महादलित छात्र प्रमोद कुमार की
किडनी खराब
जिदंगी दांव
पर,रकम
और किडनी की जरूरत
पटना। अपने पुत्र की किडनी की बीमारी से छुटकारा दिलवाने के
लिए ममतामयी मां दुःखिनी देवी चितिंत है। वह
अपने तरफ
से कोई
कोर कसर
नहीं छोड़
रख रही
है। अपने
नाम के
अनुरूप दुःखिनी देवी गरीबी की मार
झेल रही
हैं। वह
इस लिए
कूड़ों के
ढेर पर
जाकर कुछ
दिन रद्दी कागज आदि
चुनकर लाती
हैं और
उसे बेचकर किसी बड़े
चिकित्सक के
पास जाकर
पुत्र को
दिखलाती है।
इस क्रम
में कभी
महाबीर आरोग्य संस्थान चली
गयी हैं।
कभी न्यू
नालंदा डायग्नोस्टिक सेंटर में
जाकर जांच
करवाती हैं।
8 अप्रैल 2013 को
डा. एस.
भट्टाचार्य और
16 अप्रैल 2013 को
डा.एस.के.शर्मा को दिखला दी।
इस
समय महादलित छात्र प्रमोद कुमार की
किडनी खराब
हो गयी
है। अपने
घर के
द्वार पर
बैठकर किसी
मसीहा की
तलाश कर
रहा है।
जो रकम
और
किडनी
की जरूरत पूरी कर
सके। वह
शोषित समाधान केन्द्र के
द्वारा संचालित आवासीय विघालय के छात्र था। यहां
से नौवीं कक्षा उर्त्तीण कर दसवीं कक्षा में
जाने की
तैयारी कर
रहा था।
इस बीच
विजयादशमी के
अवसर पर
केन्द्र के
द्वारा संचालित आवासीय विघालय में छुट्टी हो गयी।
10 दिनों की
छुट्टी पर
आने के
बाद बीमार पड़ा तो
ठीक होने
का नाम
ही नहीं
ले रहा
है। यक्ष्मा रोग से
ग्रसित पिता
बुद्धू मांझी और मां
दुःखिनी देवी
हलकान और
परेशान हैं।
पिता बुद्धू मांझी पलम्बर का कार्य करते हैं
और मां
रद्दी कागज
चुनती और
बेचती है।
खा-पीकर
जो रकम
शेष दोनों ने बचा
रखे थे
उससे अपने
16 वर्षीय पुत्र प्रमोद कुमार की बीमारी में झोंक
दिये हैं।
अब पैसा
नहीं है
कि उसका
इलाज करा
सके।
राजधानी के बगल
में पटना
नगर निगम
के वार्ड नम्बर 1 में
दीघा मुसहरी है। इसे
शबरी कॉलोनी से भी
जाना जाता
है। यहां
पर 64 घरों
में महादलित मुसहर समुदाय के लोग
रहते हैं।
कोई 325 लोगों की जनसंख्या है। सूबे
की सरकार के द्वारा महादलितों का
मकान राष्ट्रीय ग्रामीण नियोजन कार्यक्रम के
द्वारा बना
दिया गया
है। जो
अब जर्जर हो गया
है। झुक
गया आसमान की तरह
मकान भी
झुक गया
है। किसी
तरह से
महादलित निवास करते हैं।
आरंभ में
दीघा के
चवर में
जाकर मुसहर समुदाय के
लोग मजदूरी किया करते
थे। बिहार राज्य आवास
बोर्ड के
द्वारा दीघा
की जमीन
को अधिग्रहण कर लिया
गया है।
तब खेत
से हटकर
महुआ और
मिट्ठा का
दारू बनाने के गैरवाजिब धंधे से
जुड़ गये
हैं। इससे
मुसहर समुदाय को कम
लाभ और
अधिक हानि
होने लगी।
बेहिसाब से
महुआ और
मिट्ठा का
दारू पीने
से मुसहर समुदाय जानलेवा यक्ष्मा बीमारी की चपेट
में आ
गये। इस
यक्ष्मा बीमारी की चपेट
में आने
से पहले
बुजुर्ग लोग
अल्लाह के
प्यारे हो
गये। इसके
बाद अधेड़ावस्था वाले मुसहरों की अकाल
मौत होने
लगी। अभी
जवान मुसहरों की मौत
हो रही
है। कुछ
दिनों के
अन्तराल में
उदय मांझी, अर्जुन मांझी और इंदल
मांझी की
मौत हो
गयी है।
इस यक्षमा बीमारी की
चपेट में
अधिकांश मुहसर आ चुके
हैं। कई
दर्जन लोगों की मौत
हो चुकी
है।
इससे बुद्धू मांझी और
दुःखिनी देवी
भी शामिल है। इस
समय अपने
पुत्र प्रमोद कुमार को
लेकर काफी
परेशान हैं।
किसी की
हिदायत पर
प्रमोद कुमार को बुद्धू मांझी ने
बड़ा हॉस्पीटल ले गये।
पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पीटल के डा.यशवंत सिंह, प्राध्यापक के डा.
यशवंत सिंह
यूनिट, नेफ्रोलाजी विभाग में
9 मार्च 2013 को
भर्त्ती कराया गया।
इसके बाद
21 मार्च 2013 को
हॉस्पीटल से
नाम काट
दिया गया।
ओ.पी.डी.से
प्रमोद कुमार को दिखलाते रहने का
परामर्श दिया
गया। अपने
पुत्र की
किडनी की
बीमारी से
छुटकारा दिलवाने के लिए
ममतामयी मां
दुःखिनी देवी
चितिंत है।
वह अपने तरफ
से कोई
कोर कसर
नहीं छोड़
रख रही
है। अपने
नाम के
अनुरूप दुःखिनी देवी गरीबी की मार
झेल रही
हैं। वह
इस लिए
कूड़ों के
ढेर पर
जाकर कुछ
दिन रद्दी कागज आदि
चुनकर लाती
हैं और
उसे बेचकर किसी बड़े
चिकित्सक के
पास जाकर
पुत्र को
दिखलाती है।
इस क्रम
में कभी
महाबीर आरोग्य संस्थान चली
गयी हैं।
कभी न्यू
नालंदा डायग्नोस्टिक सेंटर में
जाकर जांच
करवाती हैं।
8 अप्रैल 2013 को
डा. एस.
भट्टाचार्य और
16 अप्रैल 2013 को
डा.एस.के.शर्मा को दिखला दी। इस समय
प्रमोद कुमार के पूरे
षरीर में
सूजन है।
शराब करने
में काफी
दिक्कत हो
रही है।
बस अपने
घर के
दरवाजे में
बैठा अथवा
सोकर रहता
है। जानकार लोगों का
कहना है
कि प्रमोद कुमार के
इलाज में
10 से 12 लाख
रूपए व्यय
होगा। प्रायः पुत्र की
किडनी खराब
होने पर
मां की
किडनी उपयुक्त होती है।
यहां तो
प्रमोद कुमार की मां
को यक्ष्मा रोग हुआ
है। पहले
दवाई खायी
और स्वस्थ होने पर
छोड़ दी
है। इस
अवस्था में
कोई सज्जन कीडनी दान
करेगा। सरकार और कोई
दाता भारी
भरकम रकम
दान करें
तभी ही
प्रमोद कुमार की जिदंगी बचायी जा
सकती है।
अब देखना है कि
जिदंगी दांव
पर लगाये प्रमोद कुमार को आगे
क्या हो
रहा है?
सामाजिक कार्यकत्री माला श्री का कहना है कि इस महादलित की जिंदगी बचाने की जरूरत है। इसमें सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका बन जाती है कि दोनों मिलकर इस छात्र को ठीक करा दें।
आलोक कुमार