Sunday 30 November 2014

अब पुत्र जंगली मांझी राह पर अग्रसर

पिता बंगाली मांझी टी.बी.बीमारी से मर गए

हाल मुख्यमंत्री जीतन राम माझी के संगे की

पटना। महादलित जंगली मांझी बेहाल है। 30 दिनों से खांसी के जकड़ में गया है। भूख नहीं लगने से कमजोर भी हो गया है। बलगम निकलता है मगर बगलम के साथ खून नहीं निकलता है। जो संतोषजनक बात है। जंगली मांझी कहते हैं कि मां विपत्ति देवी मजदूरी करने जाती हैं। करीब मजदूरी में 250 रू. मिल जाता है। इसी राशि से अनाज खरीदने के बाद मां भोजन बनाती हैं। तब जाकर हमलोग खाना खाते हैं। 

दीघा थाना क्षेत्र के रामजीचक नहर के किनारे झोपड़ी बनाकर अलग से बंगाली मांझी रहते हैं। मगर इधर-उधर बलगम फेंकते हैं। जबकि कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल के सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण केन्द्र के कार्यक्षेत्र हैं। यहां पर जेनरल नर्सेंस और .एन.एम. प्रशिक्षु फिल्ड वर्क करने जाती हैं। इनके साथ नर्सिंग ट्यूटर एवं अन्य लोग रहते हैं। जो स्वास्थ्य के अलावे सामाजिक-आर्थिक मुद्दों का विश्लेषण भी करते हैं।

इनके द्वारा अभ्यागमन करने के बाद भी टी.बी.बीमारी के लक्षण वाले जंगली मांझी दवा और दुआ से महरूम हो रहा है। ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट प्राप्त करते समय बहुत शिकायते मिली है। प्रशिक्षु और ट्यूटर एक जगह पर बैठकर खानापूर्ति करके चले जाते हैं। वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण केन्द्र के कार्यकर्ताओं के क्रियाकलापों पर भी सवाल उठते हैं। जरूरत है कि महादलित मुसहर को जांच करायी जाए। जांचोपरांत दवा शुरू की जाए। जंगल मांझी को चेस्ट क्लिनिक, कुर्जी कोठिया का एडरेस्ट दिया गया है। अपने परिजनों के सहायता अथवा सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण केन्द्र के कार्यकर्ता के सहयोग से जाकर रोग दिखला देने का वादा जंगली मांझी ने किया है। अब तो आने वाले समय पर ही पता चलेगा कि वह चेस्ट क्लिनिक में जांच करवाया है?


आलोक कुमार

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