Saturday 16 February 2013

बटाईदारों की हित में बने कानून



                                                बटाईदारों की हित में बने कानून
     भूमि सुधार आयोग की अनुशंषाओं को लागू करने से ही हो सकेगा हल
बिहार में भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष डी0बंधोपाध्याय ने काफी परिश्रम करके भूमि सुधार संबंधी रिपोर्ट तैयार कर श्री बंधोपाध्याय ने कई किस्त में मुख्यमंत्री नीतीश सरकार को अनुशंषा पेश किये। प्रेषित अनुशंषा में आवासीय भूमिहीनों को 10 डिसमिल जमीन देने की अनुशंषा किये। चरणबद्ध ढंग से कार्य करके बिहार भूदान यज्ञ कमेटी को भंग करने की सिफारिश किये। स्पष्टतौर से बटाईदारों को पहचान देने की बात रखे थे। मगर सुशासन सरकार के सामने भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष श्री बंधोपाध्याय की एक चली। तमाम तरह की प्रेषित अनुशंषाएं धरे के धरे रह गये। सरकार के मुखिया ने अनुशंषाओं के सीडी बनाकर माननीयों के हाथों में थमा दिये और विधान मंडल में चर्चा करवाने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। फलतः बिहार में भूमि सुधार अधर में लटककर रह गया।
  आज भी बिहार में बड़े जोत वाले जमीन मालिक हैं। बथनाहा गांव खाखो झा और उसके भाई नीरज झा के पास 80 बीघा जमीन है। बड़े जोत वाले जमीन मालिक से छोटे जोत वाले  महिला-पुरूष किसान बन गये हैं। ऐसे लोग बिना भूमि वाले किसान, भूमिहीन, छोटे किसान और सीमांत किसान बनकर रह गये हैं। आजकल बडे़ जोत के किसान स्वयं खेती करके खेत को कुछ खेतिहर भूमिहीनों को नकदी राशि लेकर खेत को पट्टा पर दे देते हैं। इसको पट्टाधारी बटाईदार कहा जाता है। ऐसे लोग हैं जो फसल को आधी-आधी करके आपस में बांटते हैं। यह भी एक किश्म की बटाईदारी ही है। मन्नी के अनुसार एकमुस्त गल्ला को किसान को दिया जाता है। इसे हुंडा पर बटाईदारी कहा जाता है।
    बिहार में आरंभ में कृषक मजदूर कहलाते थे। आज भूमिहीन बटाईदार किसान हो गये है। जो पहले लघु और सीमांत किसान की श्रेणी में थे। ऐसे लोग भी आज बटाईदार किसान बन बैठे हैं। आज बिहार में लगभग 70 प्रतिशत बटाईदार किसान हैं। इस प्रकार नाम में बदलाव होने से बटाईदारों की संख्या बढ़ती ही चली जा रही है। तो राज्य की खाद्यान्न सुरक्षा की जिम्मेवारी बटाईदारों के कंधों पर निर्भर है। फिर भी सरकार के द्वारा बटाईदारों की हित की बात नहीं की जाती है। इन लोगों के लिए कोई ठोस और प्रभावशाली कदम नहीं उठाया जाता है ताकि उनको किसी तरह के कानूनी अधिकार मिल सके है। वर्तमान समय में जितनी भी सरकारी योजनाएं संचालित है, वह पट्टाधारी किसानों को ही लाभ पहुंचाने वाला है। योजनाओं से लाभान्वित होने का मार्ग बटाईदारों के द्वार तक पहुंच ही नहीं पाती है। तमाम लाभ जमीन मालिक ही उठा ले रहे हैं। बटाईदार तो अपनी किस्मत महाजनों की पूंजी से सवारते और बिगाड़ते हैं। खेती एक जुआ है उसे ही बटाईदार खेलते हैं और महाजनों के कर्जदार बने रहते है। फलतः गरीब बटाईदारों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
  सहरसा जिले के सौर बाजार प्रखंड में कांप पश्चिमी ग्राम पंचायत है। इस पंचायत के मुखिया धीरेन यादव हैं। मुखिया जी की निगाह कांप टोला दाहु भरना पर नहीं पड़ता है। यहां पर करीब 300 सौ घर है। रैयती जमीन होने से कुछ ही लोगों का मकान इन्दिरा आवास योजना से बन सका है। बाकी फूस की झोपड़ी में रहने को बाध्य हैं। करीब 3 हजार की जनसंख्या है। बढ़ई,यादव आदि जाति की बहुलता है। तब भी केवल गणेश शर्मा के पुत्र पिंटू शर्मा ही मैट्रिक पास हो सका है। अभी मधेपुरा जिले के किसी कॉलेज में बी00पार्ट 2 में अध्ययनरत हैं। इससे यहां की साक्षरता दर का अंदाजा लगाया जा सकता है। सच माने तो कांप टोला दाहू भरना बटाईदारों का ही मोहल्ला है। यहां के अधिकांश लोग बटाईदार हैं जो खेत मालिकों से जमीन बटाई पर लेकर खेती करते हैं।
  यहां पर बिन्देश्वरी शर्मा रहते हैं। जो एक बटाईदार किसान हैं। श्री शर्मा के 6 संतान है। उनमें सबसे छोटा दौलत कुमार हैं। जो पटना में रहकर मैट्रिक परीक्षा की तैयारी कर रहा है। अगला साल 2014 में परीक्षा देंगे। उनका कहना है कि उनके पिताश्री ने जमीन मालिक किसान स्व0 सिक्रेटरी यादव के पुत्र रामभजन यादव से प्रति बीघा 10 मन फसल पर 20 बीघा खेत लिये हैं। धान, गेहूं और मक्का को तैयार करके दिया जाता है।
  आगे दौलत कुमार ने कहा कि पोटाश 50 किलो 900,यूरिया 50 किलो 350, अल्मुनियम 20 किलो 360, बीज 15 किलो, पानी एक घंटा चलाने 40 रू0 देना पड़ता मशीन , टेक्टर के द्वारा जुताई 550 बीघा, 250 सौ मजदूरी कुदाल चलाता है। महिलाओं को 100 और खाना धान रोपने सोहनी निकोनी करने के लिए दिया जाता है। खेत और मजदूरों को मजदूरी देने के लिए महाजनों के सामने हाथ पसारना पड़ता है। आजकल महाजन 6 रूपये सैकड़ा की दर पर व्याज पर ऋण देते हैं। आजकल एक क्विंटल  की गेहूं कीमत 1000 रू0है।
   ऑक्सफैम इंडिया के सहयोग से प्रगति ग्रामीण विकास समिति के द्वारा संचालित परियोजना के परियोजना प्रबंधक विजय वर्मा ने कहा कि हम लोग पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, मुजफ्फरपुर, जमुई, सहरसा, मधेपुरा, अरवल, भोजपुर, बक्सर और पटना में छोटे जोत के किसान, बटाईदार, महिला किसान आदि को लेकर कार्य कर रहे हैं। यह बहुत ही दर्दनाक कानून है कि केवल पर्चाधारी किसानों को भी फसलों की बर्बादी पर आंसू बहाने वाले किसानों को मुआवजा दिया जाता है। जो बटाईदार किसान श्रम और पूंजी लगाता है उसे सरकार के द्वारा मुआवजा के नाम पर ठेंगा दिखा जाता है। उन्होंने भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष डी0 बंधोपाध्याय के द्वारा सिफारिश को लागू करने का आग्रह सरकार से किया है।

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