Saturday 28 December 2013

‘चुनावी घोषणा पत्र तो राजनीतिक पार्टी का लॉलीपोप होता’

पटना। जन संगठन एकता परिषद के तत्तावधान में शनिवार को अनुग्रह नारायण समाज अध्ययन संस्थान में एक दिवसीय बिहार में भूमि सुधार के संदर्भ में सामाजिक संगठनों एवं राजनैतिक दलों के साथ परिसंवाद का आयोजित किया गया।
इस अवसर पर आईपीएफ के अध्यक्ष के . डी . यादव ने कहा कि हमारे पास अपना एजेंडा है। उसी को लेकर बढ़ रहे हैं। इस समय बाथे नरसंहार के सवाल को लेकर हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है। आगामी आम चुनाव को लेकर तैयारी जोरों पर है। नूतन वर्ष 2014 में जन संवाद यात्रा है। 10 से 24 दिनों तक यात्रा चलेगी।
आईपीएफ की भी मुद्दा भूमि सुधार है। बिहार का दुर्भाग्य है कि यह मुद्दा रूकता और बढ़ता है। जो खतरनाक अवस्था की ओर इंगित करता है। सतत मुद्दा को गतिशील करने की जरूरत है। जन संगठन एकता परिषद के द्वारा भूमि सुधार को राजनीतिक मुद्दा बनाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। राजनीतिक दलों के पास खुद अनेक मुद्दा है जिसे चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया जाता है। फिर भी वामपंथी दलों के द्वारा भूमि सुधार को लेकर कार्यशील संगठनों को नैतिक समर्थन मिलता रहा है। फिलवक्त संयुक्त आंदोलन नहीं किया जा सकता है। मगर विचारों का साझा समर्थन मिलता रहेगा। बाहर से सपोर्ट भी करेंगे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भूमि सुधार को राजनैतिक मुद्दा बनाने के लिए काफी जद्दोजद करना होगा। अपने लोकल कमिटी में चर्चा करने के बाद ही किसी नतीजे पर आया जा सकता है।
सीपीआई के नेता रामबाबू कुमार ने केन्द्रीय सरकार पर निशाना साधा। और कहा कि यूपीए -1 की कार्यकाल वर्ष 2004 से 2009 तक रहा। जनादेश 2007 पदयात्रा सत्याग्रह की गयी। इसके बाद वर्ष 2009 से 2014 तक से यूपीए -2 सत्तासीन है। इस अवधि में जनादेश 2012 पदयात्रा सत्याग्रह की गयी। केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति नहीं बना सकी। अब केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों को एडवाइजरी भेज दिया है। राज्य सरकार भी एडवाइजरी को मछली की तरह चारा खाकर पानी के अंदर गौता लगाकर शांत हो गयी। इसका मतलब केन्द्र सरकार भूमि सुधार संबंधी नीति अथवा कानून बनाने के मूड में नहीं है। सरकार आंखों में धूल झोंक रही हैं। यह सब सरकार के सांमती सोच का परिचायक कृत्य है।
इस समय भूमि सुधार संबंधी मुद्दे को राजनीतिक पार्टी की चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करवाने का प्रयास चल रहा है। चुनावी घोषणा पत्र तो राजनीतिक पार्टी का लॉलीपोप होता है। यह सब जनता को लुभाने के लिए होता है। यह देखना जरूरी है कि सरकार के एजेंडा ऑफ गर्वमेंस में शामिल है। अगर सरकार के एजेंडा में भूमि सुधार नहीं है तो आप लाख प्रयास करेंगे जो बेकार साबित होते रहेगा।
बिहार लोक अधिकार मंच के विनोद रंजन ने कहा कि वकील बनना आसान है। मगर वकालत करना आसान नहीं है। इसी तरह सरकार एलान करती है कि आवासीय भूमिहीनों को जमीन देंगे। परन्तु अमल नहीं करती है। सरकार के नौकरशाह सीओ और बीडीओ कहते हैं कि जमीन खोजकर ला दें। तब जाकर बंदोबस्ती करा देंगे। दूसरी और टाटा , बाटा जैसे लोगों को सरकार भूमि अधिग्रहण करके देती है। इसके खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है।
इस अवसर पर सीपीआईएम के राज्य सचिव विजय कांत ठाकुर , सीपीआई के रामबाबू कुमार , किशोरी दास , विजय गोरैया , अनिल पासवान , विनय कुमार आदि ने भी संबोधित किया। परिसंवाद का संचालन प्रदीप प्रियदर्शी ने किया।
Alok Kumar