आजतक महादलितों का मकान निर्माण नहीं करवाने का प्रयास किया गया नाच बगीचा में
महिलाएं अपने बच्चों को दारू पिलाकर सुलाती हैं,तब जाकर खेत में काम करने जाती हैं
पटना। राजधानी के बगल में ही नाच बगीचा है। इसी के बगल में शुरू में यहां पर विख्यात सत्तुआनी मेला लगता था। इस मेले में दूर दराज के लोग आकर मेला का खुब लुफ्त उठाते थे। घर में इस्तेमाल करने वाले समान भी खरीदारी किया करते थे। जो अब बंद हो गया। आसपास में आधुनिक मॉल खुल गये हैं। वहीं पर जाकर लोग खरीदारी किया करते हैं। खुद को लोग बदल लिये हैं। परिवर्तन की युग में मेला के बदले में मॉल ले लिया है। हां, सिर्फ नाच बगीचा के महादलित मुसहर समुदाय के लोगों में परिवर्तन नहीं हो सका है। यहां पर सरकार के द्वारा महादलितों का मकान निर्माण करवाने का प्रयास ही नहीं किया गया। इनके पूर्वज झोपड़ी में पैदा होकर झोपड़ी में ही मरकर परलोक चले गये। अगर सरकार की इसी तरह की बेरूखी रूख रहा तो वर्तमान पीढ़ी भी औरों की तरह ही झोपड़ी में जन्म लेंगे और झोपड़ी में ही मर जाएंगे।
नाच बगीचा में एक नहीं 125 साल से रहते हैं-
आजादी के 66 साल के दरम्यान भले ही सरकार सीना फुलाकर सरकारी उपलब्धि पेश कर दें। परन्तु आज भी अधिकांश महादलित टोलों में स्थिति विस्फोटक है। यहां के लोग अपने पैमाने पर जीने को बाध्य हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में प्रसिद्ध बाटा कम्पनी के सामने महादलितों को वासगीत पर्चा निर्गत किया था। पूर्व मुख्यमंत्री के द्वारा वितरित वासगीत पर्चा को महादलित जत्तन से बक्सा में रखे हुए हैं। महादलितों ने बताया कि यहां पर 40 लोगों को वासगीत पर्चा वितरित किया गया है। समय के अन्तराल में लोगों की संख्या बढ़ गयी है। सो सर्वें करने के बाद शेष महादलितों को भी वासगीत पर्चा बनाने की जरूरत होगी। कुल 35 लोगों को बीपीएल श्रेणी में रखकर 5 लोगों को अन्त्योदय पीला कार्ड दिया गया है। शेष 30 लोगों को लाल कार्ड निर्गत किया गया है। अन्नपूर्णा कार्ड के बारे में लोगों को जानकारी नहीं है। इसके तहत फ्री में राशन दिया जाता है। 10 लोगों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिलती है। सबीर मांझी 68 और विधवा जीरामणि देवी को पेंशन नहीं मिलती हैं इसका पति नगीना मांझी की मौत हो गयी है। 10 माह हो गया है। 30 लोगों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना आरएसबीवाई के तहत कार्ड बना हुआ है। 10 लोगों को नहीं बना है। स्मार्ट कार्ड की कीमत 30 रूपए लेकर चलता बना।
एक भी मैट्रिक उर्त्तीण नहीं-
गैर सरकारी संस्था कुर्जी होली फैमिली अस्ताल के द्वारा नाच बगीचा में कार्य किया जाता है। अस्पताल ने सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास केन्द्र खोल रखा है। यहां के कार्यकर्ता आकर सर्वाग्रीण विकास की पाठ पढ़ाते हैं। इनके प्रयास से स्कूल भी खोला गया है। जो ‘ए’ से ‘जेड’ तक पढ़ाई तक ही सीमित है। इन गैर सरकारी संस्थाओं का यह प्रयास नहीं होता है कि केजी से लेकर उच्च शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था कर दें। इसका नतीजा यह है कि यहां पर आजतक एक वंदा मैट्रिक उर्त्तीण नहीं हो सका है। मुख्यमंत्री साइकिल योजना से किसी को लाभ नहीं मिल पाया है। अभी सबसे अधिक 9 वीं तक की पढ़ाई एक किशोरी कर रही है। इसके साथ 25 बच्चे स्कूल जा रहे हैं। ऐसे बच्चे कभी भी स्कूल छोड़कर पापी पेट को भरने के लिए रद्दी कागज आदि चुनने के लिए जा सकते हैं। ऐसे बच्चे स्कूल में नहीं कूड़ा के ढेर पर जाकर किस्मत चमकाते हैं। गुजली देवी, अभी चिंता देवी के साथ अंजलि, रानी, कल्लू आदि कागज प्लास्टिक आदि चुनने जाते हैं।
चार बीघा जमीन पर झोपड़ी बनाकर रहते हैं-
नाच बगीचा चार बीघा में पसरा है। इधर-उधर झोपड़ी बनाकर मुसहर लोग रहते हैं। नाच बगीचा में एक गड्डा है। 10 साल पहले इसमें मछली पालन किया करते थे। एक साल के लिए 17 सौ रूपए में लेकर गड्डा में जीरा छोड़ते थे। इससे आमदनी होने से परिवार का भरण-पोषण किया करते थे। जो 17 सौ रूपए प्राप्त होता था। उस राषि से मुहसर समुदाय समान खरीदते थे। ताकि किसी तरह के त्योहार के समय में उपयोग किया जा सके। खासकर भोजन बनाने का बर्त्तन आदि खरीदा गया है। आरंभ में इस तरह गांव में किया जाता था। जो लगभग विलुप्त के कगार पर है। अच्छी बात है कि यहां के मुसहर समुदाय के लोग उक्त परम्परा को बनाएं हुए हैं।
हुजूर के पास आवेदन देंगे-
पटना जिले के जिलाधिकारी महोदय के पास महादलितों ने आवेदन दिया है। इस आवेदन में महादलित मुसहर समुदाय ने उल्लेख किया है कि आजादी के 66 साल के बाद भी कच्ची मिट्टी की दीवार वाले घर में रहने को बाध्य होना पड़ रहा है। समाज के किनारे रह जाने मुहसर समुदाय का यह भी कहना है कि राजधानी में भव्य-भव्य इमारत खड़ी की जा रही है। वहीं हम लोग सुअर के बखौरनुमा घर में रहने को बाध्य हो रहे हैं। दुखद पहलु यह भी है कि सरकार के द्वारा समय-समय पर योजनाओं में बदलाव लाकर महादलितों के रहने लायक घर बनाने की कोशिश की जाती है। परन्तु आजतक किसी योजना से नाच बगीचा में घर बनाने के लिए प्रयास नहीं किया गया है। जबकि शहर से बहुत ही कम दूरी पर नाच बगीचा स्थित है।
बहुमंजिला मकान से निर्माण के खिलाफ हैं महादलित -
महादलित विट्टेश्वर मांझी कहते हैं कि हम लोग 125 सालों से नाच बगीचा में रहते हैं। सरकार के द्वारा सबसे पहले राष्ट्रीय ग्रामीण नियोजन कार्यक्रम से घर बना। इसके बाद ग्रामीण भूमिहीन नियोजन गारंटी कार्यक्रम और आजकल इन्दिरा आवास योजना से मकान बन रहा है। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के सहयोग और जन संगठन एकता परिषद के दबाव के कारण 70 हजार रूपए में इन्दिरा आवास योजना से मकान निर्माण कराया जा रहा है। हम लोगों के नाम से सरकार के द्वारा पर्चा दिया गया है। जमीन पर कब्जा भी है। बहुत आसानी से बिना अड़चन से मकान बनाया जा सकता है। यहां पर व्यक्तिगत मकान बनाया जाए। बहुमंजिला मकान के खिलाफ महादलित हैं। जिस जगह पर घर है। उसी जगह में घर बनाया जाए। इस पर चिंता देवी कहती हैं कि नाफी के अनुसार ही घर बने। अभी खेत में काम करने से मर्द लोगों को डेढ़ सौ रूपए के अलावे सुबह में दाल और भात मिलता है। 12 बजे सत्तू पीने को मिलता है। मजदूरी में अन्तर है। महिलाओं को सिर्फ 60 रूपए मिलते हैं। महिलाएं अपने चार माह के ऊपर के बच्चों को दारू पिलाकर सुलाकर खेत में काम करती रहती हैं। बाद से बच्चे को चस्का लगाने इनको कुबत नहीं है कि अपने पैसे के बल पर मकान बना सके। इसी लिए सुअर के बखौरनुमा झोपड़ी में रहने को बाध्य हैं।
आलोक कुमार