Friday 19 December 2014

अपने घर तक वाहन नहीं ले जाने की मजबूरी

 सरकार से उपेक्षित सुजापुर गांव की समस्यांत नहीं


पूर्णिया। आजादी के 67 साल गुजर गए। इस बीच देश और प्रदेश में सरकार आयीं और चली गयीं। मगर सरकार से उपेक्षित सुजापुर गांव की समस्यांत नहीं गयी। आज भी समस्या बरकरार ही है। गांव से लेकर जिला तक आवेदनों दिया गया। कार्रवाई ही नहीं हुआ। यहां के लोग सरकार की कुर्सी नहीं चाह रहे हैं। बस अदद पुल की मांग कर रहे हैं। पुल तो योजनाओं से निर्माण किया जा सकता है। कई प्रकार की योजना है। अबतक वोट मांगने वाले जन प्रतिनिधि भी समस्यांत नहीं कर सके।

इस जिले के बाइसा प्रखंड में सुजापुर गांव है। इस गांव की आबादी करीब 5 हजार है। 2 टोलों के बीच की दूरी 3 से 4 किलोमीटर है। इस दूरी के बीच में नदी-नाला है। राज्य सरकार के द्वारा प्रयास ही नहीं किया गया है कि नदी-नाले पर ऊपरी पुल बना दें। हद तो यह है कि यहां के लोगों ने जन प्रतिनिधियों और नौकरशाहों को आवेदन देकर थकहार गए हैं। तब लोगों ने खुद ही प्रयास करके चचरी पुल बना लिए है। बस चचरी पुल ही लोगों का लाइफ लाइन बन गया है।

सामाजिक कार्यकर्ता हसन जावेद का कहना है कि पूर्णिया जिले के गांव सुजापुर की तस्वीरें, करीब 5 हजार की आबादी को आपस में जोड़ने का एकमात्र साधन बस यही है, जो सदियों से 2 टोलों के बीच 3 से 4 किमी की दूरी को पाटने का काम कर रहा है, सच कहें तो सुजापुर की ज़िंदगी चचरी पुल के सहारे ही गुजर रही है, मंझधार में फंसी इस जिंदगी से उबरने के लिए ग्रामीण सालों से धार पर पुलिया बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई इस दर्द को समझने वाला नहीं है, गांव वाले एमपी, एमएलए और दूसरे पहरेदारों से लिखित शिकायत कर थक चुके हैं, लेकिन यहां पर जिंदगी अब भी बांस-बत्ती के सहारे ही चल रही है।

इस गांव में दर्जनभर मोटर साइकिल है। लेकिन रास्ता नहीं रहने के कारण से गांववाले कीमती सामान को अमोर ब्लॉक के दूसरे टोल में रोजाना स्टैंड कर आते हैं, अब आप सोचिए बच्चे स्कूल कैसे जाते होंगे या फिर इमरजेंसी में ग्रामीण कैसे क्या करते होंगे? 5 टोलों के लोगों को बस एक अदद रास्ते की तलाश है।

आलोक कुमार

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