Sunday 10 February 2013

दीघा बिन्टटोली में कोई ऐसा वंदा नहीं जो महाजनों से कर्ज न लिया हो

दीघा बिन्टटोली में कोई ऐसा वंदा नहीं जो महाजनों से कर्ज लिया हो

4 पुश्त से फटेहाली जिंदगी जीने को बाध्य 3 हजार लोग

 केन्द्र और राज्य सरकार को वोट देकर बनाने और बिगाड़ने में दीघा बिन्दटोली के गरीब लोगों का सहयोग को नकारा नहीं जा सकता है। यहां के नेताओं के कहने पर एकतरफा वोट गिर जाता है। मगर लोग वोट बैंक ही बनकर रह गये हैं। वहीं गैर सरकारी संस्था है। जो अपनी परियोजनाओं की मांग को पूर्ण करवाने के लिए बिन्दटोली आते हैं। अभी कुर्जी होली फैमिली हॉस्पीटल के लोग पैर जमाये हुए हैं। इन दोनों के द्वारा बिन्दटोली के लोगों के बीच में कल्याण और विकास का कार्य करने का दावा करते हैं। बावजूद इसके इन लोगों के लाचारी रफ्फू चक्कर होने का नाम ही नहीं ले रहा है। कोई ऐसा वंदा नहीं जो महाजनों से व्याज पर कर्ज लिया नहीं हो।
  पटना सदर प्रखंड में नकटा दियारा पंचायत है। इसी पंचायत के अंदर गंगा किनारे में मोरा गांव है। इस गांव का नाम दीघा बिन्द टोली है। 4 पुश्त से फटेहाली जिंदगी जीने को बाध्य 3 हजार लोग हैं। करीब 500 झोपड़ी में रहते है। किसी अप्रिय घटना हो इसके लिए इस झोपड़पट्टी में दोपहर समय में चूल्हा जलता ही नहीं है। सुबह-शाम ही चूल्हा जलता है। भारतीय नागरिकों की ही तरह यहां के गरीब लोग कर्ज में जन्म लेते हैं। जवान होते और आखिर में कर्ज में की मर जाते हैं। इसी लिये सभी लोगों को गरीबी रेखा के नीचे रखकर पंजीकृत कर लिया गया हैं।
  शहर से दूर गंगा किनारे रहने वाले प्राकृतिक और कृत्रिम कारणों से विस्थापन का दंश झेलने को बाध्य हैं। इसके कारण यहां के गरीब लोग सदैव भयभीत रहते हैं। बिन्दटोली गांव को गंगा नदी में जलसमाधि कराने के उद्देश्य से ईट भट्टा के मालिकों ने गांव के सटे ही ईंट बनाने के लिए मिट्टी की खुदाई किया करते थे। ताकि गंगा नदी के बहाव के समय में कटाव हो जाए। इसके आलोक में रामधीरज महतो नामक समाजसेवी ने प्रधानमंत्री के पास पत्र भी लिखे। इसका परिणाम निकला कि दीद्या क्षेत्र में निर्माण ईट भट्टा को बंद कर दिया गया। इसके पहले ईट भट्टा संचालित करने वाले पटना जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष संजय सिंह और निहोरा राय ने काफी नुकसान पहंुचा दिया था। इनके  घटिया कारनामे के कारण ही भूतकाल में ईंट भट्टों के लिए मिट्टी का कटाव किया जाता था। इसके कारण कई परिवार विस्थापित हो गये। बिन्टटोली के बगल में ही मिट्टी कटाव करने से वर्तमान काल में सोन-गंगा नदी से कटाव होने से कई परिवार विस्थापित हो चुके हैं। अब भविष्य में इसके बगल में पूर्व मध्य रेलवे के द्वारा गंगा नदी पर गंगा रेल-सह-सड़क मार्ग सेतु निर्माण करवाया जा रहा है। इस गंगा सेतु निर्माण होने रेलवे अधिकारियों ने रेलवे की जमीन से हट जाने को कहने लगे हैं। मगर विस्थापन होने वालों को किसी जगहों में में पुनर्वास करने की बात नहीं कर रहे हैं। मात्र हवाबाजी की जा रही है। बगल के गड्ढा में मिट्टी भर के लोगों को पुनर्वासित कर दिया जाएगा।
   बहरहाल विस्थापन के दंश झेलने वालों पर तलवार लटक रही है। इस बीच खौफजदा रविन्द्र महतो की पत्नी उर्मिला देवी धूप में बैठकर चटाई बना रही हैं। दिल में गम और चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए कहती हैं कि उनके 6 लड़के और 2 लड़किया हैं। आठ बच्चों में से हाल में 1 पुत्र की मौत हो गयी  है। वह मैट्रीक उर्त्तीण था। परिवार के खेवनहार बनने के पहले परलोक सिधार जाने से उत्पन्न सदमे से परिवार के लोग भी गम से उभरे नहीं हैं। आगे वह कहती हैं कि बिन्दटोली गांव के लोग तकलीफों से जूझते रहते हैं। दो जून की रोटी का जुगाड़ करने में परेशान रहते हैं। कभी गंगा नदी में जिस स्थान पर पानी बहता था आज वहां पर फसल ऊंपजाई जाती है।

अगर आप कुर्जी दियारा को बेहतर ढंग से साफ कर बलूई मिट्टी को सोना ऊंगले वाले खेत बना देते हैं तो दीघा बिन्दटोली के लोग उक्त खेत को लेने के लिए जी जान लगा देते हैं। चालू कीमत से अधिक कीमत देने पर उतारू हो जाते हैं। इसका नतीजा साल दर साल खेत की कीमत बढ़ती चली जाती है। कहा जाता है कि गंगा नदी के गर्भ से निकले कुर्जी दियारा क्षेत्र में पानी रहते समय सरकार की जमीन होती है जैसे ही पानी खत्म हो जाता है वह किसी व्यक्ति की जमीन हो जाती है। उसी जमीन को बिन्दटोली के लोग पट्टा पर लेते हैं। 12 सौ रूपये में 3 बीघा जमीन मिलती थी। जो प्रत्येक साल बढ़कर 12 हजार में 3 बीघा जमीन मिल रही है। अगले साल 14 हजार में 3 बीघा जमीन देने का ऐलान कर दिया गया है। इस समय 4 हजार रूपये में 3 बीघा जमीन मिलती थी। मांग के अनुरूप जमीन नहीं होने पर कीमत में इजाफा करके कहीं 5 हजार में तो कहीं 8 हजार रूपये लेकर 3 बीघा जमीन दी जा रही है।
यह सब महाजनों से कर्ज लेकर पट्टा की राशि दी जाती है। यहां पर कमल राय हैं। उनसे ही बिन्दटोली के लोग कर्ज लेते हैं। कोई दीघा आढ़त चलाने वालों से भी कर्ज लेते हैं। इस समय 10 रूपये सैकड़ा पर कर्ज दिया जाता है। यहीं की लालमुन्नी देवी कहती हैं कि जमीन की कीमत के  अलावे खेत में फसल पैदा करने में आने वाले खर्च भी महाजनों से ही लिया जाता है। ऐसा करने से कोई ऐसा वंदा नहीं होगा जिसपर 40 से 50 हजार रूपये का कर्ज नहीं होगा।
  पट्टा पर जमीन लेने के बाद बाल-बच्चों के साथ खेत में कार्य किया जाता है। अगर घर के लोग काम नहीं कर पाते हैं तो मजदूर रखना पड़ता है। महिलाओं को 100 रूपये और पुरूषों को 250 रूपये दिया जाता है। खेत में सब्जी पैदा किया जाता है। मौसम की मार से बर्बादी भी सहना पड़ता है। इससे हम लोगों को काफी नुकसान होता है। महाजनों से लिया गया कर्ज उतारने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। पट्टा नहीं रहने के कारण सरकारी लाभ से वंचित हो जाते हैं। किसी को किसी तरह का कागजात नहीं है। कागजात तो जमीन मालिकों के पास है। उसका फायदा उठा लेता है।


 



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