Wednesday, 27 November 2013

ग्रामीण क्षेत्र में बेहतर और शहरी क्षेत्र में मजदूरी कम





दानापुर। अगर मालिक के द्वारा धान काटने वालों को मजदूरी के रूप में बंधोड़िया धान दिया जाता है। इस तरह की मजदूरी से महिला किसानों को फायदा होता है। अभी भी ग्रामीण क्षेत्र में मालिकों के द्वारा महिला किसानों को मजदूरी के रूप में बंधोड़िया धान ही दिया जाता है। मगर शहर में मालिकों द्वारा महिला किसानों को मजदूरी के रूप में फेकोड़िया धान दिया जाता है। इस तरह की मजदूरी से महिला किसानों को काफी घटा उठाना पड़ता है।

इस संबंध में महिला किसान किरण देवी कहती हैं कि सबसे पहले खेत में तैयार धान को काटा जाता है। जब धान को काट लिया जाता है। तो उसे खेत में ही सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। कोई चार-पांच दिनों के बाद धान सूख जाने के बाद धान को कुछ पुआल से ही बंधन बांध दिया जाता है। पुआल के बंधन से बंधे 5 बंधन को 1 गाही कहा जाता है। इसे 17 जगहों में रखा जाता है। कुल मिलाकर 17 गाही में 85 बंधन होते है। इनमें से 16 यानी 80 बंधन को मालिक के घर पहुंचा दिया जाता है। इसमें शेष 1 गाही यानी 5 बंधन ही महिला किसान के हत्थे पड़ता है। इसी तरह की मजदूरी को फेकोड़िया कहा जाता है। इसमें ढाई किलो ग्राम तक धान निकल जाता है। वहीं आज भी देहात में धान का बोझा तैयार करके धान को बांधा जाता है। 12 बोझा तैयार करने में 1 बोझा को महिला किसान को दे दिया जाता है। बोझा को चलने भर ही बांधा जाता है। देहात में महिला किसानों को बंधोड़िया ही धान की मजदूरी दी जाती है। इसमें 7-8 किलो धान निकल जाता है। धान को काटने के साथ मालिक के घर तक पहुंचाने में 14-15 दिन लग जाता है।


आलोक कुमार