Sunday 24 March 2013

आखिर प्रेम विवाह सबसे बड़ा अपराध क्यों?

आखिर प्रेम विवाह सबसे बड़ा अपराध क्यों?


भारतीय पारम्परिक विवाह 'अरेंज मैरिज'को पश्चिम के एक समाजशास्त्री ने
'
सामाजिक वेश्यावृति' तक बताया है।समाजशास्त्र के अध्ययन के दौरान
तब।अजीब लगी थी ये परिभाषा,अनायास असहमत होने को जी चाहा किन्तु ईमानदारी
से पड़ताल की आवश्यकता की अनुभूति भी जगी।'ये अपना भारतीय समाज' ,इसकी
संस्थाएँ ,परम्पराएँ क्या स्त्री के अनुकूल हैं ?गर है ,तो इनमे इतनी
घुटन क्यों ?,ये असमानता ,गैरबराबरी  ,अपमान ,लांछन की पीड़ा क्यों दीखती
है हमारी बालाओं की सुंदर आँखों में ?,विवाह तो नवजीवन के आरम्भ का बेहद
महत्वपूर्ण उत्सव होता है।दरअसल भारतीय विवाह संस्था बहुत हद तक
स्त्रियों के शोषण करने का एक तन्त्र बनी रही अबतक।अगर निष्पक्षता से
इसके तरीकों परम्पराओं ,नियमों ,शर्तों की पड़ताल की जाए तब हमारे
तथाकथित ऊँचे मूल्यों की कलई जरुर  उतर जायेगी।पूर्व में शिक्षा का
प्रसार स्त्रिओं तक नगण्य था अधिकारों की समझ भी नही थी उस स्थिति में
अपनी खुशियों से समझौता करना उनकी नियति थी।आज लड़कियाँ बहुत आगे निकल
चुकीं हैं स्वतंत्रता,समानता ,सम्मान पाने का भाव उनमे जगा है।अब लडकों
के बराबर वे शिक्षित भी हैं ,समझदार भी हैं ,और पैसे भी कमा रही हैं तो
क्यों पुराने रिवाजों की गैर बराबरी को ढोती रहें वे ?आज भी मध्य वर्गीय
परिवार में प्रेम विवाह किसी बड़े गुनाह से कम नहीं समझा जाता।हाँ
परम्परा के नाम पर बेमेल विवाह ,बाल विवाह पर कोई आपत्ति नहीं है हमारे
समाज को! ब्याह कर दुसरे घर से लायी गयी किसी बाप की बेटी दहेज की खातिर
बलि चढ़ा दी जाती है।शादी से पहले लड़की देखने के नाम पर बार -बार
लडकियों की लम्बाई ,मोटाई ,गोराई की जाँच का तमाशा कर उसके आत्मसम्मान को
चोट पहुँचाया जाता है।परम्परा के नाम पर परिवार वालों के सामने परिवार की
बेटी इस दौरान कितनी बार मरती,जीती है इसकी चिंता बाप -भाई को नहीं
सताती। किन्तु अगर लड़की सम्मान ,प्रेम के साथ किसी से ख़ुशी -ख़ुशी
विवाह करे तो अब तक की अर्जित परिवार की सारी प्रतिष्ठा का प्रशन बन जाता
है।और ये प्रवृति बहुत पढ़े -लिखे कहे जाने वाले परिवारों में भी आप देख
सकते है। हमने अपनी बेटियों को शिक्षित होने का अधिकार तो दे दिया पर आज
भी उन्हें अपनी पसंद के जीवन -साथी चुनने पर पावंदी लगा रखी है।ऐसे में
एक अजीब संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न हो गयी है जिस पर अक्सर हमारा
ध्यान नही जाता।कुछ दिनों पूर्व नालंदा बिहार की एक उच्च शिक्षित सरकारी
सेवा में कार्यरत युवती ने सिर्फ इसलिये आत्महत्या कर ली क्योकि लडके
वालों ने उसे पसंद नही किया,वैशाली जिले की एक युवती बार -बार वर पक्ष के
शादी से इनकार करने से इतनी आहत हुई की वर्तमान में मानसिक रोगी बन बैठी
है।दूसरी ओंर मनपसन्द जीवन -साथी का चयन करने वाली युवतियाँ सबसे पहले
अपने परिवार के प्रकोप का शिकार होतीं हैं।झूठी प्रतिष्ठा ,संकीर्ण
मानसिकता ,जातिवाद का दंश रिश्तों की सम्वेदनाओं को ना सिर्फ विस्मृत
करने में सहायक होते हैं अपितु जीने का बुनियादी अधिकार छीनने से भी नही
हिचकिचाते।तभी तो शहरों ,कस्बों ,गावों में 'आनर किलिंग' के नाम पर हुई
हत्या पर हर कोई खामोश बना नज़र आता है।सरकार ,समाज ,परिवार सभी शत्रु
सरीखे क्यों बन जाते हैं वो भी उस देश में जहाँ कृष्ण घर -घर पूजे जाते
हैं .....? इन दोहरे मानदंडों पर विमर्श की आवयश्कता क्या नहीं होनी चाहिय
...?
आधुनिकता के दौर में प्राचीन रीति रिवाजों में सामयिक परिवर्तन पर
सोचना क्या  जरूरी नही हैं।फिर गन्धर्व विवाह या प्रेम विवाह तो हमारी
संस्कृति का हिस्सा भी रहे हैं।माता -पिता से विद्रोह कर देवी पार्वती ने
शिव का वरन किया था,तो फिर आज हमारा समाज प्रेमियों के रक्त का प्यासा
क्यों बना हुआ है ?अगर सही मायने में देखा जाय तो  लिंग भेद ,दहेज और
जातिवाद जैसी बुराईयों का खात्मा करने का सबसे सुलभ उपाय है प्रेम विवाह।
आखिर बच्चों की ख़ुशी भी तो मायने रखते हैं !



                                                                                  मेनका कुमारी
  


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