Friday 15 July 2016

ड्यूटी से हटाने के बाद से ही 7 साल से मैराथन दौड़ लगाने को बाध्य



आठ सदस्यीय परिवार के समक्ष भूखमरी की नौबत

सीतामढ़ी। सीता मईया की जन्म स्थली है सीतामढ़ी। यहाँ के कोट बाजार,वार्ड नम्बर 11 में रहते हैं दिव्यांग मदन मोहन प्रसाद। इनका पिताश्री का नाम स्व0 रामानदंन प्रसाद है। दूसरे के घरों में चौका-बासन कर पत्नी आठ परिजनों के लिए रोटियों का जुगाड़ कर रही है। चिंता बड़ी हो चुकी बेटी के विवाह की है और साथ में उन तीन छोटे बच्चों के भविष्य की भी, जिनकी पढ़ाई बंद हो चुकी है। छोटे बच्चे बाल मजदूर बनने को बाध्य हैं। मदन मोहन के लिए जिंदगी मुसीबतों का पहाड़ हो गई है। हां, एमएम प्रसाद को दुर्घटना-जनित समस्या और विषम परिस्थितियों ने झकझोर कर रख दिया है। इसके कारण जीने की इच्छा ही खत्म कर दी है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से उन्होंने इच्छा मृत्यु मांगी है। इसके लिए वे राष्ट्रपति को पत्र लिख चुके हैं।

मदन मोहन प्रसाद कहते हैं कि वर्ष 2001 से शहर के ही सीताराम चौक स्थित पलक श्री साड़ी शो रूम में नियमित श्रमिक के रूप में 2001 से 2009 तक कार्यरत रहे। स्व0 विश्वनाथ गजगढ़िया के पुत्र हैं पलक श्री साड़ी शो रूम के मालिक प्रमोद रजगढ़िया। 29 मार्च 2009 को पलक श्री के मालिक प्रमोद रजगढ़िया के आदेश पर तगादा वसूली के लिए ट्रेन से ढेंग जा रहा था। इसी दौरान मोहनी मंडल स्टेशन पर वह ट्रेन से गिर गया। इस हादसे से उसका बायां पांव कट गया। दाहिना पांव का एड़ी कट गया। इसके बाद स्थानीय चिकित्सक डाक्टर अनिल सिंह के यहां एडमिट हुए। इसके बाद चिकित्सक ने मुजफ्फरपुर स्थित एसकेएमसीएच में रेफर कर दिया। इलाज कराने में रजगढ़िया ने कुल खर्च का 80 प्रतिशत भुगतान किया। इलाज के दरम्यान ही प्रमोद रजगढ़िया ने कहा कि काफी खर्च कर दिये हैं। अब हम इलाज नहीं करायेंगे। आप अपना स्वयं जानिये। इस झटके के बाद भी इलाज पूर्ण होने के बाद मालिक रजगढ़िया के पास ड्यटी के लिए गये तो मालिक का कहना था कि अब आप से काम नहीं हो सकेगा। अब आप स्वयं कोई व्यापार कर लीजिए। मालिक ने कहा कि व्यापार करने में आर्थिक मदद करूंगा। यह उनका कोरा आश्वासन साबित हुआ। अभी तक मदद नहीं किये। अन्त में डीएम,सीतामढ़ी के जनता दरबार में आवेदन दिया। 29 मार्च 2009 को प्रतिष्ठान से निकाले जाने व क्षतिपूर्ति राशि नहीं मिलने पर श्रम अधीक्षक को आवेदन दिया जो अभी मुजफ्फरपर के श्रम न्यायालय में विचाराधीन है। श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी की ओर से इस बाबत दिसंबर 2013 को भेजी गई रिपोर्ट में दोनों पक्षों के बीच समझौता वार्ता का उल्लेख है। कामगार की ओर से 2.50 लाख की क्षतिपूर्ति मांगने व नियोजक द्वारा एक लाख रूपये देने की पेशकश का जिक्र है। बावजूद इसके क्षतिपूर्ति राशि नहीं मिली। 

इस जिले के डीएम का कहना है कि व्यवस्था-जनित विवशता है। न्यायालय के आदेश के आलोक में अग्रेतर कार्रवाई की जाएगी। श्रम अधीक्षक का भी तर्क कुछ इसी तरह का है। वे कह रहे हैं कि मदन मोहन प्रसाद की क्षपिपूर्ति का दावा सही है, लेकिन श्रम न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा की लंबी घड़ी है और समस्या खुद के साथ परिजनों के भरण-पोषण का। अब सब्र नहीं रहा। 

आलोक कुमार
मखदुपमुर बगीचा,दीघा घाट,पटना। 


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