पटना: देश की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर एक ओर जहां देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी महिलाओं के सम्मान पर भाषण दे रहे थे, दूसरी ओर गुजरात के चर्चित बिलकिस बानो कांड के बलात्कारी व जनसंहारी गोधरा उप जेल से रिहा किए जा रहे थे, इसने पूरे देश को सकते में डाल दिया. भाजपाइयों ने बाहर निकले बलात्कारियों-अपराधियों के स्वागत में जगह-जगह आयोजन कर उनकी आरती उतारा. तिलक लगाकर उन सबका अभिनंदन किया गया. यह भाजपा व संघ गिरोह की महिलाओं व मुस्लिमों के प्रति चरम घृणा की खुली अभिव्यक्ति थी.
बिलकिस बानो मामला एक ऐसा मामला था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच चली थी. गुजरात में उन्हें जान से मारने की धमकी के कारण उच्चतम न्यायालय ने उनका मामला महाराष्ट्र में स्थानांतरित कर दिया था. बिलकिस बानो गैंगरेप व उनके परिवार के 7 लोगों की हत्या के इस जघन्य मामले में 2008 में मुंबई की एक विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी. जिसे बाॅम्बे हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा.
इस साल दोषियों में से एक ने 1992 की नीति को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट में रिहाई की गुहार लगाई, जबकि 1992 की छूट नीति को 2012 में ही उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया है और तदनुसार गुजरात सरकार ने भी 8 मई 2013 को उसे रद्द कर दिया. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश के आलोक में गुजरात सरकार द्वारा अपराधियों की रिहाई कहीं से भी वैध नहीं कहा जा सकता है. चंूकि यह मामला गुजरात की बजाए महाराष्ट्र में चला था, इसलिए इस मामले में महाराष्ट्र की सरकार का विचार लेना आवश्यक था.
उम्रकैद के सभी 11 दोषियों की रिहाई न केवल केंद्र व गुजरात सरकार पर प्रश्न खड़ा करता है बल्कि उच्चतम न्यायालय को भी सवालों के घेरे में खड़ा करता है.
यह रिहाई जघन्य किस्म का अपराध है, जो आजादी के 75 वें वर्ष में मोदी और भाजपा के तथाकथित नए भारत में खुलेआम किया जा रहा है.
भाजपा द्वारा सत्ता के अहंकारी दुरूपयोग और न्याय की उम्मीदों की हत्या के खिलाफ आज पूरे देश को उठ खड़ा होना होगा. भाकपा-माले विधायक दल बिलकिस बानो के बलात्कारियों व जनसंहारियों की रिहाई के आदेश को अविलंब रद्द करने की मांग करता है.
आलोक कुमार
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