Thursday, 14 February 2013

दीघा मुसहरी के चार सौ महादलित मुसहर

            दीघा मुसहरी के चार सौ महादलित मुसहर
                                    फटेहाली जिंदगी जीने को बाध्य
  केन्द्र और राज्य सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान करवाने हेतु कृतसंकल्प हैं। इनके कल्याण और विकास के लिए कई तरह की योजनाएं चला रखी है। फिलवक्त उक्त योजनाओं से दीघा मुसहरी के महादलित लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। नतीजन महादलित मुसहर समुदाय का विकास अवरूद्ध हो गया है। पटना-दीघा रेलवे खंड के बगल में 60 घरों में चार सौ महादलित मुसहर फटेहाल जिंदगी जीने को बाध्य हैं।
   इस क्षेत्र में जोरदार ढंग से क्रियाशील गैर सरकारी संस्था चिंगारी ग्रामीण विकास केन्द्र के प्रवक्ता रवि रोशन ने कहा कि बीस साल पहले सरकार के द्वारा दीघा मुसहरी में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम एनआरइपी के तहत खप्परैल आवास बनाया गया था। जो रखरखाव के चलते काफी जर्जर हो चला है। कई घर गिर पड़ा है। कई गिरने पर उतारू हैं। घर की मरम्मती करवाने में अक्षम होने के कारण महादलित घर को बेच भी दे रहे हैं। इसके अलावे किसी बीमारी अथवा कर्ज में पड़ जाने पर भी आशियाना को बेचने को बाध्य हैं।
   जब पटना जिले की जिलाधिकारी राजबाला वर्मा थीं तब उन्होंने अरबन एरिया की महिलाओं को संगठित की थी। उनको विकास कार्य में जोड़ने की योजना बनायी थी। इसके तहत दीघा मुसहरी में सामुदायिक भवन निर्माण करायी थीं। इसके पहले सूअरबाड़ा में चलने वाले स्कूल को स्कूल भवन नसीब हो सका था। स्कूल भवन निर्माण कार्य में पूर्व शिक्षिका ट्रीजा जोसेफ और माग्देल बेनेडिक्ट का उल्लेखनीय योगदान रहा। वहीं कुर्जी अस्पताल के विजय शर्मा के प्रयास से कई चापाकल लगाया गया। सरकार ने महादलितों को खुद्दार बनाने के उद्देश्य से समेकित ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम आईआरडीपी से रोजगार करने हेतु अनुदान सह ऋण उपलब्ध कराया गया। इनता करने के बाद भी महादलितों की जिंदगी में सुधार नहीं सकी। उल्टे दलालों के दलदल में फंसकर रह गये। इसके कारण सामाजिक एवं आर्थिक विकास की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाये।
  आरंभ में दीघा क्षेत्र में महादलित मुसहर किसानों के खेत में मजदूरी किया करते थे। किसानों के खेत को बिहार आवास बोर्ड के द्वारा भूमि अधिग्रहण करने से खेत में काम बंद हो गया। अब महादलित वैकल्पिक रोजगार में कम मेहनत और पूंजी के बल पर अधिक लाभ कमाने के चक्कर में लग गये हैं। अब अनैतिक धंधा करना शुरू कर दिया गया है। घर-घर में खुलेआम महुआं दारू की फैक्ट्री संचालित हो गयी है। यहां पर मंहुआ दारू धड़ल्ले से बेचा जा रहा है खुद ही निर्माण करते और खुद ही पीते भी हैं। इसके कारण बीमारी की चपेट में पड़कर मौत को आंलिगन करने को मजबूर हो जा रहे हैं।
   इस समय पटना-दीघा रेलखंड के अंतिम पड़ाव दीघा हाल्ट ही है। जो दीघा मुसहरी में स्थित है। दीघा मुसहरी दीघा थाना के कार्य क्षेत्र में है। पटना-दीघा रेलखंड होने के चलते रेलवे थाना का भी कार्य क्षेत्र दीघा हाल्ट भी है। इसी तरह अवैध शराब का धंधा होने के कारण आबकारी थाना की पुलिस की का चारागाह दीघा मुसहरी ही हैं इस तरह तीन थाना के नाक के नीचे दिनरात दारू का धंधा जारी है। मोटी रकम डकारकर तीनों थाना की पुलिस कोमा में चले जाते हैं। पुलिस की किंकर्त्तव्यबिमूढ़ता के एक बोतल शराब को तीन थाना की पुलिस बेखौफ धंधा को रोकने में नाकामयाब है। हाल & दास्तान पटना नगर निगम क्षेत्र के वार्ड नम्बर एक का है। कारण धंधाबाजों की चांदी है। वहीं शराब के शौकिन परलोक सिधारने को बाध्य हैं।
 कच्चा महुआं को खरीदकर लाया जाता है। महुआं और मिठ्ठा को मिलाकर एक बड़े पात्र में डाला जाता है। उसमें पानी डालकर सड़ाया जाता हैं एक सप्ताह के बाद सड़ाया हुआ मंहुआ को निकाला जाता है। उसे अल्यूमुनियम के पात्र में रखकर आग पर चढ़ाया जाता है। इसके बाद सायफन पद्धति से दारू बूंद बूंद कर बोतल में गिरने लगता है। इसको ठंडा होने पर बेचा जाता है। अब तो नशा लाने के लिए मिलावट भी की जाती है।
   इस क्षेत्र के मुसहर लोग जमकर शराब का लुफ्त लेते हैं। हरदम दारू पीते रहते हैं। सुबह उठने के बाद शराब पीते हैं। इसको पीकर जानलेवा यक्ष्मा बीमारी की चपेट में चले जाते हैं। इसी का परिणाम सामने है कि एक बोतल से दो पीढ़ी बर्बाद हो गयी है। जवानी में इनके पति परलोक सिधार गये हैं। महजनी देवी ने कहा कि मेरी माता भी विधवा हो गयी और मैं भी विधवा हो गयी हूं मां को लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिलना शुरू हो गया है। हम लोग शराब का धंधा बंद करना चाहते हैं जब सरकार वैकल्पिक व्यवस्था कर दें।
  एकता परिषद के कार्यकर्ता अजय मांझी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को साधुवाद दिया है कि उनके दिलों में महादलितों के प्रति दर्द है। इसी लिए उन्होंने महादलित आयोग गठित किये। बाद में आयोग से राजनीति लाभ भी उठाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आरंभ में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा  आवासीय भूमिहीनों को चार डिसमिल जमीन देने की बात किया करते थे। अब सरकार के द्वारा उसमें एक डिसमिल की कटौती करके तीन डिसमिल जमीन देने की बात होने लगी है। अब समय गया है कि  मुख्यमंत्री के द्वारा अनेकों बार जमीन देने की घोषणा कर चुकने के बाद उसे धरती पर उतार कर महादलितों का कल्याण किया जाए। अगर ऐसा करते हैं तो एक ऐतिहासिक कृत्य होगा।  अगर यह संभव होगा तो आवासीय भूमिहीनों को रहने लायक जमीन हो जाएगी। और बिहार में आवासीय भूमिहीनों की संख्या कम हो जाएगी। अब समय गया है कि मुख्यमंत्री के द्वारा अनेकों बार जमीन देने की घोषणा कर चुकने के बाद उसे धरती पर उतार कर महादलितों का कल्याण किया जाए। अगर ऐसा करते हैं तो एक ऐतिहासिक कृत्य होगा।  अगर यह संभव होगा तो आवासीय भूमिहीनों को रहने लायक जमीन हो जाएगी। और बिहार में आवासीय भूमिहीनों की संखा कम हो जाएगी। और महादलितों का कल्याण हो सकेगा।





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