सलाहकार के स्वरूप में है पल्ली परिषद
परिषद के पदेन अध्यक्ष मुहर लगाते हैं चर्च के हित
में ‘हाँ’ और नहीं तो ‘ना’

‘वाटिकन-2’नामक दस्तावेज में निहित है लोकधर्मियों का अधिकारः रोम में पोप रहते हैं। पोप द्वारा आहुत बैठक में ‘वाटिकन-2’नामक दस्तावेज तैयार किया गया है। इस दस्तावेज में याजक और लोकधर्मियों के बीच की दूरी कम और लोकधर्मियों पर आश्रित चर्च बनाने पर बल दिया गया। ऐसा प्रतीत होता था कि मिशनरी दाता हैं और लोकधर्मी कुछ पाने के लिए गिड़गिड़ाते हैं। इस मसले को कम करने के लिए लोकधर्मियों को मिलाकर ‘पल्ली परिषद’गठन हो। यह हरेक पल्ली में गठित हो। इसका स्वरूप सलाहकार के रूप में रखा गया। पल्ली पुरोहित को पल्ली परिषद केवल सलाह दे सकता है। इसे मानने और इंकार करने का अधिकार पल्ली परिषद के पदेन अध्यक्ष -सह -पल्ली पुरोहित का होगा। इस समय कुर्जी पल्ली में देखने को मिल रहा है कि पल्ली परिषद के सदस्य निर्णय लेकर निर्णय को कार्यान्वित करने में सफल हो रहे हैं। इसका मतलब ‘चर्च’से संबंधित निर्णय लेने में पल्ली पुरोहित की स्वीकृति ‘हाँ’ में और लोकधर्मियों के हित में निर्णय ‘ना’ में होता है।
धर्मभीरू बनाने से विकास से कोसों दूरः याजक द्वारा ईसाई समुदाय को धर्मभीरू बनाया जाता है। जबकि ईसाई समुदाय को विकास की चाहत है। महज कुछेक लोगों के द्वारा वाहन खरीदने से ही ईसाई समुदाय को धनवान नहीं समझ लेना चाहिए। अपने कार्यरत स्थल से कर्ज लेकर वाहन खरीदते और घर निर्माण करते हैं। अगर सर्वे किया जाएगा तो पता चलेगा कि कर्ज लेकर घर चलाने की नौबत है।
आज भी ईसाई परिवार भूमिहीन हैंः अनेकों परिवार भूमिहीन हैं। इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। ऐसे लोगों को संत विन्सेंट डी पौल समाज के जिम्मे छोड़ दिया जाता है। जो सर्वाग्रीण विकास करने की ओर कदम उठाता ही नहीं है। एक तरह से कह सकते हैं कि ईसाई समुदाय के अंदर भी गरीबों की फौज विराजमान है। यह समझा जाता है कि याजकों का ढाल पल्ली परिषद और संत विन्सेंट डी पौल समाज है।
आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा, दीघा घाट,पटना।
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