14 मई को पटना में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विशाल राज्य
स्तरीय प्रतिरोध मार्च
पटना।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके
राष्ट्रीय जनत्रांतिक गठबंधन (राजग) की नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश के किसानों के
खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया है। किसानों की जमीन छीन कर बड़े पूंजीपतियों को सौंपने
के लिए इस सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को एक अध्यादेश जारी करके बदलदिया है। किसानों और विपक्षी दलों के कड़े
विरोध के कारण पिछले 31 दिसम्बर को जारी अध्यादेश कानून
नहीं बन सका तो उसने पिछले 4 अप्रैल को फिर
वैसा ही अध्यादेश जारी कर दिया। इस सरकार के एक मंत्री वेंकैया नायडू ने ऐलान किया
है कि सरकार किसानों के ‘विरोध का परिणाम
भुगतने को तैयार है।’
अंग्रेजों
के जमाने में 1894 में बने भूमि अधिग्रहण कानून में
किसानों को कोई अधिकार नहीं था। वही कानून दो साल पहले तक जारी था। किसानों और
वामपंथी लोकतांत्रिक दलों के आंदोलन की वजह से 2013 में नया भूमि अधिग्रहण कानून बना जिसमें पहली बार किसानों को कुछ अधिकार
दिये गये, जैसे वाजिब मुआवजा, पुनर्वास, अधिग्रहण का समुदाय पर होने वाले असर
का मूल्यांकन, सिंचित और बहुफसली जमीन का बचाव,
जिस मकसद से जमीन ली जाएगी उसका पूरा न होने पर जमीन
किसानों को वापस करना और सबसे बढ़कर 70-80 फीसद
किसानों की और ग्राम सभा की सहमति की अनिवार्यता। अध्यादेश द्वारा 2013 के कानून में नरेन्द्र मोदी सरकार ने वाजिब मुआवजा वाले
प्रावधान को छोड़कर बाकी सभी प्रावधानों को बेअसर बना दिया है।
कॉरपोरेट
घरानों और बड़े पूंजीपतियों, बिल्डरों और भूमि
माफियाओं को तुष्ट करने के लिए सरकार के इस किसान विरोधी कदम का क्या असर होगा,
इसकी ओर खुद सरकार के सी.ए.जी.(नियंत्रक एवं लेखा
महापरीक्षक ) ने इशारा किया है। उसने कहा है कि सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण
सम्पत्ति का ग्रामीण क्षेत्रों से कॉरपोरेट दुनिया में हस्तांतरण का जरिया बन गया
है। उघोगीकरण के नाम पर विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) खोलने के लिए किसानों से छीनकर
उघोगपतियों को दी गयी लाखों एकड़जमीन का आधा हिस्सा खाली पड़ा है। हकीकत यह है कि
सरकार किसानों,खेत मजदूरों और दूसरे ग्रामीणों की
जीविका छीनकर उनकी जमीन धनकुबेर पूंजीपतियों , बिल्डरों और भूमि माफियाओं को जमीन जायदाद कारोबार और सट्टेबाजी के लिए दे
रही है। यह केवल किसानों के लिए ही नहीं, पूरे समाज
के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसलिए इस समाज विरोधी कदम को रोकना ही होगा।
22 वें
महाधिवेशन में काला अध्यादेश को वापस लेने की मांग कीः भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 22 वें
महाधिवेशन (पुडुचेरी, 25 से 29 मार्च 2015 ) ने 14 मई 2015 को पूरे देश में
इस काला अध्यादेश को वापस लेने की मांग को लेकर जोरदार आंदोलन करने का आह्वान किया
गया है। पार्टी की बिहार ईकाई ने इस मांग को लेकर 14 मई 2015 को पटना में 12 बजे दिन में गांधी मैदान से आर.ब्लॉक चौराहा तक विशाल राज्य
स्तरीय प्रतिरोध मार्च करने का आह्वान किया है जिसमें पार्टी के महासचिव एस.सुधाकर
रेड्डी ऐटक के महासचिव का. गुरूदास दासगुप्ता और भारतीय खेत मजदूर यूनियन के
महासचिव नागेन्द्र नाथ ओझा प्रमुख वक्ता होंगे।
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