Monday 4 January 2016

1050 रू0 में बहाल होने वाले शख्स को 15 साल बाद के दरम्यान सिर्फ मिलता 4500 रू0



केन्द्रीय सरकार ने गांधीवादी संस्थाओं को सुधारने की दिशा में की कार्रवाई

गांधीवादी संस्थाओं में कार्यरत मानव संसाधन पर सरकारी ध्यान नहीं

पटना। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से निर्मित संस्थाओं की कायाकल्प की गयी।आवास और प्रतिमाओं को जर्जरता को दूर की गयी। इसके आलोक में केन्द्रीय सरकार द्वारा राशि विमुक्त की गयी। अब जाकर आवास और प्रतिमाओं में जान आ सकी है। वहीं गांधीवादी संस्थाओं में कार्यरत लोगों की जिदंगी बदहाल है। 21 सदी में भी बापू के तीन बंदरों की तरह स्थिति गांधीवादी संस्थाओं में कार्यरत लोगों की है।अपना दुखरा कर्मी मुंह से बोल नहीं सकते हैं।संस्थाओं के कर्ताधर्ता आंख से कर्मियों की परिस्थिति देख नहीं सकते हैं और कान से कर्मियों की समस्या सुन नहीं सकते।
गांधीवादी संस्था में काम करने

जी हां, यह हाल है राजधानी में स्थित गांधी संग्रहालय। बंधुआ मजदूरों की तरह जिदंगी है कर्मियों की। इस गांधीवादी संस्था में काम करने वाले कर्मियों को स्थायी नहीं की जाती। जितना काम और उतना दाम नहीं दिया जाता है। इसके अलावे अन्य मूलभूत सुविधाओं से वंचित कर दिया गया है। कई दशक से कार्यरत लोगों को मजदूरों की तरह व्यवहार किया जाता है। नो वर्क नो पेमेंटको गंभीरता से लागू किया जाता है। मानवता को ताक पर रखकर छुट्टी लेने पर रकम काट लेते हैं।

गांधीवादी संस्था में काम करने वालों को महात्मा गांधी नरेगा से कम ही मजदूरी दी जाती है। एक शख्स प्रथम वर्ष में 1045 रू0 वेतन पाता है। उसे 14 साल में 250 रू0 की वृद्धि की जाती है। इस तरह वृद्धि होने पर आज 4500 रू0 मासिक वेतन पाता है। उसे एक दिन में 150 रू0 मजदूरी के हिसाब से वेतन मिलता है।

बताते चले कि केन्द्रीय सरकार ने केन्द्रीय कर्मचारियों को नूतन वर्ष 2016 में सातवां वेतनमान देकर अच्छे दिन लाने का प्रयास में है। अब देखना है कि गांधीवादी संस्थाओं में कार्यरत कर्मियों के अच्छे दिन कम आने वाला है

आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना।











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