Saturday 18 March 2017

मिशनरी पिछड़ी जाति के ईसाइयों को सुनों


पटना। ईसाई समुदाय खंड-खंड में विभक्त है। अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, अगड़ी जाति, एंग्लो-इंडियन समुदाय आदि। सबकी अपनी -अपनी समस्याएं है। संविधान के अनुसार ईसाई धर्म कबूलने के बाद भी समस्याएं पूर्व रह गयी। यहां तक और बढ़ ही गयी। केवल धर्म बदलने के बाद भी अनुसूचित जनजाति को आरक्षण मिलता है। इस तरह का प्रावधान भारतीय संविधान में निहित है। वहीं धर्म परिवर्तन करने के बाद दलित पिछड़ी जाति के श्रेणी में जाता है और उसे पिछड़ी जाति का आरक्षण दिया जाता है। धर्म के साथ भेदभाव शुरू कर दिया जाता है। केवल मुसलमान और ईसाई समुदाय को निशाना बनाया गया।

एंग्लों-इंडियन समुदायः इस समुदाय को लोक सभा और विधान सभा में एक पद आरक्षित कर दिया गया। 15 नवम्बर, 2000 में झारखंड विभाजन के बाद एंग्लो-इंडियन समुदाय का गढ़ झारखंड में चले जाने से झारखंड विधान सभा में समुदाय के प्रतिनिधि विधायक बन पाते हैं। इस समुदाय की संख्या बिहार में कम होने के कारण बिहार विधान सभा में समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है। हालांकि कई प्रयास किया गया। परन्तु सफलता चरण नहीं छू पायी है।

ईसाई पिछड़ी जातिः क्रिश्चियन वेलफेयर कमिटी द्वारा पिछड़ी जाति के ईसाइयों को आरक्षण दिलवाने का प्रयास चला। इसमें सफलता भी मिली। Christian converts from other backward classes अर्थात हिन्दू ओबीसी से धर्मान्तरण करके ईसाई बने लोग जातियां भी रहेगी ओबीसी। मगर ईसाई समुदाय फायदा नहीं उठा सके। बहुत ही कम अनुपात में आरक्षण मिलने से समुदाय प्रयास ही नहीं करता है। कुछ होशियार लोग फायदा उठाते हैं। किसी तरह के मिशन-विजन को लेकर मिशनरी लोग संस्था बना रखे हैं। इन संस्थाओं में भी पिछड़ी जाति के ईसाइयों को उपेक्षित कर दिया जाता है। इसमें आदिम जाति,दलित और एंग्लों-इंडियन समुदाय को प्रमुखता दी जाती है। पिछड़ी जाति को सरकार और मिशनरियों से लाभ नहीं मिल पाता है।
आदिम जाति को आरक्षण मिलने के बाद भी आदिम जाति की स्थिति खराब है। सरकार के द्वारा खास फोकस नहीं दिये जाने से परेशान रहते हैं। महानगरों में घरेलु नौकर बनकर रह जाते हैं। जहां शारीरिक शोषण भी होता है। वहीं दलित समुदाय दोहरी जातीयता से परेशान हैं। सनातन धर्म को सामने रखकर आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। मिशन में शिक्षा ग्रहण करते हैं और सरकारी नौकरी में हाथ साफ करते हैं। 
धर्म परिवर्तन करने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को पिछड़ी जाति के रूप में आरक्षण नहीं है। जबकि अल्पसंख्यकों में भी गरीब और लाचार लोग हैं। यहीं पिछड़ी जाति के अल्पसंख्यक अधिकार की मांग सरकार और मिशनरी से करते हैं। ऐसा नहीं होने पर बवाल काटते हैं।

संवैधानिक अधिकार रूपी आरक्षण प्राप्त करने के बाद भी मिशनरियों द्वारा अनुसूचित जनजाति के लोगों को ही ख्याल रखा जाता है। इनको सहुलियत से मिशन में कार्य देते हैं। प्रशिक्षण में भी प्रमुखता देते हैं। इसी तरह अनुसूचित जनजाति के के लोग धर्म परिवर्तन के बाद भी आरक्षण सुविधा पा रहे हैं। Christian converts from SC अर्थात एससी/अनुसूचित जाति से कन्वटेंड होकर धर्मान्तरण किये हुए हिंदु लोग एवं जातियां एक पायदान ऊपर चढ़कर ओबीसी/पिछड़ी जाति बन जाती है। उन पर हुए हजारों साल के अत्याचार की दास्तान खत्म ? ईसाई धर्म के बदले सनातन धर्म कहकर लाभान्वित हो रहे हैं। ऐसे लोगों को भी मिशनरी आश्रय देते हैं। नौकरी और प्रशिक्षण में प्रश्रय देते हैं। पिछड़ी जाति के लोगों को ठेंगा दिखाने पर अमादा हैं। कई मिशनरी सबक सिखाने पर अमादा हैं। ऐसे लोगों को सबक सिखाने की जरूरत है।


आलोक कुमार

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