पटना।
राष्ट्रीय मुसहर भुईया विकास
परिषद के संयोजक
उमेश मांझी ने
कहा कि आज
का दिन ऐतिहासिक
है। हम मुसहर-भुईया के कर्मठ,
अनुभवी एवं विद्वान
हस्ति माननीय जीतन
राम मांझी के
मुख्यमंत्री पद पर
आसीन होने पर
अभिनंदन कर रहे
हैं। जब मुख्यमंत्री
सामाजिक जीवन में
थे तो हमलोगों
को उंगली पकड़कर
चलना सीखाया है।
जब भी जरूरी हुआ तो माननीय आ जातेः सूबे के
जिलों के कोने-कोने में
जाकर अपने समाज
के अलावे दलित
समाज के अन्य
जातियों को भी
दुख-दर्द बांटने
में पीछे नहीं
रहे। उन्होंने कहा
कि साल 2006 में
मेरे गांव शिवालापर
के दबंग जाति
के कुछ लोगों
ने एक मंदिर
में मुसहर समुदाय
की एक लड़की
को प्रवेश करने
को लेकर हंगामा
किए।लड़की की मारपीटाई
की गयी। मुसहर
समुदाय के कुछ
लोगों पर कातिलाना
हमला किया गया।
दबंगों ने महिलाओं
और बच्चों पर
खौलता दाल उघेल
दिया। इस अत्याचार
से कई महिलाएं
और बच्चे जल
गए। इस अमानुषिक
घटना के आलोक
में स्थानीय पुलिस
हाथ पर हाथ
धड़कर बैठे रहे
और किसी तरह
की कार्रवाई नहीं
की। दूसरे दिन
जानकारी मिलने के बाद
पर तत्क्षण स्थानीय
थाना में जानकारी
लिए तब भी
किसी तरह की
कार्रवाई नहीं की
गयी ।तो आज
के मुख्यमंत्री जीतन
राम मांझी जी
को फोन कर
वस्तुस्थिति से अवगत
कराए। जब फोन
से वार्ता हो
रही थी तो
उस समय मंत्री
पद पर आसीन
नहीं थे। उस
समय गया जिले
में भ्रमण पर
निकले थे। इस
बाबत जानकारी पाते
ही भ्रमण से
वापस पटना आ
गए। प्रभावित गांव
में गए और
जाकर पीड़ितों से
मिलकर सारी जानकारी
प्राप्त की। तत्काल
अपने स्तर से
इलाज कराया और
प्रशासन के उच्चाधिकारियों
से बात की।
उसके बाद जिला
प्रशासन हरकत में
आयी और दबंगों
को जेल जाना
पड़ा।
मुसहर-भुईया समाज के 94 प्रतिशत लोग सड़क किनारेः दिल पर
रखकर हाथ बोले
कि देश आजाद
है? आजादी के
66 साल के बाद
भी महादलित मुसहर-भुईया समाज की
स्थिति यह है
कि 94 प्रतिशत लोग
सड़क, नाला,नहर
आदि सार्वजनिक या
मालिक गैर मजरूआ
जमीन पर निवास
करते आ रहे
हैं। अब तो
सड़क चौड़ी हो
रही है। नालों
की उड़ाही की
जा रही है।
नहरों को साफ
किया जा रहा
है। आसमान छुती
जमीन की कीमत
के कारण मालिक
गैर मजरूआ जमीन
से लोगों को
बेदखल किया जा
रहा है। इसमें
सबसे ज्यादा कोई
प्रभावित हो रहा
है तो वह
मुसहर-भुईया समाज
के लोग हैं।
इनके सामने अस्मिता
बचाने का सवाल
आ गया है।
अकेले पटना शहर
में दर्जनों मुसहर
टोली उजड़ गये
है या उजड़ने
वाले है। कमोवेश
राज्य के सभी
जिलों में है।
इस ओर कारगर
कदम उठाने की
जरूरत है। तत्काल
प्रभाव से उजाड़ने
की प्रक्रिया बंद
हो। इस पर
तबतक रोक रहे
जबतक पुनर्वास की
व्यवस्था नहीं की
जाती है।
मुसहर-भुईया समाज के लोग अधिक निरक्षर ही हैं: यह
सुनकर आश्चर्य होगा
कि मुख्यमंत्री महोदय
जिस समाज से
आते हैं उसकी
साक्षरता दर मात्र
6 प्रतिशत है। इसमें
महिलाओं की स्थिति
और अधिक खराब
है। सत्तारूढ़ दल
के मुखिया होने
के नाते शिक्षा
क्षेत्र में कारगर
कदम उठाने की
जरूरत है। वैसे
तो वर्तमान सरकार
के प्रयास से
शिक्षा के प्रति
लोगों के बीच
में ललक बढ़ी
है। समुदाय के
लोगों में जागरूकता
पैदा करने में
टोला सेवकों की
अहम भूमिका रही
है। इन लोगों
ने उल्लेखनीय योगदान
दिया है। इनका
सहयोग और परिवार
के लोगों के
मेहनत पर पानी
फेर दिया जा
रहा है। बच्चों
का नामांकन आवासीय
विघालयों में संख्या
के अनुपात में
नहीं हो पाता
है। जरूरी है
कि अनुमंडल में
20 हजार या उससे
अधिक जनसंख्या में
है वहां पर
एक-एक आवासीय
विघालय छात्र-छात्राओं के
लिए खोला जाना
चाहिए।
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समाज पर ज्यादा शोध एवं प्रकाशन का अभाव रहाः समाज के
किनारे रह जाने
के कारण साहित्यकारों
ने भी समाज
को दरकिनार करके
रखा है। इस
लिए पढ़े-लिखे
बुद्धिजीवी साथियों को इस
समाज के बारे
में ज्यादा लिखा
हुआ साहित्य नहीं
मिलता है। जिसका
परिणाम है कि
हम अपने इतिहास
एवं गौरव को
नहीं जान पाते
हैं। इसलिए यह
जरूरी है कि
राजधानी में पर्वत
पुरूष एवं कर्मवीर
आदरणाीय दशरथ मांझी
के नाम पर
एक शोध संस्थान
की स्थापना की
जाए जिसका संचालन
मुसहर समाज के
लोगों को दिाया
जाए। ताकि भविष्य
की पीढ़ी अपने
समाज में घटित
हो रहे घटनाओं
से अवगत हो
सके।
मुसहर-भुईया की आबादी को लेकर विरोधाभाष बरकरारः जिस
प्रकार सरकार गरीबी रेखा
के नीचे वालों
की संख्या को
लेकर परेशान है।
उसी तरह मुसहर
समुदाय के लोगों
के बीच में
विरोधाभाष है। समाज
की संख्या 60 लाखा
और उससे अधिक
ही है। लेकिन
सरकारी आंकड़ों में कुछ
और ही बयान
किया जाता है।
जातिगत जनगणना के समय
समाज के सभी
लोगों का गणना
नहीं की जा
सकी है। इसका
मुख्य कारण कि
दक्षिण बिहार के अधिकांश
लोग ईंट-भट्टों
पर कार्य करने
के लिए चले
जाते हैं और
उत्तर बिहार के
लोग रोजी-रोजगार
की तलाश में
दूसरे प्रदेशों में
चले जाते हैं
उनकी गणना नहीं
की जाती है।
इस प्रकार 40 प्रतिशत
लोग छुट गए
हैं। इसलिए यह
जरूरी है कि
इस की गणना
के लिए अलग
से पहल करनी
चाहिए ताकि उनकी
संख्या की जानकारी
हो सके और
राजनैतिक संस्थानों में जनसंख्या
के अनुरूप भागीदारी
मिल सके।
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आलोक
कुमार
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