सरकार के कोई नौकरशाह हैं ? जो महादलित मुसहर समुदाय की सुधि ले सके
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‘हां,
अगर आप को
गरीबी और लाचारी
मापना है तो
निःसंदेह दीघा मुसहरी
आ जाए। जहां
पर आज भी
अशिक्षा और अंधविश्वास
का समन्दर बह
रहा है। इसके
चलते महादलित मुसहर
समुदाय को काफी
नुकसान उठाना पड़ रहा
है। अगर कोई
मुसहर बीमार पड़ते
हैं तो सबसे
पहले गांव के
कथाकथित भगत और
भक्तिनी के फेरे
में पड़ जाते
हैं। भगत और
भक्तिनी नीम की
टहनी लेकर सिर
हिलाकर रोगी को
ठीक करने लगते
हैं। उनके इस
तरह की भूतलीलाओं
के चलते
कई लोगों की
अकाल मौत भी
हो चुकी है।
सरकारी और गैर
सरकारी संस्थाओं के लाखों
दांवों की पौल
खुल रही है।
लोग त्रस्त हैं
और तंत्र मस्त
है।
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इसी वार्ड नम्बर-1 में
सामाजिक-आर्थिक स्थिति से
पिछड़े महादलित मुसहर
समुदाय के लोग
रहते हैं। सरकार
के द्वारा दीघा
मुसहरी में करीब
70 घर बनाया गया।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम
के तहत मकान
बनवाया गया था।
इस समय परिवारों
की संख्या बढ़
गयी है। मगर
घर की संख्या
और जमीन की
परिधि में बढ़ोतरी
नहीं हो पा
रही है। मजबूरी
से ही मुसहर
समुदाय उसी घर
में किसी तरह
से रहते हैं।
अब यह घर
न रहकर सुअर
के बखौर बन
गया है। बरसात
के दिनों में
मुसहरी में आवाजाही
करना बहुत ही
मुश्किल है। आवाजाही
करने वाले नाक
पर रूमाल रखकर
आते-जाते हैं।
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सरकारी और गैर
सरकारी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं
की उदासीनता और
उनके नकारापन के
कारण दर्जनों मुसहर
यक्ष्मा बीमारी के शिकार
होकर परलोक सिधार
चुके हैं। ‘हां
हिन्दु धर्म को
अंगीकार करने वाले
महादलित मुसहर मौत होने
के बाद अर्थाभाव
के कारण शव
को जलाने के
बदले मिट्टी के
हवाले (कब्र) कर दिये
जाते हैं। अभी
राजकुमार मांझी की मौत
के बाद मिट्टी
के हवाले कर
दिया गया। पंच
तत्व में विलिन
नहीं किया गया।
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