प्रत्येक हफ्ता डेढ़ हजार रूपए खर्च करती हैं बच्ची पर
मनोरमा
इस बाबत कोई सुझाव हो,तो देने का कष्ट करेंगे
पटना। आप
इस अद्भूत बच्ची को देखकर जरूर ही आश्चर्य में पड़ गए होंगे? कुदरत से प्राप्त बच्ची को ममतामयी माँ सीने से सटा कर रखती हैं। भौतिक
विलासिता को छोड़कर माँ ने बच्ची की सेहत और जिदंगी के लिए ‘मनौती’ भी माँगने से बाज नहीं आ रही है। अगर
बच्ची ठीक हो जाएंगी तो भगवान भास्कर और दिवाकर को जल चढ़ाएंगी। आजीवन छठ करती
रहेगीं।
राजधानी
के बगल में है पटना नगर निगम के वार्ड नम्बर-1। इस वार्ड नम्बर-1 में दीघा मुसहरी
है। इसे शबरी कॉलोनी भी कहा जाता है। यहाँ पर स्व.केदार मांझी और श्यामसखि देवी का
घर है। दोनों की पुत्री मनोरमा देवी है। फिलवक्त मनोरमा देवी टोला सेवक हैं। इस
बच्ची के बारे में मनोरमा देवी कहती हैं कि बच्ची दादी और नानी के घर में लोकप्रिय
हैं। तभी न दादी के घर वालों ने बच्ची का नाम अंशु कुमारी रख दिए हैं। वहीं नानी
के घर वालों ने बच्ची का नाम महिमा कुमारी रख दिए हैं। शारीरिक रंग को देखकर आम
लोग ‘भूरी’ कहकर पुकारते हैं।
मनोरमा
देवी कहती हैं कि आठ माह में ऑपरेशन से बच्ची का जन्म हुआ। उस समय बच्ची की आँख
नहीं खुल पा रही थी। दारू-दारू करने के बाद ही आँख खुल सकी। वह बहुत ही संवेदनशील
बच्ची है। सूर्य की रोशनी को बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं। अगर धूप में बच्ची को रख
दी जाए तो टमाटर की तरह लाल हो जाती है। जोर-जोर से रोने लगती है।गर्मी से शरीर के
चमड़ी फट जाती हैं। चमड़ी फटने से खून भी बहने लगता है।
अंशु
कुमारी जन्म से ही चिकित्सकीय परामर्श पर हैं। एक सप्ताह में डेढ़ हजार रूपए खर्च
करके दवा-दारू ली जाती है। चिकित्सकों का कहना है कि 20 साल के बाद बेहतर हो जाएगी। इसका मतलब प्रति माह डेढ़ हजार रूपए खर्च करना
ही पड़ेगा। अभी महिमा कुमारी की उम्र ढाई साल है।
महादलित
मुसहर समुदाय की हैं मनोरमा देवी। वह अपनी बच्ची की सेहत को लेकर चितिंत रहती हैं।
नाम के अनुरूप मनोरमा देवी मनोरम दृश्य प्रस्तुत नहीं कर पाती हैं। सदैव उदास रहकर
जिदंगी काट रही हैं। अगर आप ‘भूरी’ को ठीक करने का कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आप जरूर ही सुझाव
देंगे। अगर कोई दान करना चाहते हैं तो आप निःसंकोच देकर दान दे सकते हैं।
आलोक
कुमार
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