Saturday, 20 July 2013

पीसीपीएनडीटी कानून के तहत अभी तक कोई प्रभावकारी दंडात्मक कार्रवाई नहीं

हम भारत की नारी हैं फूल नहीं चिंगारी हैं

पटना। हम भारत की नारी हैं फूल नहीं चिंगारी हैं। नारी के सहयोग के बिना हर बदलाव अधूरा है। इस तरह के नारा सुनने में आता है। सुनकर खून गरम हो जाता है। इस पर जोरदार ढंग से शैलीदार भाषण भी पिला दिया जाता है। संभाषण स्थल से बाहर आने के बाद आम दिनों की तरह व्यवहार करने लगते हैं। अब समय गया है। दोहरी मापदंड करने वाले कार्य बंद कर देना चाहिए।
 उसी कदम पर गैर सरकारी संस्था एक्शन एड कार्यशील है। इसके प्रांतीय अधिकारी विनय ओहदार का कहना है कि आज की लड़कियां समाजशास्त्री, मनेवैज्ञानिक, इतिहासविद, राजनीतिज्ञ, वकील, जज, कानूनविद, शिक्षाशास्त्री, समाजसेवी, लेखिका, रंगकर्मी, चित्रकार, संगीतज्ञ, नृत्यांगना, पुलिस, प्रशासन, मजदूर,किसान,सफाई कर्मचारी, कुम्हार, बुनकर,चर्मकार,मंत्री, उद्यमी, मुखिया,रोजगार सेवक, पंचायत सेवक, लोकपाल,सहिया, आंगनबाड़ी सहायिका, सेविका, नर्स, आंदोलनकारी, मनरेगा मेट,वैज्ञानिक, डाक्टर, इंजीनियर,मीडियकर्मी, फिल्मकार, और बहुत कुछ हैं। परिवार -समाज का मजबूत आधार भी हैं। फिर भी नारी को दोयम स्तर का दर्जा देकर अपमानित किया जा रहा है। और तो और किसी तरह से नारी के अस्त्वि पर ही खतरा मडराने लगा है। 2011 जनगणना के आकड़े काफी उत्साहवर्द्धक है। साक्षरता दर में वृद्धि हुई है। जीवन की आकांक्षाओं में इजाफा है। वहीं स्त्री-पुरूष लिंगानुपात के मामले में काफी चिन्ताजनक एवं चौंकाने वाले है। देश के कुछ राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों में स्त्री-पुरूष लिंग-अनुपात काफी कम बना हुआ है। जबकि कुछ राज्यों में यह घट भी रहा है। बिहार में जहां 2001 की जनगणना में लिंगानुपात 1000 पर 919 था,वहीं 2011 की जनगणना में 1000 पर 916 हो गया है। बिहार में 0-6 आयु वर्ग में भी लिंगानुपात 2001 में 942 था, वहीं 2011 में 1000 पर 933 हो गया है। आंकड़ों के अनुसार दरभंगा जिले में ही ऐसे 49 गांव हैं जहां 1000 पर 700 से कम लड़कियां हैं तो 16 गांव ऐसे हैं जहां 1000 पर मात्र 500 के लगभग लड़कियां ही बची है। पिछले दो दशकों में लगभग 1 करोड़ कन्या भ्रूण-हत्याएं हुई हैं जो दिल्ली महानगर की जनसंख्या के लगभग बराबर है। भारत में प्रतिवर्ष 120 लाख लड़कियां पैदा होती हैं और उनमें से 10 लाख अपने जन्म के प्रथम वर्ष में ही मर जाती है। प्रत्येक दो बालिका में एक कुपोषण का शिकार होती है। प्राप्त आंकड़ों के आधार पर 6 बच्चों में 1 बच्चे की हत्या सिर्फ लड़की होने के कारण होती है। पढ़े-लिखे एवं धनी परिवारों में कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं गरीब, अनपढ़ या कम पढ़े -लिखे परिवारों से अधिक है। शहरों की स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा बदतर है।
यह समस्या सभी जाति,धर्म एवं सम्प्रदायों में कमोवेश सम्मानन रूप से प्रचलित है। अगर यये सब चलता रहा तो अगले कुछ वर्षों में देश में 6 लाख प्रतिवर्ष की दर से लड़कियों की कमी होती जायेगी। अतः उतने ही लोग कुआरे भी रह जायेंगे।
स्माज में औरतों के प्रति बलात्कार,छेड़खानी,हत्या,सेक्स, ट्रैफिकिंग जैसी घटनाएं बढ़ेंगी। हमारी पूरी सभ्यता और संस्कृति पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जायेगा। जबकि इस पर रोक लगाने के लिए पीसीपीएनडीटी एक्ट 1994 में ही बनाया गया, जो पूरे देश में 1 जनवरी,1996 से ही लागू है। इस अधिनियम में गर्भ में पल रहे शिशु के लिंग जांच पर रोक लगा दी गयी है। परन्तु पीसीपीएनडीटी कानून के तहत अभी तक कोई प्रभावकारी दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो पायी है।
आज बेटियों को विकास के मुद्दे पर एक अहम स्थान दिलाया जाए। बेटियां होंगी तो सृष्टि ही रूक जायेगी। इस गंभीर चिंतन कर पहल करें और जीने की हिम्मत रखने वाली बेटियों को बचाकर मानवता की रक्षा के लिए तत्पर हो जाए।
इस संदर्भ में स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव व्यास जी ने कहा है कि सरकार के द्वारा बहुत ही जल्द पटना डिक्लीयरेंशन (पटना घोषणा पत्र )जारी की जा रही है। इसमें बेटियों को बचाने का प्रयास ही शामिल होगा। 
 आलोक कुमार