Wednesday 20 February 2013

Gaya

गया जिले की जिलाधिकारी वंदना प्रियदर्शी ध्यान दें

इन आदिम जातियों की सुधि लें

गया जिले की जिलाधिकारी वंदना प्रियदर्शी ध्यान दें और इन आदिम जातियों की सुधि भी लें। यह समय की मांग है। ऐसा न हो कि आदिम जाति पथ से भटक न जाए। समय रहते काम करना जरूरी है।

गया जिले के फतेहपुर प्रखंड में कठौतिया केवाल पंचायत है। जो बिहार और झारखंड राज्य के सीमा पर अवस्थित है। सरकार और नौकरशाहों की अकर्मण्यता के कारण इस पंचायत में गिद्धनी गांव अलग-थलग पड़ गया है। समाज के किनारे  और जंगल में आदिम जाति के लोग आदिवासी टोला में रहते हैं। यहां पर एक नहीं 9 आदिवासी टोला है। परन्तु सरकारी मानचित्र और नौकरशाहों के दफ्तरों में आदिवासियों के टोले का नामोनिशान और ही कोई पहचान है। आजादी के 65 साल के बाद पहली बार बच्चे 18 जनवरी 2013 को पोलियों की खुराक पीये। लाखों रूपये लगाकर पोलियों को सुरक्षित शीतयुक्त वाले बॉक्स में रखे पोलियों वैक्सिन से बच्चे पोलियों खुराक लिये। इसके बाद दूषित पानी पीने को बाध्य हो जाते हैं। अभी तमाम आदिवासी पहाड़ से उतरे पानी को एक गड्डा में जमा करते हैं और उसे पात्र में घर में ले जाकर पीते हैं। जांचोपरांत पता चला कि इस पानी में 5.45 फ्लोराइड का मात्रा है। जिसे पीने से मनुष्य के शरीर पर दुष्परिणाम दिखाई पड़ रहा है।

  गुरपासीनी पहाड़ की तलहट्टी में पसरे गुरपा जंगल में रहने वाले आदिम जाति मानुष होकर भी अमानुष बन गये हैं। ऐसे ही परिस्थिति में जीने को बाध्य हो रहे हैं। गुरपासीनी पहाड़ से उतरते पानी को आदिवासी एक गड्डा में जमा करते हैं और उसी गंदे पानी को पीने को विवश हो रहे हैं। उस गड्ढे में संग्रहित पानी को टेस्ट कराया गया तो पीने योग्य नहीं रहना करार कर दिया गया है। उस पानी में 5.45 फ्लोराइड का मात्रा निकला है। जो मनुष्य के शरीर के लिए हानिकारक है।
  यह गिद्धनी गांव का दुर्भाग्य ही है कि पंचायत के मुखिया और ही अन्य गण प्रतिनिधि भी वोट की राजनीति करने आते हैं। तब तो विकास और कल्याण अवरूद्ध होना ही है। अभी तक आदिवासियों की कोई पहचान ही नहीं है। ऐसा प्रतीक होता है कि यह सब के सब भारतीय नागरिक नहीं हैं इसी लिए भारतीय नागरिकता की कोई पहचान निर्गत किया गया है। इनके पास किसी तरह के प्रमाण-पत्र नहीं है। इस ओर सामाजिक कार्यकर्ता भी पीछे ही रह गये। जो मुंडा आदिवासियों की समस्याओं को ठोस मुद्धा के तौर पर उभार नहीं सके। जब वाटर एड इंडिया ने मार्च 2012 में प्रगति ग्रामीण विकास समिति को सहयोग देना शुरू किया,तब जाकर प्रगति ग्रामीण विकास समिति के तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं का प्रवेश गुरपा आदिवासी क्षेत्र में हो सका।
  आजादी के 65 साल के बाद मुंडा आदिवासियों के 300 बच्चों को पहली बार 18 जनवरी 2013 को पोलियो की खुराक पीये। यह इस लिये संभव हो सका कि एक गैर सरकारी संस्था प्रगति गा्रमीण विकास समिति के कार्यकर्ता शत्रुध्न कुमार ने अपने प्रयास से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र,फतेहपुर के चिकित्सा प्रभारी अशोक कुमार से मिलकर बच्चों को पोलियो मुक्त अभियान से जोड़ने का आग्रह किये। उनका प्रयास रंग दिखाया और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम जाकर बच्चों को पोलियो की खुराक दिये। खैर, अब सरकारी नौकरशाहों का कर्तव्य बनता है कि देर आये दुरूस्त आये कहावत को पूर्ण करे। यहां पर नियमित ढंग से स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाये। फिर भी कल्याणकारी सरकार और स्वास्थ्य विभाग के ऊपर सवाल खड़ा करना लाजिमी है। आखिर क्यों गोरों को खदेरने के बाद लोकतंत्र की सरकार सोती रही और अपने नागरिकों से अनजान होती रही। माना कि गुरपा जंगल में नक्सलियों और माओवादियों का वर्चस्व है फिर क्यों उन लोगों को उनके सहारे छोड़ दिया गया है जबकि आदिवासियों का उन लोगों से दूर-दूर का संबंध नहीं है। भोले-भाले आदिवासी खुद ही अपनी तकदीर और तस्वीर संवारने पर लगे हैं।
  फतेहपुर प्रखंड के कठौतिया केवाल पंचायत के गिद्धनी गांव में 9 आदिवासी टोला है। जहां पर 990 परिवार रहते हैं। झारखंड और बिहार राज्य के सीमा पर गरीब मंुडा आदिवासियों ने गुरपासीनी पहाड़ की तलहट्टी में प्रसारित घनघोर जंगल में ठौर जमा रखे हैं। आदिवासी गुरपासीनी जंगल को ही अपना जीवन-मरण का स्त्रोत बना रखा है। आदिवासियों ने प्राकृतिक प्रदत जल,जंगल,जमीन के साथ गहरा संबंध बना लिये हैं। एक व्यक्ति ने अपने कद के अनुसार 300 एकड़ वनभूमि पर हक जता लिये हैं। इस तरह यहां पर कुल आदिवासियों ने मिलकर ढाई लाख एकड़ वनभूमि पर कब्जा कर लिये हैं। अपने श्रम बूते आदिवासियों ने पहाड़ी मिट्टी को जोतखोड़ कर आबाद करने पर उतारू हैं। पुरूष और महिलाएं मिलकर खेती करते हैं। खेत में मक्का,टमाटर, सब्जी आदि ऊपजाने लगे हैं। ऊपजे आहारों को स्वयं इस्तेमाल करते हैं। अधिक होने पर ही बाजार की ओर रूख करते हैं।
   सूबे में कई सरकार आयी और चली गयी। मगर किसी ने गुरपा जंगल में रहने वाले आदिवासियों की सुधि नहीं ली। नतीजा सामने है कि आज भी मुंडा आदिवासियों को किसी तरह की भारतीय नागरिक होने का अधिकारिक प्रमाण पत्र नहीं है। ऐसा लगता है कि सरकार ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के तीन बंदरों की तरह व्यवहार कर रही है। सरकार की ओर आंख बंद होने से उन्हें किसी तरह प्रमाण-पत्र निर्गत नहीं किया गया है। अभी तक किसी के पास जाति प्रमाण-पत्र,आय प्रमाण-पत्र,परिचय -पत्र आदि नहीं है। इसके कारण सरकारी योजनाओं से महरूम हैं। 15 दिसंबर 2005 से आगे से ही वनभूमि पर रहने वालों को वनाधिकार 2005 के अधिकार से वंचित कर रखा गया है। इंदिरा आवास योजना से मकान नहीं बन पा रहा है। आंगनबाड़ी और स्कूल भी नहीं है।
  अभी वाटर एड इंडिया के द्वारा प्रगति ग्रामीण विकास समिति को सहायता दी गयी है। सहायता पाने के बाद गया जिले के फतेहपुर प्रखंड के पांच पंचायतों में शुद्ध पेयजल और पानी संग्रह आदि करने पर कार्य किया जा रहा है। फतेहपुर,पहाड़पुर,निम्मी,मतासो और कठौतिया केवाल है। कठौतिया केवाल पंचायत के गिद्धनी गांव के आदिवासी टोला में गृहणी आदिवासी टोला कमेटी बनायी है। इसके अध्यक्ष सिरका मरांडी हैं। इनका कहना है कि वाटर एड के प्रोजेक्ट मैनेजर बृजेन्द्र कुमार गत साल के मई माह में आये थे। आदिवासी टोला का सर्वे किये। सर्वे के बाद बैठक कर गृहणी आदिवासी टोला कमेटी बनाये। मुझे ही इसके अध्यक्ष का भार सौंप दिये। इस जंगल में रहने वालों के पास किसी तरह की भारतीय नागरिकता प्रमाण-पत्र नहीं है। अपने कूल देवता सरना और सिंगबोंगा से निवेदन करते हैं कि हम आदिवासियों की माली हालत में सुधार करें और राष्ट्र के मुख्यधारा में जोड़ दें। हम लोगों में काफी संख्या में शाकाहारी हैं। जो विपति आने पर मौथा घास भी खाने को विवष होते हैं। इधर आसपास के दिकूओं ने वन विभाग के नौकरषाहों से मिलकर धनाधन पेड़ काटने पर अमादा हो गये थे। परम्परागत अस्त्र-शस्त्र तीर-धनुष के बल पर भी अंधाधुन पेड़ की कटाई करने वालों को रोकने का प्रयास किया गया। जो असफल रहा। इसके बाद जंगल में आने वाली गाड़ी के पथ को ही श्रमदान करके 10 किलोमीटर  गाड़ी दौड़ने लायक सड़क निर्माण कर पाये। इसके बावजूद भी सरकार और उनके नौकरशाह गुरपा जंगल की ओर नहीं सके। श्री मंराडी ने कहा कि गत वर्ष दिसंबर माह में हम लोगों की सुधि लेने के लिए अनुसूचित जाति एवं अनूसूचित जनताति आयोग के उपाध्यक्ष ललित भगत जंगल में आये थे। खूब स्वागत किया गया और मालार्पण किया गया ताकि हम लोगों की समस्याओं का समाधान कर सके। अन्य नेताओं की तरह ही सजातीय अध्यक्ष ने किसी तरह की कार्रवाई फिलवक्त नहीं कर पाये हैं। अब देखना है कि कितने देर के बाद सबेर हो पाता है।
   वाटर एड इंडिया के प्रोजेक्ट मैनेजर बृजेन्द्र कुमार ने कहा कि नेता आये और चले गये। इसके बाद हम लोगों ने प्रजातंत्र के चतुर्थ स्तंभ को जंगल में आने का न्योता दिये। पत्रकार आये और खबर लेकर चले गये। नौकरशाहों में कुछ खलबली बची। फिर मौनधारण कर शांत हो गये। इस बीच आदिवासियों को नागरिकता दिलवाने और अंधेर नगरी में रोशनी फैलाने के उद्धेश्य से फतेहपुर प्रखंड में जाकर आवेदन दिया गया। तीन माह के बाद भी किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गयी। आदिवासी टोला में चापाकल लगाने का आग्रह भी किया गया। लेकिन नहीं लगा। वाटर एड इंडिया ने कठौतिया केवाल पंचायत के कुछ पंचायतों के चापाकल का पानी का जांच करवाया। इसमें पीएचईडी के पीएच डिविजन,गया में पानी का जांच किया गया है जो पीने योग्य नहीं है कहकर प्रमाण-पत्र पेश किया है। मगर सरकार को कटघरे में लाने के बदले यह कहकर गला फंसने से बचा दिया कि यह जल नमुना का संग्रह शत्रुधन कुुमार के द्वारा स्वयं किया गया है। अतः जल शुद्धता की गारन्टी संग्रहकर्ता के ऊपर निर्भर करता है।
   प्रोजेक्ट मैनेजर बृजेन्द्र कुमार ने कहा कि 6 चापाकल का पानी का संग्रह करके डिस्टिक्ट लेवल वाटर क्वालिटी टेस्टिंग लाबोरेट्री में भेजा गया था। इसमें आदिवासी टोला का भी पानी है। यहां के लोग गुरपासीनी पहाड़ के उतरते पानी को एक गड्डा में जमा करने के उपरांत उसी पानी को पीने को बाध्य आदिवासी होते हैं। उसका पानी भी टेस्ट के लिए भेजा गया। इस तरह 7 जगहों का पानी टेस्ट कराया गया।



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