दोयम दर्जे के
भोजन करते
हैं महादलित
मुसहर
केन्द्र और
राज्य सरकारों के द्वारा डायन मंहगाई के ऊपर करारा प्रहार नहीं किया जा रहा है। इसके कारण आम आदमी को जीने मुश्किल हो रहा है। ‘हां, यह जरूर है कि मंहगाई के खिलाफ राष्ट्रव्यापी बंद कॉल किया गया था इसका साथ आम आदमी ने किया था। समर्थन में अवाम आगे बढ़कर साथ दिया। यूपीए 2 सरकार के कार्यकाल में बढ़ती महंगाई के खिलाफ हल्ला बोलकर आमजन ने बंद को असरदार बनाया था। बंद के कॉल 13 दलों के लोगों ने किया था। आज स्थिति विकराल होती चली जा रही है। इस महंगाई की चक्की में आम लोग पीसा रहे हैं। खासकर ऐसे समुदाय जो आकाशवृत्ति पर निर्भर हैं उनका बुरा हाल है। इसके अलावे समाज के किनारे रहने वाले महादलित मुसहर समुदाय का भी हाल खस्ता ही है। ऐसे लोग महंगाई की मार से पूर्णतः आहत हो गये हैं। राजनीतिज्ञों की तकदीर और तस्वीर बनाने वाले महादलित मुसहर समुदाय के दैनिक भोजन में अब चूहा, सितुआ, घोंघा और केकरा धड़ल्ले प्रवेश कर गया है। दोयम दर्जे के भोजन करने वाले महादलितों का मानना है कि इस तरह का भोजन करने से वास्तविक उर्जा और विटामिन मिल जाता है जो शरीर के
लिए फायदेमंद होता है।
राजधानी में स्थित नेहरू नगर मुसहरी, एल0सी0टी0 घाट, गौशाई टोला, दीघा मुसहरी,रामजीचक नहर,बाटागंज, नाच बगीचा, नासरीगंज, चुल्हाई चक, कौथवा,जमसौता,नरगदा आदि मुसहरी का दौरा किया गया। मंहगाई की मार से सर्वाधिक पीड़ित मुसहर जाति के लोग हो रहे हैं। कारण कि इनका सामाजिक एवं आर्थिंक स्तर आजादी के 65 साल के बाद भी एकदम निम्न ही है। अल्प मजदूरी भोगी होने के नाते उनका दैनिक आहार में सुधार नहीं हो सका है। सुबह और शाम किसी तरह से भात और रोटी मिल पाता है।
बताते चले कि मुसहर समुदाय के लोग पवित्र गंगा नदी के किनारे सितुआ संग्रह करते हैं। कड़ी मेहनत करने के बाद दो से तीन किलोग्राम सितुआ संग्रह कर पाते हैं। मुसहर समुदाय सितुआ पकाकर खाते भी हैं। इसे रोटी अथवा भात के साथ खाते हैं। अधिक सितुआ होने पर 50 रूपए किलोग्राम की दर से बिक्री कर देते हैं। यह धंधा अप्रैल से जून तक चलता है। इसके बाद अक्तूबर से नवम्बर तक घोंघा और केकरा पकड़ने का कार्य करते हैं। इसका सब्जी बनता है। अधिक होने पर 50 रूपए किलोग्राम की दर से बेच देते हैं। दिसंबर से जनवरी तक खेत से चूहा पकड़कर लाते हैं। चूहों को विभिन्न तरह से पकाकर खाते हैं। चूहों को आग में रोस्ट करने के बाद सिलवट पर पिसकर चोंखा बनाया जाता है। लहसून, मिर्च, नमक और सरसों का तेल डालकर सूखा भात को चोंखा के साथ
खाया जा सकता है। प्रगति ग्रामीण विकास समिति के सामने तीन बच्चे कुदाल घर से लाये थे और खेत की मिट्टी खोंदने लगे। एक चूहा मिलने के बाद उनका उत्साव बढ़ा और अधिक खोंदने के बाद दो और चूहा मिल गया। इस तरह तीन चूहा पकड़ लिये। उन लोगों का कहना था कि घरेलू और खेत वाले चूहों को 90 रूपए किलोग्राम की दर से बेची जाती है। इसका ग्राहक और मांग अधिक है। इसके अलावे सालों भर मुर्गिंयों के पंख और पैरों को घर लाकर अच्छी तरह से साफ करके खाने योग्य बना दिया जाता है। तब तो शराब दूकानों के किनारे बेचा भी जाता है।
सामाजिक कार्यकर्ता अजय मांझी का कहना है कि आरंभ में सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महादलित आयोग बनाकर समाज के किनारे रहने वालों का सामाजिक-आर्थिक उन्नति करने की दिशा में पहल करना शुभ चिन्ह प्रतीत हो रहा था। जब दुसाद
जाति को छोड़कर शेष 21 जातियों को महादलित आयोग में शामिल कर लिया गया तो महादलित आयोग से राजनीति बू आने लगी।
श्री मांझी ने सरकार से सवाल किया कि अगर आप सचमुच महादलितों का विकास कराना चाहती है तो अव्वल मुसहर और डोम जाति के समुदाय को अनुसूचित जाति के श्रेणी से निकाल कर मुसहर और डोम जाति के समुदाय को अनुसूचित जन जाति के श्रेणी में लाकर विकास का मार्ग प्रदस्त करें।
उन्होंने कहा कि सरकार अपना वादा निभाएं तमाम महादलितों को 10 डिसमिल जमीन देने की प्रक्रिया को युद्धस्तर पर चलाये। उनको 20 हजार रूपए का लॉलीपॉप देना बंद करे। किसी भी कीमत पर महादलितों को 10 डिसमिल जमीन ही खरीदकर दी जाए। आजादी के बाद कई प्रकार की योजनाओं के द्वारा महादलितों का अर्द्ध निर्मिंत और पूर्ण निर्मिंत मकान निर्माण कराया गया था।
इस समय जर्जर हो गया है। उन सभी मकानों को 1947 से लेकर 2012 तक का
पूर्ण निर्माण कराया जाए। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को सख्ती से लागू कराया जाए।
दलितों को
भूमि देने
में धन
बाधा नहीं- मंत्री
जन संगठन
एकता परिषद के संस्थापक पी0व्ही0राजगोपाल जी के नेतृत्व में जन सत्याग्रह 2012 सत्याग्रह पदयात्रा निकाली गयी थी। 2 अक्तूबर 2012 से शुरू पदयात्रा 11 अक्तूबर को आगरा में जाकर समाप्त हो गयी। केन्द्र सरकार के केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और जन सत्याग्रह के महानायक पी0व्ही0राजगोपाल के साथ आश्वासन पर समझौता पर हस्ताक्षर किये गये। इसमें आवासहीनों को 10 डिसमिल जमीन देने की बात कहीं गयी है।
इधर,बिहार सरकार के एससी एवं एसटी और बीसी एवं ईबीसी कल्याण मंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि दलित परिवारों को सरकार तीन डिसमिल जमीन मुहैया कराएगी। जमीन की कीमत नहीं देखी जाएगी,जहां जमीन मिलेगी वहां उपलब्ध करायी जाएगी। इसके लिए कार्रवाई शुरू कर दी गई है। उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर भूमिहीन दलितों की संख्या अधिक होगी,वहां अलग जमीन देकर नया टोला बसाया जाएगा। इन टोलों को सड़क,पेयजल समेत तमाम सुविधाओं से जोड़ा जाएगा।
अब देखना है कि सरकार के मंत्री जी बोलकर पल्ला झार देंगे कि वास्तव में धरती पर उतारकर अंजाम देंगे। दीघा में एक उड़ान टोला है। गांव से महादलित मुसहर समुदाय आकर बाजितपुर दीघा में बस गये। यहां से उजड़ने के बाद पटना-दीघा रेलवे लाइन के चाट में आकर बस गये हैं। एक बार फिर से यहां से उजड़ जाएगें जब रेलवे लाइन को उखाड़कर 4 लाइन रोड बना दी जाएगी। इस तरह यहां वहां उजड़ने वाले महादलित मुसहर समुदाय के लोगों को सरकार स्थापित करने का कष्ट करें। वैशाखी मांझी का कहना है कि इस संदर्भ में पटना प्रमंडल के आयुक्त को आवेदन दिया गया है परन्तु कार्रवाई नगणय है।
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