सूचना अधिकार
का चौथा
राष्ट्रीय अधिवेशन
17 फरवरी,2013 को
संपन्न हैदराबाद
में शिलांग
घोषणा,2011 को किया स्वीकार
पटना। एक
नागरिक एवं
कार्यकर्ता के रूप में एक
पारदर्शी लोकतंत्र निर्माण के
लिए हम
सभी पूरे
देश के
लोग हैदराबाद
शहर में
जमा हुए।
अपनी सफलता
को मनाने
और चुनौतियों
पर कामयाबी
पाने के
लिए। सूचना
के जन
अधिकार पर
आयोजित इस
चौथे नेशनल
कम्पैन फोर
पीपुल्स राइट
टू इंफोर्मेसन(एन.सी.पी.आर.आई.) के
राष्ट्रीय सम्मेलन में हम अपनी
प्रतिबद्धता को दुहराते हैं कि
हम जन
अधिकारों की
रक्षा करेंगे।
इस अवसर
पर हम
शपथ लेते
हैं कि
17 फरवरी,2013 को हैदराबाद में लिए
गए प्रस्तावों
को यर्थात
में बदलने
के लिए
संघर्ष करेंगे।
हम सूचना
के अधिकार
पर इस
चौथे राष्ट्रीय
अधिवेशन के
सभी प्रतिभागी
शिलांग घोषणा,2011
को स्वीकार
हुए घोषणा
करते हैं
किः
आज की
तारीख में
सूचना आयोगों
का क्रियाकलाप
गंभीर संकटों
से ग्रस्त
है जिसे
उपयुक्त प्राधिकारों
द्वारा संज्ञान
में लेने
की आवश्यकता
है। विभिन्न
सूचना आयोगों
ने सितंबर,2011
से काम
करना बंद
कर दिया
है। हम
मांग करते
हैं कि
सूचना आयोगों
को तत्काल
अपना कार्य
प्रारंभ करना
चाहिए। सरकार
को पादर्शी
रूप में
खाली पदों
से खाली
पदों को
भरना चाहिए
क्योंकि लोगों
को मौलिक
अधिकारों की
अवहेलना हा
रही है।
सूचना आयुक्तों
की संख्या
विभिन्न सूचना
आयोग के
काम के
भार के
आलोक में
निर्धारित होना चाहिए। हम मांग
करते है
कि नमित
शर्मा जजमेंट
पर पुर्नविचार
किया जाए।
सूचना का
अधिकार कानून
लागू होने
के 8 साल
के बाद
भी धारा
4 के तहत
जिन सूचनाओं
को जारी
करने का
दायित्व सरकार
का था
नहीं हो
पाया है।
सभी सरकारी
प्राधिकारों को शीघ्र इस जिम्मेवारी
को पूरा
करना चाहिए।
हम मांग
करते है
कि 2013 में
डी.ओ.पी.टी.
द्वारा धारा-4
के क्रियान्वयन
के संबंध
में गठित
टास्क फोर्स
की रिपोर्ट
को सर्वाजनिक
किया जाए।
संसद को
अनिवार्य रूप
से शीघ्र
एक प्रभावी
व्हीसल ब्लोअर
प्रोटेक्सन लॉ (डब्ल्यू.बी.पी.एल.) बनाना
चाहिए। यह
सरकार का
एक नैतिक
कर्त्तव्य है कि वह आरटीआई
कार्यकर्ता को सुरक्षा प्रदान करें
एव उनपर
हमला करने
वालों के
विरूद्ध त्वरित
एवं सख्त
कानूनी कार्रवाई
करें। सरकार
एवं सूचना
आयोगों का
दायित्व है
कि जब
कभी किसी
आवेदक पर
हमला हो
तो वैसी
स्थिति में
सूचना को
इस आवेदक
ने मांगी
है उसे
सार्वजनिक किया जाए। इस संदर्भ
में वह
सभी व्यक्ति
जिन्हें लोकहित
में सूचना
चाहिए को
मानवाधिकार का संरक्षण माना जाए।
पारदर्शिता से
जवाबदेही की
ओर ले
जाने के
लिए यह
अतिआश्वयक है कि ऐसे कानून
का निर्माण
हो जिससे
भष्टाचार एवं
अधिकार के
दुरूपयोग पर
रोक लगे।
लोकपाल एवं
लोकायुक्त पर प्रस्तावित विधान को
बिना विलम्ब
के पारित
होना चाहिए।
हम मांगते
करते हैं
कि संसद
शीघ्र एक
प्रभावशाली शिकायत निवारण कानून बनाए
जाए। ज्यूडिशियल
एकाउंिटबिलिटि बिल (जेएबी) एवं प्रस्तावित
नेशनल ज्यूडिशियल
कमीशन (एन.जे.सी.)
पर अनिवार्य
रूप से
कानून बनना
चाहिए।
सरकार आरटीआई
एक्ट के
क्रियान्वयन एवं इसके अन्य पक्ष
यथा पारदर्शिता
एवं जिम्मेवारी
निर्वहन के
संबंध में
विशेष ध्यान
देना चाहिए।
विशेषकर उन
क्षेत्रों में जहां तनाव है।
ताकि मानवाधिकार
का संरक्षण
भी हो
खासकर वंचित
समुदाय के
संदर्भ में।
हम एएफएसपीए
एवं अन्य
कानूनी प्रावधान
जो जनतांत्रिक
अधिकारों जैसे
सूचना का
अधिकार को
सीमित करते
हैं को
बदलने की
मांग करते
हैं।
हम सूचना अधिकार
कानून धारा
24 के मनमानी
इस्तेमाल की
भर्त्सना करते
हैं जिसके
तहत सीबीआई,
भष्टाचार निवारण
एजेंसी, सुरक्षा
एवं इन्टेलिजेंस
जैसी एजेंसियों
को सूचना
का अधिकार
से अलग
रखा गया
है। धारा
8 के अन्तर्गत
जो छूट
प्रदान की
गयी है
वह काफी
है इस
लिए हम
धारा 24 के
अंतर्गत घोाषित
संस्थाओं को
हटाया जाए।
हम मांग
करते हैं
कि राज्य
और केन्द्र
सरकार के
द्वारा बनाए
जा रहे
तमाम कानून
सूचना का
अधिकार कानून
द्वारा स्थापित
पारदर्शिता के सिंद्धांत का पालन
करें। हम
उन तमाम
नियमों, प्रावधानों,
आदेशों को
वापस लेने
की मांग
करते हैं
जो लोगों
के सूचना
के मौलिक
अधिकार का
हनन करती
हो।
हम मांग
करते हैं
कि शीघ्र
ही सभी
सरकारें ऐसी
वैधानिक प्रक्रियाओं
का पालन
करें जिससे
संसद में
कोई भी
विधेयक व्यापक
‘पब्लिक कंसल्टेशन’
के बाद
ही पेश
किया जाए।
सभी सरकारी
नीतियों को
भी अनिवार्य
रूप में
एक समूचित
एवं व्यापक
एकीकरण प्रक्रिया
से निर्माण
किया जाना
चाहिए।
हम सरकारी
क्रियाकलाप एवं नीति निर्माण में
कॉरपोरेट क्षेत्र
के हस्तक्षेप
को लेकर
बहुत चिंतित
हैं। सभी
सरकारी महकमों
को अनिवार्य
रूप से
कदम उठाना
चाहिए जिससे
उन निजी
उपक्रमों में
जो सरकारी
संसाधनों के
बदौलत लोक
सेवा प्रदान
करती है,
के क्रियान्वयन
में पारदर्शिता
आए। पब्लिक
प्राइवेट पार्टनरशीप
परियोजनाए भी अनिवार्य रूप से
आरटीआई एक्ट
के परिधि
में आनी
चाहिए, हम
इसकी मांग
करते हैं।
हम मांग
करते है
कि सभी
सरकार संपोषित
एनजीओ, सहयोग
समितिया,ट्रेड
यूनियन एवं
धार्मिक संस्थानों
को अपने
आय-व्यय
में पारदर्शी
होना चाहिए।
हम मांग
करते है
कि सभी
सरकार संपोषित
योजनाओं का
किसी स्वतंत्र
एजेंसी द्वारा
सोसल ऑडिट
हो।
हम मांग
करते है
कि सभी
राजनीतिक दलों
का आय-व्यय का
ब्यौरा लोगों
को नियमित
अंतराल पर
उपलब्ध हो।
हम मानते
है कि
सभी प्राकृति
संसाधन जन/लोगों का
है। हम
मांग करते
है कि
इन प्राकृतिक
संसाधनों के
उपयोग के
संबंध में
लिये जानेवाले
निर्णय में
जन भागीदारी
हो, समानता
हो। सभी
एमओयू एवं
लीज दस्तावेज
को लोगों
को बताया
जाना चाहिए।
हम सभी
मीडिया घरानों
के क्रियाकलाप
में पारदर्शिता
की मांग
करते हैं,
मीडिया घराने
अपने अभिव्यक्ति
के अधिकार
को सुरक्षित
रखते हुए
लोगों के
प्रति जवाबदेही
बने इसके
लिए एक
मेकनिज्म विकसित
हो।
सरकार द्वारा
नागरिकों का
अनिवार्य रूप
में व्यक्तिगत
आंकड़ा संग्रह
अभियान जो
यूआईडी आधार
के अंतर्गत
किया जा
रहा है
उसको लेकर
हम गंभीर
रूप से
चिंतित हैं।
हम मांग
करते है
कि यूआईडी
आधार प्रक्रिया
को तत्काल
रोका जाए।
साथी ही,
विभिन्न स्तरों
यथा लोगों
एवं संसद
में इस
पर व्यापक
विमर्श होना
चाहिए।
हम उन
सभी प्रस्तावों
को स्वीकारते
हैं जो
हैदराबाद अधिवेशन,2013
में संचालित
विभिन्न कार्यशालाओं
में पारित
किये गये
है।
शिवप्रकाश राय