Friday 18 December 2015

एप्रोच रोड के निर्माण के चलते बिन्द टोली के लोगों पर तलवार


इसी तरह मिट्टी भरकर बनेगी एप्रोच रोड
विस्थापित होने वाली तलवार को
लेकर  है चर्चा
पटना। बिन्द टोली में हडकम्प बच गया है।छोटे-छोटे समुह में लोग बात करने लगे हैं। बात दीघा रेल पुल के एप्रोच रोड के निर्माण को लेकर उत्पन्न आफत से है। माननीय उच्च न्यायालय में दायर दो याचिकाओं पर आये फैसले के बाद हटना तय है। बिन्द टोली के वाशिंदों की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें जमीन का मुआवजा दिये बिना सड़क नहीं बनाने की बात कही थी। न्यायालय ने सरकार की उस अपील को स्वीकार कर लिया है जिसमें उसने कहा था कि बिन्द टोली के लोगों को मुआवजा नहीं देगी क्योंकि वह उसकी जमीन है और ग्रामीणों ने उस पर अतिक्रमण कर रखा है। वैसे रेलवे ने सड़क निर्माण के लिए राज्य सरकार को पहले ही 94 करोड़ रूपये दे रखा है। इसके आलोक में सीएम नीतीश कुमार ने बिन्द टोली के लोगों को पुनवार्सित करने का मन बनाकर मंत्री परिषद से प्रस्ताव पारित कर रखा है। बिन्द टोली के 205 परिवारों को अविलम्ब दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया जाएगा। कुर्जी मोड़ के समीप गंग स्थली में बसाया जाएगा। चिन्हित जमीन गड्ढे में है। उसे 10 फीट भरना होगा। तभी गंगा नदी का पानी नहीं चढ़ पाएगा। विस्थापित परिवारों को घर बनाकर देने की मांग की गयी है। बिजली लाइन,पेयजल,शौचालय,पुल,सड़क,उप स्वास्थ्य केन्द्र,आंगनबाड़ी केन्द्र, राजकीय मध्य विघालय आदि परिसंपति निर्माण हो। 

यही है बिन्द टोली
गहन जांच करते
आखिर क्या मामला हैः बिन्द टोली के लोगों द्वारा प्रेषित याचिका में माननीय पटना उच्च न्यायालय के एकल पीठ ने पक्ष में निर्णय दिया था। एकल पीठ ने कहा था कि जमीन वहां के वाशिंदों की है। सरकार मुआवजा देने के बाद उसे ले सकती है। एकल पीठ के फैसले को सरकार
ने अपील के माध्यम से चुनौती दी है। एप्रोच रोड के बनने से रेल पुल पर वाहनों का आवागमन निर्बाध रूप से हो सकेगा। अभी बिन्द टोली बाधक है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी व न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह की पीठ ने इसके साथ ही बिन्द टोली वालों की तरफ से यदु महतो द्वारा दाखिल याचिका एवं राज्य सरकार की अपील को निपटा दिया। पीठ ने इस मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद 11 सितम्बर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। न्यायालय ने 29 जुलाई को ही प्रशासन से कहा था कि वह दो हफ्ते में बिन्द टोली को हटाये और वहां पर रहने वालों को अन्यत्र पुनर्वासित करे। उसने बिन्द टोली वालों के पक्ष में दिये एकल पीठ के फैसले पर रोक लगा दी थी।

बिन्द टोली में रहने वाले वाशिंदों के हिस्से में पड़ने वाली जमीन को कट्टे के हिसाब से वसूला चंदा। 10 बार सुनवाई होने पर करीब 8 लाख रूपये खर्च कर दिए। इसके बावजूद भी निर्णय पक्ष में नहीं आ सका। इस टोली के वाशिंदा रोहित कुमार ने कहा कि मामले को सर्वोच्च न्यायालय में ले जाएंगे। माननीय पटना उच्च न्यायालय ने पारित आदेश को पारदर्शी नहीं किया गया है। पारदर्शी होने के बाद मामले को प्रेषित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। इधर प्रशासन ने कमर कस लिया है कि 20 से 25 दिसंबर के बीच बिन्द टोली को खाली करा लिया जाएगा। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में भूमि का प्रस्ताव  भेजा गया है। स्वीकृति के बाद लोगों को बसाने की कार्रवाई की जायेगी। 


चश्मा नहीं है तो क्या हुआ
आँख की रोशनी क्षीण होने के बादः आँख की रोशनी क्षीण हो गयी है। महेन्द्र महतो के पास चश्मा नहीं है। तो वह जुगाड़ भिड़ा दिया। दूरबीन वाले लैंश हाथ को बना लिए। हथेली को बंद करके सुराख के माध्यम से अखबार पढ़ने लगे। ऐसा करके महेन्द्र महतो धड़ल्ले से अखबार पढ़ने लगते है। अखबार में बिन्द टोली के बारे में खबर है। खबर पढ़कर दुखित हो जाता है। कहते हैं कि कई दशक से गंगा किनारे रहते आ रहे हैं। गंगा-सोन नदी से कटाव होता रहता है। इसके बाद संजय सिंह और निहोरा राय के द्वारा ईंट बनाने के लिए मिट्टी काट ली जाती थी। इन दोनों से बचे तो अब पूर्व मध्य रेलवे परियोजना की तलवार लटक गयी है। इस बार बचने वाले नहीं है। विकास के नाम पर बिन्द टोली को समाप्त करने की प्रक्रिया जारी है। तिथि पर तिथि दे रहे हैं। बाजाप्ता सही मुकाम पर बसाने का प्रयास नहीं किया जा रहा है। जो जमीन चिन्हित की गयी है। वह मौत का कुआं साबित होगा। एक तरफ गंगा नदी और दूसरी तरफ रोड निर्माण हो रहा है। बीच में हमलोगों को बसाया जा रहा है। डीएम कोई सुरक्षित स्थान पर बसा दें। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अधिकारी कहते हैं कि केवल चिन्हित जमीन ही शेष है। बाकी जमीन पर स्टे लगी है। तब स्टे वाली जमीन पर नहीं बसाया जा सकता है। 

आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना। 









No comments: