दानापुर। अपनी मां की बॉडीगाड बन गयी खुशी कुमारी। इसके लिए खुशी कुमारी बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी । सभी तरह की खुशी को तिजांजिल देकर वह दो जून की रोटी के जुगाड़ करने में जुड़ गयी। वह चाय की दुकान में आने वाले ग्राहकों को चाय सर्व करने वाली सर्व गर्ल बन गयी। चाय पी लेने वालों के गिलास धोने वाली बन गयी। अपने बाल्यावस्था और स्कूल की सहेलियों के संग मस्ती के दो पल खुशी कुमारी भुला दी। बस बेली रोड और खगौल सड़क और बेली रोड ऊपरी पुल के नीचे आने वाली सीढ़ी के नीचे दुकान में कुर्सी पर बैठने वाली बन गयी। क्या बेस्ट प्याली में चाय की धंधा करने वाली मां और बेटी की किस्मत में बदलाव आएगा ? आखिर कब नया दिन आएंगा ?
बेली रोड और खगौल की ओर जाने वाले रूपसपुर नहर के किनाने टेम्पो चालक अरूण चौधरी रहते थे। इनकी पत्नी रिंकु देवी हैं। जो वहां की चाय , बिस्कुट , गुटखा आदि बेचने का धंधा करने में लगी रहती हैं। इस बीच 3 लड़की और 2 लड़के हो गए। उसमें खुशी कुमारी भी है। 4 बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे। इधर नहर के किनारे झोपड़ी बनाकर रहने वालों की झोपड़ियों को जेसीबी मशीन से ढाह दी गयी है। जमकर चाय की धंधा करने वाली दुकान को तहस - नहस कर दी गयी। यहां पर 10 किलो दूध के चाय बनाने पर चाय चट हो जाती थी। धंधा करने से 200 रू . का आमदनी हो जाता। इस मंहगाई में परिवार की गाड़ी खींच ली जाती थी।
नहर के किनारे से चाय की दुकान टूटने से बेली रोड ऊपरी पुल के नीचे आने वाली सीढ़ी के नीचे दुकान खोल रखे हैं। सुनसान जगह है। रिंकु देवी कहती हैं कि यहां पर अकेले में रहकर धंधा करने पर डर लगता है। बहुत ही भोलेभाले अंदाज में कहती हैं कि बेटी खुशी कुमारी की पढ़ाई छोड़वाकर दुकान में ही रख लिए हैं। उसके साथ रहने से खौफ नहीं लगता है। दुकान में आने वाले ग्राहकों को चाय देने और गिलास धोने में मदद भी करती हैं। यहां पर आने से धंधा मंदा पड़ गया है। इसके कारण खुशी कुमारी कुर्सी पर ही बैठी रहती हैं। क्या करे वह चौथी कक्षा में पढ़ती थीं। हम तो सातवीं कक्षा तक ही पढ़ी हैं।
दानापुर प्रखंड के शिवाला पर 2000 रू . में किराया के मकान लिए हैं। बच्चों का भोजन का जुगाड़ करना है। आमदनी नहीं है। तब न खुशी के तमाम अरमानों को ताख पर रखकर साथ ही रख ली है। अन्य 3 बच्चों की पढ़ाई सरकारी विघालय में जारी है। कोख में 9 महीने तक सुरक्षित रखना और उसके बाद प्रसव पीढ़ा सहने वाली रिंकु देवी खुशी कुमारी को लेकर परेशान हैं। आखिर क्या करें। जालिम भेड़ियों के आंतक से डर है। सो उसे बॉडीगाड बना ली हैं। वह बाल मजदूर भी बन गयी है। बारम्बार कहती हैं कि कोई उपाय ही नहीं था। वह पढ़ाई छोड़कर मां रिंकु देवी के संग दो जून की रोटी की तलाश में लग गयी है।
एक सवाल है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाय बेचकर नीचे से शिखर तक पहुंच गए। उसी तरह राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव भी दावा करते हैं कि वेंटनरी कॉलेज के पास चाय की दुकान पर चाय बेचते थे। बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। अपनी पत्नी को बिहार के मुख्यमंत्री बना दिए। खुद रेलवे मंत्री बन गए। क्या टेम्पो चालक अरूण चौधरी और रिंकु देवी का समय परिवर्तन होगा ? कब नयी सुबह आएगी ?
Alok Kumar
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