के बीच में रहन-सहन में अन्तर
गया। शहर और गाँव में बसने वाले महादलित मुसहर समुदाय के बीच में रहन-सहन में अन्तर है। मुसहर समुदाय हर जिले में बदल जाते हैं। कहीं भूइया तो कहीं मुसहर से जाने जाते हैं। गया जिले में मांझी, मधुबनी में ऋषि,ऋषिदेव,रिकियासन,सहरसा में सदा, कटिहार में मंडल,भोजपुर में राम,पश्चिम चम्पारण के कुछ हिस्से में महतो से जाने जाते हैं। 1951 में भूदान आंदोलन को लेकर पदयात्रा। भूदान के प्रर्णेता विनोबा भावे ने बोधगया में समापन किया।1983 में पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने पदयात्रा किए। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने कुआं निर्माण कराया था।
गया जिले के बोधगया प्रखंड में है शेखवारा पंचायत। इसी पंचायत में है शेखवारा मुसहरी। यहां के महादलित मुसहर समुदाय के लोग बंधुआ मजदूर थे। अब बंधुआ मजदूर नहीं हैं। महादलित मुसहर समुदाय के बीच में सिंध से बिहार आने वाले गांधीवादी चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता द्वारिको सुन्दरानी ने काफी कार्य किया हैं। 94 साल के होने के बाद भी समन्व आश्रम में मुसहर जाति के बच्चों को पढ़ाते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता द्वारिको भाई कहते हैं कि बनफल गांव में जंगल था। यहां के लोग लकड़ी काटकर जीवन बिताते थे। ऐसे लोगों के बीच में 80 एकड़ भूदानी जमीन वितरण कराए। अब महादलित भूदानी जमीन पर खेती करते हैं।यहां पर तालाब भी निर्माण किया गया है। आगे कहते हैं कि आश्रम ने 6 लाख लोगों की आंखों का आपरेशन कराए हैं। इसमें 90 करोड़ रू0व्यय किया गया। दुख व्यक्त करते हुए कहा कि पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे से आग्रह किया गया कि आप 15 साल के नीचे के लोगों का सर्वें करके आंखों का आपरेशन करा देंगे। ऐसा करने से बिहार से अंधापन दूर हो जाएगा। आप राशि विमुक्त करें। इसमें पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हाथ खड़ा कर दिए। जब मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी बने तो उनके समक्ष भी प्रस्ताव रखे। हां में हां मिलाने के बाद एक व्यक्ति को भेजे थे। वह व्यक्ति भी सहायक नहीं बन सका।
एनडी टीवी के रविश कुमार के साथ खटिया पर बैठने वाले मुसहर कहते हैं कि पहले हम खटिया पर बैठ नहीं पाते थे। ऊँची जाति के लोग आते ही डर से उठ जाते थे। बहुत ही खौफ की जिदंगी जीते थे। फिर एक बुजुर्ग ने कहा कि गोबरी प्रथा के तहत काम करने के बाद रकम के बदले गोबर दे दिया जाता था। पहले इतनी गरीबी थी कि लोग गोबर से धोकर कुछ अनाज के टुकड़े निकाल लेते थे। उसी को साफ करके खाते थे।यह आंखों देखी खबर है। बिल्कुल सत्य है। गोबर से गेहूं निकालकर साफ करके चक्की से पीसकर आटा बनाने के बाद रोटी बनाकर पेट को भरते हैं।उन दिनों दाल भात भी नहीं खा पाते थे। काम करते समय सूखे चने चबा लिए करते थे।बहुत जगहों पर सूखी रोटी और नमक को हाथ में थमा देते हैं। कागज और बर्तन भी नहीं देते हैं।
इससे पहले कारू मांझी नामक नौजवान ने कहा मुसहर टोली में कुछ नहीं बदला। बस कुछ घर मिट्टी से पक्के हो गए हैं। एक लड़की ने कहा कि मैं स्कूल जाती हूं लेकिन साइकिल नहीं मिली। इसके अलावा ताकतवर लोगों की घृणा उपेक्षा और मुसहरों को गुलाम समझने की मानसिकता। रवीश कहने लगे हम सभ्य समाज के लोगों को सामूहिक पश्चाताप करना चाहिए कि एक समुदाय इतना प्रताड़ित रहा।
रवीश, आप इस सच को सामने लाकर बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। सोचिए, इन लोगों को मीट पॉलिटिक्स, लव जिहाद, घर वापसी या मंदिर मस्जिद की पॉलिटिक्स करने वाली पार्टी की क्या जरूरत? सामाजिक स्तरीकरण सत्य है और इसे संवैधानिक प्रावधानों से मुक्त नहीं किया जा सकता है।दलित अभिजन वर्ग भी निम्न वर्गीय दलित को दुत्कारने में सवर्णों को मात दे रहा है।
शकील खान कहते हैं कि आज देखा कुछ लिख नहीं पाया अभी भी सोच रहा हूँ यकीन करने की कोशिश कर रहा हूँ। इस समय भावना में बह गया हूँ।प्रेम यदुवेन्द्र कहते हैं कि ऐसी दशा दलितों की देश के हर हिस्से में देखने को मिलती है। दलितों की हालत व्यवस्था परिवर्तन से ही सुधरेगी। बाबा साहेब ने मंत्र दिया था “ शिक्षित बनो , संगठित हो , संघर्ष करो , “
इस मंत्र को व्यवहार में लाने से ही दलितों का भला होगा ।
आलोक कुमार
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