत रहे। रामजीचक नहरपर मुसहरी में बोरा पर बैठने के लिए बोरा की मांग की गयी। बोरा नहीं दिया गया और कहा गया कि दारू खट्टा हो गया है। तो बोरा पर बैठने की क्या जरूरत है। एक ने पहचान लिया। तुरन्त घर से कुर्सी लाकर बैठने का आग्रह किया। तबतक बोरा भी बैठने के लिए मिल गया।

 जनतंत्र के संविधान में इंडिया और भारत लिखा हुआ है। दिल से कह रहे है कि भारत में मुसहर समुदाय के लोग रहते हैं। उनकी माली हालत खराब है। झोपड़ियों में रहते हैं। सुअर के बखोरनुमा झोपड़ी है। जो पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में रहा। वहीं हालात पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासनकाल में भी रहा। फर्क यह देखा गया कि मुसहर समुदाय के हाथ में मोबाइल है और उनके मुसहरी में व्यक्तिगत शौचालय भी है। नाच बगीचा मुसहरी के लोगों को दिक्कत है। शौचालय बना ही नहीं है। डब्बा उठाकर खेत में जाते हैं। पीपलतल और नीमतल मुसहरी के बीच में सरकारी नल है। वहां पर कुछ बच्चियां पानी भर रही थीं। पूछा गया तो वह नहीं पढ़ने जाती है। तो वह कहती है कि लालकोठी तक पहुंचाने वाले कोई नहीं है। पद्मश्री सुधा वर्गीज के द्वारा मुसहर समुदाय की बच्चियों को पढ़ाया , लिखाया और खिलाया जाता है। उसी तरह जयदेव पथ की और से जाने वाले शोषित समाधान केन्द्र तक पहुंचाने वाले कोई नहीं है। यहां पर मुसहर बच्चों को दाखिला दिया जाता है। आवासीय विघालय है। इन लोगों को उड़ने की चाहत है मगर कोई पंख लगाने वाले व्यक्ति की जरूरत है। जो सही मार्ग दर्शन देकर राह बताएं और नामांकन करवा दें।

रामजीचक नहरपर मुसहरी के लोग भयांक्रात हैं। रोड बनने के कारण झोपड़ियों को तोड़मरोड़ दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के द्वारा आश्वासन भी नहीं दिया जा रहा है कि पुनर्वास के पहले विस्थापन हो। सभी लोग पहचानते हैं। भईया , भईया कह रहे थे। आज भी लोगों के जुबान पर आलोक भईया के नाम चढ़ ही जाता है। बस लोगों के प्यार और लोगों की समस्याओं के आगे नस्तम स्तक हो गया। इस बीच धरती पर आलोक भईया आंसू बहा रहे थे कि इतने में आसमान से भगवान भी इनकी दशा पर आंसू बहाने लगे। अब भींगने का समय गया। एक खाली झोपड़ी देखकर तत्क्षण झोपड़ी में समा गए। वहां बच्चे खेल रहे थे। हम भी बच्चे हो गए। सभी कम उम्र की बच्चियों से पूछने लगें कि कौन मईया , कौन बाबू हैं ? इसके बाद बच्चों से खाना की मांग की गयी। एक छोटे बर्त्तन में मिट्टी परोसकर आगे बढ़ा दिए। यह सोचकर खाने लगे कि अच्छे दिन गए। अब बच्चे भी खाना बनाकर खाने योग्य हो गए। जोरशोर से बरसा होने से झोपड़ी से पानी टपकने लगा। इस टपकन से बेहाल होने लगे। तब यह सोचकर सजग हो गए। आखिर किस तरह छोटी - सी झोपड़ी में लोग रहते हैं। झोपड़ी में पानी टपकने से रातभर रतजंगी करते हैं। इस करवट से उस करवट लेकर पानी से बचते हैं। यह सोचकर संतोष हुआ कि अच्छे दिन लाने के लिए केन्द्र में मोदी और राज्य में जीतन राम मांझी गए हैं। बस पानी खत्म होते ही झोपड़ी से निकल गए। अब मुसहरी से बाहर निकलना है। केवाल मिट्टी है। कई बार फिसलन से फिसलते बच गए। लोग कहने लगे कि यह भारत की सड़क है। हे ! भाई , जरा देखकर चलो ..............

Alok Kumar



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