Thursday 2 June 2016

भाषणों को धरातल पर उतारने के लिए प्रयोगी प्रयास करें


पटना। बिहार सरकार के नौकरशाह हैं विजय प्रकाश। विजय प्रकाश नामक आई0ए0एस0 के पास योजना है। समाज के किनारे रहने वाले महादलित मुसहर समुदाय के लोग आत्मनिर्भर हो सके। एनजीओगिरी सोच रखने वाले विजय प्रकाश ने मुसहर समुदाय को चूहा पालन करने की दिशा पर बल देते हैं। किसी भी एनजीओ द्वारा आयोजित सम्मेलनों में विजय प्रकाश कहने लगते हैं कि चूहा पकड़कर खाने का काम मुसहर समुदाय के लोग करते हैं। अगर मुसहर समुदाय के लोग चूहा पालने लगे और चूहों को होटलों में पहुंचाने लगे,तब होटलों में चूहों से विभिन्न तरह के व्यंजन बनाना शुरू कर देंगे। ऐसा करने से महादलितों को व्यापारनुमा बाजार मिल जाएगी। ऐसा करने से महादलित आत्मनिर्भर बन जाएंगे। 
फिलवक्त घर में ही व्यंजन बनाते हैंः खुद ही महादलित मुसहर समुदाय आवासीय भूमिहीन हैं। इनके पास जमीन नहीं है कि पिंजरा बनाकर चूहों को पाल सके। अगर हो भी जाता है तो उनके पास पूंजी ही नहीं हैं। कुल मिलाकर वक्ताओं को अपने भाषणों को धरातल पर उतारने के लिए प्रयोगी प्रयास करने चाहिए। कुछ लोगों को प्रशिक्षण देने के बाद जमीन और पूंजी की व्यवस्था कर देनी चाहिए। खुद अपने ही गाइडलाइन में रोजगार को विकसित करना चाहिए। जिस प्रकार मशरूम की खेती की गयी है।

मंहगाई डायन के प्रभाव में चूहा पकड़ने निकलेः 1 जून से 2 जून की रोटी मंहगी होने से महादलित मुसहर समुदाय भी परेशान हैं। पटना नगर निगम के वार्ड नम्बर 1 में दीघा मुसहरी पड़ता है। महादलितों का मकान बन रहा है। प्रथम किस्त मिलने के बाद द्वितीय किस्त मिलने में विलम्ब हो रहा है। बेकार समय में नौजवानों ने चूहा पकड़ने निकल पड़े। बिन्द टोली,कुर्जी गंग-स्थली में चले गये। पप्पा नामक बिस्कुट के सहारे चूहों को पकड़ने लगे। पप्पा बिस्कुट के जाल में चूहा फंसने लगे। देखते ही देखते दर्जनों चूहे गिरफ्त में आ गये। पर्याप्त चूहों को पकड़ने के बाद महादलित घर आये। खाने से अधिक होने पर 100 रू0प्रति किलो की दर से चूहा बेच दिये। 

गरम मशाला डालकर बनाते हैं चूहों कोः अभी तक व्यापारियों ने मटन मीट मशाला,चिकन मीट मशाला,सब्जी मशाला,साभर मशाला आदि बाजार में उतारा है। अगर आई0ए0एस0 विजय प्रकाश का चूहों का व्यापार होने लगता, तो माउस मीट मशाला भी बाजार में उतर ही जाता। समझा जाता है कि इसे गंभीरता से खुद विजय प्रकाश ही नहीं लिये। अगर गंभीरता से लेते तो अवश्य ही बिहार सरकार के प्रभावशाली अधिकारी चूहों का व्यापार करवाने में सफल हो जाते। कोई जरूरी नहीं है कि जाति विशेष के ही लोग चूहा पालन करे। यह तो बेरोजगार भी कर सकते हैं। इस ओर आई0ए0एस0को विचार करना चाहिए।

डोनर के समक्ष ‘प्रोजेक्ट’ लेने वाले दलील देते हैंःहमलोग सामाजिक कार्यकर्ता हैं। महादलितों के साथ मिलकर खाना खाते हैं। उनके घर में बने खाना खाते हैं। जिसमें चूहा भी शामिल रहता है। बड़े ही चाव से खाते हैं। सवाल डोनर को खुश करना हैं। मुसहर के घरों में भोजन देखकर भले ही लार नहीं टपका हो मगर डोनर के सामने लार निकालकर प्रोजेक्ट लेने की कहानी बनानी ही पड़ती है।

आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना। 


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