दानापुर। रूपसपुर नहर के किनारे चुल्हाई चक मुसहरी है। लालू के शासनकाल में इंदिरा आवास योजना से मकान बना था। तब से ही दर-दर भटकने वाले मुसहर जमकर रहने लगे। फिर से एक बार मुसहरों को भटकने की नौबत आने वाली है। इनका सपनों का आशियाना ढहने वाला है। सड़क चौड़ीकरण करने के नाम पर मुसहर खदेड़ दिये जाएंगे। इसको लेकर मुसहर समुदाय के लोगों में चिन्ता व्याप्त है। यहीं चिन्ता राजकली देवी के चेहरे पर भी देखा जा सकता है।
रूपसपुर नहर के ही बगल में फौदारी टाइल्स नामक कम्पनी में भुल्ला मांझी कार्यरत थे। यहां पर पल्लेदारी करते थे। बने चकाचक टाइल्स को गाड़ी पर लॉड करते थे। भुल्ला मांझी की मौत हो गयी। देखते ही देखते पांच साल का वक्त गुजर गया। इस बीच भुल्ला मांझी का एकलौता पुत्र दुखन कुमार और उसकी मां राजकली देवी अकेली हो गयी। सरकार भूलकर भी राजकली देवी और दुखन कुमार की सुधि लेने नहीं आयी। इसके कारण इंदिरा आवास योजना के मकान के अलावे सरकारी योजनाओं से राजकली देवी को लाभ नहीं मिल रहा है। मसलन पति भुल्ला मांझी की मौत के बाद कबीर अंत्येष्ठि योजना से 15 सौ रूपये का लाभ नहीं मिला। मुख्यमंत्री परिवार लाभ योजना से 20 हजार रूपये की राशि नहीं मिली। लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना से प्रतिमाह 200 रूपये और असंगठित कामगार एवं षिल्पकार षताब्दी योजना के तहत 30 हजार रूपये से लाभान्वित नहीं हो सकी।
इस समय कुहासा और पच्छिया हवा की मार सहकर राजकली देवी पेट की आग बुझाने बाहर निकली है। कद से बड़ा बोरा लेकर रद्दी कागज चुनने निकल जाती हैं। वह कहती हैं कि काफी दिक्कत से रद्दी कागज वाले बोरा उठा पाती हैं। दिनभर चक्कर लगाने के बाद 50 रूपये की रद्दी बेच लेती हैं। उसी से खाना-दाना चलता है।
स्व. जट्टाही मांझी की पत्नी श्रीमती देवी से लड़ाई हो जाने से बायीं हाथ टूट गयी है। कभी बीमार पड़ जाने पर रद्दी कागज चुनने नहीं जाती हैं। उस दिन भूखले सो जाती हैं। बेटवा दुखन भी सो जाता है। अभी काम करने लायक नहीं है। 12 साल का है। फिर भी वह भी रद्दी कागज चुनने में सहायक बनता है। बकरी और मुर्गा खाने के संबंध में राजकली कहती हैं कि यह सपना अपना नहीं हो पाता है। इसके बदले में पोल्ट्री फॉम में खराब हो गये अंडे को रविवार के दिन बेचने आते हैं। एक अंडा की कीमत दो रूपये है। इसी को लेकर तरकारी बनाया जाता है।
अभी तक विकास योजनाओं से लाभ नहीं मिलने के बारे में पूछने पर राजकली देवी कहती हैं कि कई लोग आते हैं। मोटी रकम ऐंठ के चले जात हैं। इसमें वार्ड कौसिंलर सुधीर राय सहायक नहीं होते हैं। कई बार पेंशन के लिए रकम दे चुकी है, तब भी पेंशन से महरूम है। यह घोर अन्याय है कि बीपीएल सूची में भी नामदर्ज नहीं है। आखिर गरीबी के दलदल से राजकली देवी कब निकल पाएंगी,यह यक्ष सवाल है?
आलोक कुमार