Saturday, 17 October 2015

जब बच्चे मां से चूहा-भात देने की मांग करने लगते....


मुसहर समुदाय की सामाजिक.आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए युद्धस्तर पर कार्य हो


पटना। प्रशासनिक अधिकारी हैं विजय प्रकाश। महादलित मुसहर समुदाय के हितेशी हैं विजय प्रकाश।जब कभी भी मुसहर समुदाय की उपस्थिति वाली सभा में विजय प्रकाश शिरकत करते हैं तो अपने संभाषण में मुसहर समुदाय को चूहा पालनकरने पर जोर देते हैं। विजय प्रकाश कहते हैं कि आप लोग चूहों को पकड़ते हैं और उसका आहार करते हैं। अब वक्त गया है कि इसे चूहा पालन किया जाएगा। चूहा पालन करने से व्यापार का रूप दिया जा सकेगा। हर वक्त चूहा उपलब्ध रहेगा। मुर्गियों की तरह बेचा जा सकता है। होटल के मालिक चूहों को खरीदना शुरू कर देंगे।विभिन्न तरह से चूहों का व्यंजन बनाकर थाली में परोसना शुरू कर देंगे।मगर महादलित समुदाय ने विजय प्रकाश की सलाह को हवा में उड़ाते चले गए। इसके विरोध में जबर्दस्त प्रदर्शन भी किए। महादलितों का कहना है कि रहने के लिए घर नहीं है तो कैसे चूहा पालन कर सकते हैं।
मनमौजी और स्वतंत्र रूप से चूहों को पकड़ते हैं महादलितः किसी दिन महादलितों को काम नहीं मिलता है तो दो-तीन जन मिलकर चूहा पकड़ने निकल जाते हैं। चूहों का बिल देखते हैं। बिल में धुंआ करके भी पकड़ते हैं। कुदाल से मिट्टी काटकर बिल के अंत तक पहुंचकर चूहों को पकड़ते हैं। कई तरह से चूहों को पकड़ते हैं। पकड़ने की तरीका भी अजब-गजब है। उसी के तहत चूहों को पकड़ने का प्रयास करते हैं। इन चूहों को लुभाने के लिए भुट्टा खरीदते हैं। पापा बिस्कुट से भी चूहों को मायावी जाल में फंसा लेते हैं। मिट्टी काटकर पुल बनाते हैं। इसी पुल में लकड़ी में भुट्टा लगा देते हैं। इसके ऊपर में प्रतीक चिन्ह भी लगाते हैं। अगर चूहों भुट्टा खाने लगता है तो प्रतीक चिन्ह हिलने लगता है। इसके बाद पैर से पुल को थामकर चूहा पकड़ लेते हैं। इसी तरह एक बार में आठ-नौ जगहों पर करते हैं।
चूहों को पकड़कर घर लाते हैं: अवसर और भाग्य भरोसे चूहों को पकड़कर घर लाते हैं। आग में डालकर चूहों का बाल जला देते हैं। इसके बाद चूहों के दांत से ही पेट में चिरा लगाया जाता है। अतरी और पित्ताशय निकाल लेते हैं। इसके बाद चूहों को छोटे-छोट टुकड़ों में करके गोस्त बनाते हैं। गरम मशाला डालकर गोस्त तैयार करते हैं। खाने में बहुत ही अच्छा लगता है। चूहों को रोस्ट करने के बाद चटनी भी बनाते हैं। मिर्चा,प्याज,लहसून,नमक और तेल डालकर चूहों को डालकर चटनी बनाते हैं। बच्चे तो चूहों को रोस्ट होने के बाद ही नमक लगाकर चबाने लगते हैं। वहीं सयाने भी चूहों को रोस्ट होने के बाद नमक लगाकर शराब के साथ उपयोग करने लगते हैं।
अधिक चूहों को पकड़ने के बाद चूहों को बेच भी देते हैं:आपस में हिस्सा लगाने के बाद अधिक चूहे होने के कारण 100 रू.प्रतिकिलो ग्राम की दर से बेच देते हैं। चूहों का खरीददार बहुत लोग होते हैं। दाल की कीमत अधिक हो जाने के कारण चूहों को ही खरीदकर गोस्त बना लेते है। भात और चूहा खाकर तृप्त हो जाते हैं। बड़े चाव से बच्चे चूहा-भात खाते हैं। चूहा बनाने में विलम्ब होने पर बच्चे मचल जाते हैं। अपनी मां से जिद्द करने लगते हैं कि जल्दी से चूहा-भात खाने को दो।
गणेश जी के वाहन चूहों को सफाया करने में लगे हैं: इन दिनों देश और प्रदेश में बीफ खाने वालों पर आफत है। दादरी के बाद हिमाचल प्रदेश में शख्स को मार-मार कर मार डाला गया। अभी राजनीति स्वार्थ साधकों के द्वारा गौ माता पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। बिहार में आम चुनाव जो है। जैसा होते आया है कि एक पक्ष बीफ के विरूद्ध और दूसरे पक्ष बिफ के पक्ष में राजनीति करना शुरू कर देते हैं। जो अभी जमकर हो रहा है। अफवाह उड़ाकर अल्पसंख्यकों की जान ली जा रही है। गौ माता के निर्याय और आयात का व्यापार करने वालों को पकड़ा नहीं जा रहा है। अब देखना है कि बिहार में गौ माता किसको कुर्सी थमाने में कामयाब हो रही है। तब कुर्सी थामने वाले गणेश जी के वाहन चूहों का आहार बनाने वाले मुसहर समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए युद्धस्तर पर कार्य करे। जो वक्त की मांग है।

आलोक कुमार

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