पटना। ईसाई समुदाय में याजक वर्ग और
अयाजक वर्ग है। धार्मिक कार्यों का नेतृत्व करने का दायित्व याजक वर्ग पर है। पुरूषों
को फादर और महिलाओं को सिस्टर कहा जाता है। धार्मिक बंधन के कारण फादर और सिस्टर विवाह
नहीं कर सकते हैं। वहीं विशेष शिक्षा हासिलकर ‘फादर’ बनते हैं। जो फादर से बिशप तक बनते हैं। योग्यतानुसार
आर्क बिशप,कार्डिनल आदि बन सकते हैं। पटना महाधर्मप्रांत के आर्क बिशप विलियम डिसूजा
हैं। कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पों हैं। इनलोगों की सहायता में ‘सिस्टर’ रहती हैं। संवैधानिक अधिकार के तहत
याजक वर्ग शिक्षा-चिकित्सा आदि क्षेत्र में कार्य करते हैं। केन्द्र और राज्य से संस्थाओं
को पंजीकृत कराकर समाज कार्य करते हैं। ऐसा करने से सरकारी मान्यता प्राप्त हो जाता
है। अल्पसंख्यक होने के कारण विशेष अधिकार प्राप्त हो जाता है।
दूसरी ओर अयाजक वर्ग विवाह कर सकते
हैं। याजक वर्ग को देखादेखी केन्द्र और राज्य सरकार से संस्थाओं को पंजीकृत करवा रहे
हैं। संस्था पंजीकृत करने के बाद स्कूल और संस्था खोल रहे हैं। सरकारी मान्यता प्राप्त
होने के बाद स्कूल और समाज सेवा करने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। इनको
भी अल्पसंख्यक होने के नाते विशेष अधिकार प्राप्त हो जाता है। जबतक अयाजक वर्ग अल्फाबेटिक
के अनुसार ‘ए’
फोर आया, ‘बी’
फोर बावर्ची, ‘सी’
फोर कारपेंटर, ‘डी’
फोर ड्राइवर, ‘ए’
फोर्स, ‘इ’ फोर इलेक्टीशियन आदि थे। तबतक साहब
लायक नहीं थे उस समय अयाजक वर्गों के मिलने वाले अधिकारों को भी याजक वर्ग लूट ले जा
रहे थे। अब अयाजक वर्ग लायक हैं ‘जे’
फोर जर्नलिस्ट, ‘टी’
फोर टीचर, ‘एन’
फोर नर्स, ‘एस’
फोर सेक्रेटरी आदि हो गये हैं। तक भी याजक वर्ग अधिकारों को छीनने पर अमादा है। इसको
लेकर याजक वर्ग और अयाजक वर्ग में संघर्ष व्याप्त है। जो समय-समय पर विस्फोटक धारण
कर जाता है। यह भी जगजाहिर है कि याजक वर्ग अपने हित कामना के लिए अयाजक वर्ग के बीच
में अनबन पैदा करने से बाज नहीं होते हैं। ऐसे लोगों के बल पर अयाजक वर्गों के अधिकारों
को लेने में सफल हो रहे हैं। ऐसे ही लोगों के मनसुबे को पर्दापाश करना है। अयाजक वर्ग
के नाम पर खुलने वाले स्कूल, कॉलेज, चर्च, संस्था आदि में अयाजक वर्ग का अधिकार है।
मगर अयाजक वर्ग को याजक वर्गों के पास जाकर गिड़गिड़ाना पड़ता है। जो बंद होना चाहिए।
बपतिस्मा प्रमाण-पत्र के आधार पर स्कूलों में नामांकन और नौकरी से निकालने के खिलाफ
आवाज बुलंद करनी चाहिए।
प्रारंभ में भी अयाजक वर्गों के बीच
में कशमकश था। अपनी आवाज को लिपीबद्ध करते थे। काफी पर्चाबाजी किया करते थे। कुछ बुद्धिजीवि
मिलकर ‘पर्दा उठता है’शीर्षक
से पम्पेलेट प्रकाशित किये थे। पर्चाबाजी और पम्पेलेट प्रकाशित कर भागना भी पड़ जाता
था। आज परिस्थिति विपरित है। आप आजादी से समस्याओं को रख सकते हैं। अखबारों में प्रकाशित
कर सकते हैं। कलम में शक्ति है तो आपके लेखन में चर्च में उपदेश दे सकते हैं। पटना
से प्रकाशित अमृतवर्षा में बपतिस्मा प्रमाण-पत्र के बारे में विस्तार से प्रकाशित किया
गया था। इसके आलोक में कुर्जी चर्च में पुरोहित भाषण देने लगे। उसी पर आधारित था। पटना
महाधर्मप्रांत के महरूम महाधर्माध्यक्ष बी.जे.ओस्ता ने आदेश निर्गत किये थे। गैर ईसाइयों
की तरह हॉस्पिटल से प्राप्त जन्म प्रमाण-पत्र, नगर निगम से प्रमाण-पत्र,शपथ-पत्र भी
मान्य होगा। मगर बपतिस्मा प्रमाण-पत्र और पल्ली पुरोहित की अनुशंसा पत्र देना ही होगा।
यह दुख की बात है कि निर्गत प्रमाण-पत्र की छाया प्रति नहीं है। जो नामांकन के समय
पेश आदेश पत्र दिखाया जा सके। मगर स्कूल के सूचना पत्र में सूचित कर दी जाती है।
आलोक कुमार
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