एक दिवसीय राज्यस्तरीय धरना संपन्न
शिक्षा का अधिकार को मुस्तैदी से लागू करो
पटना। बिहार में शिक्षा का अधिकार को मुस्तैदी से लागू करने तथा मध्याह्न भोजन की व्यवस्था में गुणात्मक बेहतरी लाने के लिए भोजन का अधिकार अभियान (बिहार) के तत्तावधान में एक दिवसीय राज्यस्तरीय धरना दिया गया। कारगिल चौक के बगल में सैकड़ों की संख्या में लोग उतरकर धरना में शिरकत किये।
सारण जिले के मशरक प्रखंड के धरमासति गंडामन गांव की घटना में 23 बच्चों की मौत मध्याह्न भोजन योजना के विषाक्त भोजन खाने से हुई। इस घटना ने राज्यस्तरीय धरना में शामिल लोगों को झकझोर कर रख दिया है और गैर सरकारी संस्था व संगठनों के बीच में सवाल खड़ा कर दिया है। एकता परिशद,बिहार लोक अधिकार मंच, बिहार महिला समाज,बिहार प्रोग्रेसिव एलायन्स, बिहार विमेन्स नेटवर्क, दलित अधिकार मंच, इप्टा, जन स्वास्थ्य अभियान, लोक परिषद, सूचना का अधिकार अभियान, साझी आवाज, वंचित जन मोर्चा, वालेन्टरी फोरम एजुकेशन,सी0ए0सी0एल0,बिहार मुसहर विकास मंच,बिहार आदि का मानना है कि दुर्भाग्यपूर्ण घटना एक विघालय में हुआ है। परन्तु पूरे बिहार के ज्यादातर विघालय में मध्याह्न भोजन की जो परिस्थिति बनी हुई है उसमें इस तरह की घटनाएं स्वाभाविक है। इस घटना में अप्रशिक्षित पंचायत शिक्षिका की लापरवाही दिखती है। परन्तु शिक्षा का अधिकार कानून और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित मानक ढांचे( कक्षा,रसोई घर, शौचालय,भंडारगृह, पीने योग्य पानी, शिक्षक/शिक्षिका आदि) के अभाव में शिक्षा , सुरक्षा और मध्याह्न भोजन की जिम्मेवारी सरकार और उसके पदाधिकारियों की है। दूसरी ओर घटना के बाद बच्चों को अस्पताल में ढांचागत एवं सेवागत स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव (दवा,ऑक्सीजन,डाक्टर, एम्बुलेंस आदि) में उनकी मौत हुई एवं बाकी अब भी चिकित्सालय में हैं। किसी को पी0एच0सी0 में ऐसी आपात स्थिति से निपटने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। मशरक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर बेड,दवा, बच्चों को चढ़ाने के लिए पानी,सूई,डाक्टरों की कमी आदि समस्या थी।
जिस विघालय में यह घटना हुई वहां से पता चलता है कि उक्त विघालय में मघ्याह्न भोजन शुरू होने के बाद से किसी भी सरकारी पदाधिकारी द्वारा निरीक्षण नहीं किया गया। राज्य द्वारा इस योजना के लिए कोई शिकायत निवारण की व्यवस्था नहीं है। इसके साथ ही बिना उचित प्रबंधन के नये विघालयों के सृजन में खानापूर्त्ति के अलावा कोई गंभीरता नहीं दिखती है।
बिहार में सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। परन्तु सरकारी आंकड़ों से अधिक ही 70 प्रतिशत कुपोषण के शिकार हैं। पिछले 5 वर्षों के आकड़ों पर ध्यान दे तो पाते हैं कि प्राप्त आवंटित राशि के विरूद्ध 56 से 84 प्रतिशत तक खर्च किया गया। राज्य सरकार द्वारा कुल आवंटित राशि का केवल 55 से 60 प्रतिशत भाग का ही उपयोग हो पाता है। राज्य में रसोई घर के लिए प्राप्त राशि का भी केवल 50 प्रतिशत ही खर्च हो पाता है। इस मद में उपलब्ध 463 करोड़ की राशि की राज्य सरकार द्वारा केन्द्र को वापस भेजना पड़ा।
केन्द्र सरकार द्वारा बिहार में मध्याह्न भोजन योजना की मॉनीटरिंग करने वाले विभिन्न एजेंसियों जैसे ए0एन0सिंह सामाजिक अध्ययन संस्थान,विभिन्न गैर सरकारी संगठनों यहां तक माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राज्य में मध्याह्न भोजन योजना के क्रियान्वयन में कमी से समय-समय पर राज्य सरकार को अवगत कराया जाता रहा है। उक्त एजेंसियों द्वारा विभिन्न रिपोर्टो के माध्यम से इसमें सुधार के लिए सिफारिशें की गई हैं। इन सबके बावजूद आजतक सरकार द्वारा इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये हैं।
राजनीतिक दल कभी भी शिक्षा, स्वास्थ्य या मध्याह्न भोजन योजना को गंभीरता से अपना राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाती हैं, बल्कि राजनीतिक लाभ के लिए ओछी बयानबाजी की जाती है। गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के समुचित संचालन एवं सुधार में गांव से लेकर राज्य स्तर तक जन प्रतिनिधियों अथवा सरकारी तंत्र पर कोई जिम्मेदारी अथवा जवाबदेही तय नहीं है।
इस अवसर पर नागरिक समाज की ओर से मांग की गयी है। इस समूचे मामले की जांच करवाई जाये, जो समयसीमा के भीतर उनके निराकरण की रणनीति बताते हुए अपनी रिपोर्ट जारी करे। राज्य में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का शीघ्रातिशीघ्र पूरा क्रियान्वयन किया जाये। अधिकतम आगामी 6 माह के भीतर राज्य के सभी विघालयों में समुचित भवन, रसोईघर, स्टोर, बर्तन, थाली, पीने योग्य पानी, स्वच्छ शौचालय आदि की व्यवस्था पूरी की जाये। मानवीय गरिमा का ख्याल रखते हुए मध्याह्न भोजन योजना, प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था एवं शिक्षा व्यवस्था पर कार्यक्रम संबंधी एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का अक्षरशः पालन हो। विघालय प्रबंधन समिति के गठन एवं प्रशिक्षण के साथ-साथ सामुदायिक भागीदारी के साथ एक अलग संपूर्ण व्यवस्था की जाये। रसोईये, उनकी सहायक एवं कर्मचारियों के मानदेय में वृद्धि के साथ उनके लिए समय-समय पर समुचित प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाये। मध्याह्न भोजन एवं आंगनबाड़ी के सामुदायिक रसोई में गुणवत्ता नियंत्रण के लिये एसओपी बनाया जाये। स्थानीय स्तर पर निर्धारित मानकों के अनुसार अनिवार्यतः प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा अविलम्ब सुनिश्चित की जाये। विघालय में प्रत्येक माह सभी बच्चों का नियमित स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था हो। कृषि में उपभोग किये जा रहे जहरीले रसायनिक छिड़काव पर नियंत्रण के लिए एक सुचिन्तित नीति और व्यवस्था का निर्माण हो। सभी कल्याणकारी योजनाओं के लिए जन प्रतिनिधियों एवं सरकारी पदाधिकारियों का पंचायत से राज्य तक जिम्मेवार एवं जवाबदेही बनाया जाये। इस घटना के बारे में भी मघ्याह्न भोजन योजना निदेशालय, जिला स्तरीय अधिकारी एवं प्रखंड स्तरीय पदाधिकारी के साथ-साथ मुख्यमंत्री ,शिक्षामंत्री मुख्य सचिव और शिक्षा प्रधान सचिव जवाब दें और आगे इसकी पुनरावृत्ति न हो, इसे सुनिश्चित करने की रणनीति बनायें।
राज्यस्तरीय धरना में शामिल रूपेश, प्रकाश कुमार चौहान, कृष्णाकांत दुबे, सतीश कुमार, संजय कुमार प्रसाद,किशोरी दास सत्येन्द्र कुमार शाडिल्य, विनय कुमार आदि ने हस्ताक्षर किये।
Alok Kumar