Monday 22 September 2014

संडे हो या मंडे रोज खाएं अंडे


अब सरकारी विघालयों के बच्चों को एक दिन खाने को मिलेंगे अंडे

गया। संडे हो या मंडे रोज खाएं अंडे। इस तरह का विज्ञापन टेलीविजन. पर आते ही रहते ही है। इस तरह के विज्ञापनों को बच्चे चाव से देखते हैं। जो सामर्थ्यवान परिवार के बच्चे हैं। उनको तो ब्रेकफास्ट में खाने के लिए अंडा मिल ही जाता है। ऐसे बच्चों को स्कूल जाते समय टिफिन बॉक्स में ब्रेड और अंडा भी मिल जाता है। तो दूसरी ओर सामान्य परिवार के बच्चों के लिए विज्ञा
पन दर्ददेवा साबित होता है।

बहरहाल सूबे के शिक्षा मंत्री वृशिण पटेल के प्रयास से मिड डे मील के मीनू में अंडा शामिल किया जा रहा है। जो बच्चे शाकाहारी होंगे, उन्हें फल दिया जाएगा। अभी यह तय नहीं किया जा सका है। सप्ताह में कितने दिन और कब से मिड डे मील खाने वाले बच्चों को अंडा दिया जाए। सरकारी स्तर पर विचार-विर्मश जारी है। इस बीच समेकित बाल विकास परियोजना के तहत आंगनबाड़ी केन्द्र के बच्चों को पोषक आहार के रूप में अंडा दिया गया। आंगनबाड़ी केन्द्र के बच्चों को खाने में अंडा मिलने से काफी खुश रहे। इस तरह बिहार के आंगनबाड़ी केन्द्र के बच्चों का अच्छे दिन आए गए।

एक आंगनबाड़ी केन्द्र में 40 बच्चे पढ़ते हैं। इनको पोषक आहार उपलब्ध कराया जाता है। टीएचआर का मतलब टेक होम राशन होता है। इसके तहत आठ गर्भवती और आठ दूध पिलाने वाली महिलाओं को 3 किलोग्राम चावल और डेढ़ किलोग्राम दाल दिया जाता है। किशोरी बच्चों को भी 3 किलोग्राम चावल और डेढ़ किलोग्राम दाल दिया जाता है। इसके अलावे सात माह से गर्भवती को प्रसव पश्चात 3 साल तक ढाई किलोग्राम चावल और सवा किलोग्राम दाल दिया जाता है। इनको भी अंडा खाने के लिए दिया जाता है।

आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका को तीन हजार रू. और सहायिका को पन्द्रह सौ रू. मानदेय दिया जाता है। अभी केन्द्र संचालित करने के लिए 14 हजार 140 रू. दिया जाता है। इसके पहले 9 हजार 15 रू. देय था। सरकार के द्वारा 2 सौ रू. किराया दिया जाता है। जहां पर न आंगन और न बाड़ी है। खुले आकाश में बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाया जाता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार आंगनबाड़ी केन्द्र के भवन निर्माण करके देने का प्रयास सरकार के द्वारा किया जा रहा है। इसमें रसोईघर और शौचालय भी शामिल है। चापाकल और बिजली की व्यवस्था भी करायी जा रही है। अगर सच में आंगनबाड़ी केन्द्र के भवन निर्माण हो जाए। सारी सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाए। तो निश्चित तौर पर निजी विघालयों के द्वारा संचालित मॉटेंसरी स्कूल, प्ले स्कूल आदि को मात दे सकेंगे।


आलोक कुमार

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