Thursday 2 January 2014

किसका प्रकोप



केवल नदी की बाढ़ है,
या कि बरसात भी,
मौसम का प्रकोप है,
कि मौसम का युद्ध भी,
और सबसे ज्यादा,
तैयारी हमारी,
कि होगी बारिश तेज़,
पर कितनी बुलंद थी इमारत हमारी?
कितनी पुख्ता सडकें हमारी?

कितने तैयार थे लोग?
कहाँ था उनका बसेरा?




बिम्ब
मेरे नहीं,
बिम्ब केवल,
कवि की दलील नहीं,
पोएटिक लाइसेंस की बात नहीं,
ये तर्क नहीं,
कि कविता है,
ख़बर नहीं,
भर्त्सना कहर की,

बिम्ब केवल,
फटते हुए ह्रदय के,
ह्रदय विदारक ख़बरों के,
ज़ार ज़ार क्रंदन के,
अबला नारियों के,
बिम्ब उस एक दुखियारे मन का,
जो समझ नहीं पाता कि क्यूँ खफा हैं उससे,
दुनिया भर की खुशियाँ,
बिम्ब कराहते सरापते शब्दों का,
बिम्ब उस गवई राजनीति का,
जो दबी ज़बान कहता है,
कि वो अकेली औरत तो डायन है,
झोपड़ पट्टी में अपनी,
आग लगाने के तिकड़म करती है,
जादू पूजती है,
टोना भी,
फलां औरत नागिन अवतार है,
पर दूर ऐसे सब तंत्रों से,
बिम्ब केवल,
ह्रदय के फटने का,
अकेला, असहाय ह्रदय,
रुक जाए कभी,
कहीं अकेला,
ऐसे नाकाम खौफों का,
गगनचुम्बी इमारतों की आला,
उम्दा कुर्सियों का,
मन रुपी आकाश पर,
किसी के फूल बनकर खिलने का,
बिम्ब कोई ऐसा खूबसूरत…………………
----------पंखुरी सिन्हा