कोई मां रूठे नहीं कोई बच्चा छूटे नहीं
इसे महिला सशक्तीकरण ही कहा जा सकता हैं। घर से निकलने के लिए सुबह 4 बजे से तैयारी करना और रात्रि 10 बजे तक सड़क पर ही बिताना। तब तो सड़क के डॉन भी कह सकते हैं। विकलांग होने के बावजूद भी साधारण लोगों की तरह कार्य करते रहना। यह असाधारण बात है। कई वर्षों से 0 से 5 साल के बच्चों को पोलियों की खुराक दी जाती है। इस मुहिम में स्वयं को जोड़कर कहती हैं कि कोई मां रूठे नहीं कोई बच्चा छूटे नहीं। अपने बच्चों को जरूर ही पोलियों की खुराक जरूर दिला दें।इस तरह के कारनामा करने वालों को प्रणाम! है। जो समाज में मिसाल पेश करते हैं।

सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि जमा करके संजू कुमारी का ऑपरेशन किया गया। जो असफल रहा। उसके बाद चिकित्सक ने जूता पहनाया। जूता पहनकर चल नहीं सकी। वैशाखी के सहारे नहीं चली है। इस समय संजू कुमारी चाहती है कि जो त्रिपहिया गाड़ी ऑल्ड हो गयी है उसे बदल कर नयी गाड़ी दी जाए। हां, किसी मिश्नरी के द्वारा विकलांग संजू कुमारी को त्रिपहिया गाड़ी दी गयी। इस तरह कल्याणकारी राज्य की सुशासन सरकार और उनके नौकरशाह मात खा गये। गण के पास रहने वाले गण प्रतिनिधि भी वाहवाही नहीं लूट सकें। इसी त्रिपहिया गाड़ी के बल पर संजू कुमारी ने दस विकलांगों की दूर में मात देकर प्रथम स्थान ग्रहण की थीं। इस समय पोलियों की विकरालता से विकलांगता के शिकार बन गयी संजू कुमारी अपनी गरीबता को दूर करने में लगी हैं।

दोनों पैर से विकलांग संजू कुमारी कहती हैं कि गरीबी के कारण किसी तरह से आठवीं कक्षा तक पढ़ सकीं। राजीव नगर के पास सरकारी विघालय में पढ़ने जाती थीं। इसके साथ गांव की अन्य लड़कियां भी जाती थीं। इन लड़कियों की शारीरिक बनावट में परिवर्तन होने से सरकारी विघालय की महिला शिक्षिकाओं में संदेह होने लगा। लड़कियों पर निगाह रखने लगी। एक दिन संजू कुमारी की किताब-कोपी को एक शिक्षिका ने जब्त कर ली। इससे आक्रोशित होकर विघालय ही जाना छोड़ दीं। इस बीच संजू कुमारी के पिताश्री दिलकेश्वर बिन्द की साधारण बीमारी की चपेट में आ जाने के कारण मौत के मुंह में समा गये। उनके मौत से बुढ़ी मां चमेली देवी के ऊपर परिवार की गाड़ी चलाने का दायित्व आ गया। उसकी मां को भी लक्ष्मी बाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिल रही है। परन्तु 6 साल की उम्र से ही पोलियों की चपेट में पड़ गयी संजू कुमारी को निशक्ता सामाजिक सुरक्षा पेंशन नहीं मिल पा रही है।
आगे संजू कहती हैं कि करीब 6 बार पेंशन पाने के लिए आवेदन दिया है। पेंशन दिलवाने के नाम पर दलाल सक्रिय हो जाते हैं। आश्वासन की घुंट्टी पिलाकर रूपया ऐंठ कर चल जाते हैं। एक बार मोटी राशि 6 सौ रूपये एकमुश्त डकार लिये। मगर राशि नहीं दिला सका। बड़े भाई राजकुमार और दीदी रेणु देवी की शादी हो गयी है। संजू कुमारी की जिम्मेवारी बढ़ गयी। अपने अनुज विमल कुमार को स्कूल भेजती हैं। अभी वह 10 वीं कक्षा में अध्ययनरत हैं। मार्च में मैट्रिक की परीक्षा देने वाले हैं।
किसी के लिए विकलांगता बाधक बन सकती है। हां,अगर दिल में तमन्ना हो और दृढ़ता हो तो मानसिक विकार के दायरे से आसानी से बाहर निकला जा सकता है। ऐसा करने से आम आदमी की तरह जीवन व्यत्तित किया जा सकता है। हर कार्य को बेहतर ढंग से निष्पादन कर सकते हैं। संसार में आया है तो सांसारिक जीवन को आनंदपूर्वक बिताया जा सकता है। इसी लिंक पर पटना सदर प्रखंड में रहने वाली विकलांग संजू कुमारी चल रही हैं। संजू के सामने विकलांगता मायने नहीं रखना है। वह तो अपने त्रिपहिया गाड़ी के पीछे और आगे 50-50 किलोग्राम को बोरा रख कर खुद बीच में बैठकर गाड़ी हांकते घर आती हैं। वह कहती हैं कि ‘अगर इंसान कुछ भी करना चाहे तो वह आसानी के साथ अंजाम दे सकता है। हां, प्रत्येक दिन वह सुबह 4 बजे ही उठ जाती हैं। नित्य क्रियाकर्म करने के साथ हाथ-मुंह धोकर निकल पड़ती है।

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