Tuesday 5 February 2013

पश्चिम बंगाल सरकार की तरह ही बिहार सरकार पहल करें





    आवासीय भूमिहीनों को मिले 12 डिसमिल जमीन
       और उस पर सरकार बना दें सपनों का आशियाना

 अभी-अभी गेम शो केबीसी में 25 लाख रूपये जीतने वाले मनोज कुमार झोपड़ी में रहने को बाध्य हैं। आप जरूर सोच में पड़ जाएंगे कि भला लाखपति होकर भी झोपड़ी में रहता है। हां,लेकिन बिल्कुल सत्य है। यह जरूर है कि पटना जिले के दानापुर अनुमंडल के जमसौत पंचायत के जमसौत मुसहरी में रहने वाले महेश मांझी के पुत्र मनोज कुमार हॉट सीट पर बैठकर 25 लाख रूपये जीते। यह  सेलिब्रिटि गेम शो था।
फिल्मी दुनिया में जाने वाले बिहारी कलाकार मनोज वाजपेयी ने मनोज कुमार को सहयोगी के रूप में ले गये थे। दोनों मिलकर शोषित समाधान केन्द्र को सहायता देने के लिए गेम खेल रहे थें। इस राशि से मकान विस्तार करने के लिए उपयोग में लाया जाएगा।
खैर, हॉट सीट पर बैठने से मनोज कुमार के माध्यम से संसार भर के लोग महादलित मुसहर समुदाय के बारे में जान गये। मुसहर समुदाय के लोग 97 प्रतिशत अशिक्षित हैं और चूहों को आहार के रूप में उपयोग करते हैं। आज भी बहुत गरीब समुदाय बनकर रह गया है। जबकि सरकार वोट के लिए और गैर सरकारी संस्थाओं के लोग नोट बनाने के लिए उपयोग करते हैं।
 हॉट सीट पर बैठने वाले मनोज कुमार के परिजनों का हाल बेहाल है। आज यह लोग गैर सरकारी संस्था नारी गंुजन की सचिव सामाजिक कार्यनेत्री पद्मश्री सिस्टर सुधा वर्गीस के सेप्टीटैंक के ऊपर झोपड़ी बनाकर रहते हैं। इसी झोपड़ी में लाखपति मनोज कुमार के पिता महेश मांझी और उनकी मां शांति देवी रहती हैं। मनोज कुमार और उसके एक भाई षोशित समाधान केन्द्र के छात्रावास में रहकर अध्ययन करते हैं। जहां पर मनोज कुमार अध्ययनरत हैं उनके सहयोग करने के लिए ही केबीसी गेम षो खेले थे। वहां से 25 लाख रूपये जीतने के बाद वह राशि संस्था को दान में दे दिये। यह आयोजन बॉलीवुड कलाकार मनोज वाजपेयी के सहयोग से किया गया था।
  गरीबी के दंश झेलने वाले महेश मांझी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रहे हैं। बीपीएल में नामदर्ज होने के कारण इंदिरा आवास योजना के तहत मकान बनाने के लिए सरकार के द्वारा राशि विरमित की गयी है। आंगनबाड़ी में सहायिका के पद पर कार्य करने वाली षांति देवी और खेतीहर मजदूर महेश मांझी ने देय 45 हजार रूपये की राशि से मकान पूरा नहीं बना सके और अभी अधूरा ही रह गया है। अभी भी एक छोटी-सी झोपड़ी में रहने को बाध्य हैं।
  सरकार के द्वारा आवासीय भूमिहीनों को मकान देने के लिए कई प्रकार के प्रयोग किये गये। आरंभ में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम के तहत खप्परैल घर बनाया गया। उसके बाद  भूमिहीन राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कार्यक्रम के इंदिरा आवास योजना के द्वारा मकान निर्माण किया गया। पटना सदर प्रखंड में दीघा मुसहरी है। यहां पर राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम के तहत घर बनाया गया था। जो झूक गया आसमान की तरह झूक गया है। अभी स्व0जानकी देवी खुले आकाश में जीने को बाध्य हैं। उसके ह्नदय रोग से पीड़ित पप्पू कुमार भी पूस-माघ के ठंडे में सोने को बाघ्य है। दानापुर प्रखंड के कौथवा पंचायत के कौथवा मुसहरी में  भूमिहीन राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कार्यक्रम के द्वारा घर बना था। जो जर्जर होकर गिर गया है। कई घरों की छत गिरने पर उतारू है। इसी प्रखंड के बख्तियारपुर मुसहरी के महादलितों का अहोभाग्य था कि सरकार ने मेहरबान होकर राष्ट्रीय भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम और भूमिहीन राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कार्यक्रम के तहत घर निर्माण कराये। जो जर्जर होकर गिर पड़ा है। एक घर के लोगों ने बांस के सहारे से गिरते छत को संभाल रखा है। दोनों कार्यक्रम सरकारी अभिकर्ताओं के द्वारा बनाया जाता था। इसमें काफी लूटाने और लूटने की खबर के बाद कार्यक्रम के स्वरूप में बदलाव कर दिया गया। दोनों कार्यक्रम सरकारी अभिकर्ताओं के द्वारा बनाया जाता था। इसमें काफी लूटाने और लूटने की खबर के बाद कार्यक्रम के स्वरूप में बदलाव कर दिया गया।
   अब इंदिरा आवास योजना के स्वरूप में बदलाव ला देने से लाभान्वितों के हाथ में राशि मिलने लगी है। इसमें आरंभ में 30 हजार रूपये और बाद में बढ़कर 45 हजार रूपये कर दिया गया। इस राशि से घर अधूर ही रह जाता था। 93 प्रतिशत घर अधूरा ही है। दीवारों पर प्लास्टर और दरवाजा-खिड़की नदारद है। मंहगाई डायन के चलते 45 हजार रूपये में मकान नहीं बन सकने के कारण सरकार ने जन सत्याग्रह 2012 के दबाव में आकर नक्सली एरिया में 75 हजार और सामान्य जनों को 70 हजार रूपये कर दी है। 
   जानकारी के अनुसार गरीबों के साथ रहने वाले पष्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार के द्वारा आरंभ में आवासीय भूमिहीनों को 16 डिसमिल जमीन दी जाती थी। उसमें सरकार के द्वारा आवासीय भूमिहीनों का सपनों का घर बनाकर देती थी। षौचालय और पेयजल की व्यवस्था होती थी। इसके साथ स्व रोजगार करने के लिए राशि दी जाती थी। जबममता दीदीशासन में आयी तो आवासीय भूमिहीनों के मिलने वाले हिस्से 16 डिसमिल जमीन में कटौती करके 8 डिसमिल जमीन देने लगी। परन्तु अन्य सुविधाओं को बरकरार रखी थीं। काफी बवाल होने के बाद आखिरकार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी झुकी और अपने निर्णय में संषोधन करके 12 डिसमिल जमीन देने लगी।
   उसी तरह बिहार में राज्य सरकार के द्वारा बिहार प्रिविलेज्ड होमस्टिड टिनेंसी एक्ट, 1947 बनाया गया है। निर्मित अधिनियम के  मुताबिक़, आवासीय भूमिहीनों को 12.5 डिसमिल ज़मीन देनी है. इस अधिनियम में कई बार संशोधन किया गया। कालातंर में इसमें 2.5 डिसमिल ज़मीन घटाकर 10 डिसमिल ज़मीन कर दी गई। इसके बाद मनमौजी राज्य सरकार ने एकाएक 6 डिसमिल ज़मीन घटाकर आवासीय भूमिहीनों को 4 डिसमिल ज़मीन देने लगी। सरकार ने आवासीय भूमिहीनों को दी जाने वाली ज़मीन की हिस्सेदारी में 1 डिसमिल ज़मीन कटौती कर 3 डिसमिल ज़मीन कर दी। अभी आवासीय भूमिहीनों को 3 डिसमिल ज़मीन दी जा रही है। अब तो मौजूदा सरकार 3 डिसमिल ज़मीन देने में कटौती करने जा रही है।

   जन संगठनों को मुख्यमंत्री के द्वारा गठित भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष डी0 बंधोपाध्याय के द्वारा आवासीय भूमिहीनों को 10 डिसमिल और महादलित आयोग के अध्यक्ष विश्वनाथ ऋषि के द्वारा 12 डिसमिल जमीन देने की अनुशंषा से बल मिल रहा है। वहीं जन सत्याग्रह 2012 के सत्याग्रह पदयात्रा के दौरान केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और सत्याग्रह पदयात्रा के महानायक पी0व्ही0राजगोपाल के बीच समझौते में आवासीय भूमिहीनों को 10 डिसमिल जमीन पाने को अधिकार से भी बल मिलने लगा है। इसको आधार बनाकर आंदोलन में कूदने की तैयारी

सुशासन सरकार के मुखिया के द्वारा भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष और महादलित आयोग के अध्यक्ष के द्वारा की गयी अनुशंसाओं को ठण्डे बस्ते में डाल दी गयी है।
    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा महादलित विरोधी नीति अपनाया जा रहा है जिसके कारण उनको 4 डिसमिल जमीन के बदले में आवासीय भूमिहीनों को 3 डिसमिल जमीन देनी  शुरू कर दी। हाल यह है कि लालू-राबड़ी शासन काल में दी गयी जमीन को ही कई टूकड़ों में विभक्त कर अन्य को वितरित कर दी जा रही है। इनको वासगीत पर्चा दी जा रही है। पहले पहल किसी सरकार के द्वारा दी गयी जमीन को बंटवारा करके अन्य लोगों को वासगीत पर्चा देकर पीठ थपथपाने लगती है। ऐसा करने से आवासहीनों को काफी दिक्कत हो रही है। एक ही झोपड़ी में कई सदस्य रहने को बाध्य हैं।  इस दिशा में जन संगठनों के द्वारा गांधी,विनोबा,जयप्रकाश,अम्बेडकर के राह पर चलकर अहिंसात्मक आंदोलन करने वाले आंदोलनकारियों से संवाद करना ही छोड़ दिये। केवल जनता दरबार में आवेदनों को पकड़कर किसी तरह की कार्रवाई नहीं करने की नीति पर चल पड़े हैं।     
   इसके आलोक में अब जन संगठनों के द्वारा बिहार में पश्चिम बंगाल सरकार की तरह ही स्पेशल पैकेज देने की मांग उठाने लगे हैं। वहीं जन सत्याग्रह 2012 सत्याग्रह पदयात्रा के दौरान आगरा में किये गये सरकार और जन सत्याग्रह के महानायक के बीच में हुए समझौता के आलोक में 10 डिसमिल जमीन की मांग शुरू कर दी है। सरकार खुद जमीन खोजकर अथवा अधिग्रहण करके महादलितों को दें और उस जमीन पर इंदिरा आवास योजना से मकान बनाये। शौचालय और पेयजल की व्यवस्था करें। लाभान्वितों के स्व रोजगार के लिए राशि विमुक्त करें। हाल के दिनों में राजस्व एवं भूमि सुधार मत्रीं रमई राम ने ऐलान किये हैं कि सरकार के द्वारा जिनको जमीन का पर्चा मिला है उनको जमीन पर कब्जा दिलवाएंगे। अब कोई भी किसी के हाथ में पर्चा और किसी ओर के हाथ में  जमीन नहीं रहेगी। यह भी गैर सरकारी संस्थाओं के लिए चुनौती ही है कि मंत्री जी से कितना काम करवा पाते हैं।


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